शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2010

मन के किसी कोने मे ,
तुफ़ान घुमड रहा हे.
क्या थी क्या हू मै,
मन बारबार बैचेन कर रहा है.
कहने को बहुत कुछ मगर कह न सकी,
नहि जानती क्यो मगर होन सका ये.
नही जनाती कब तक .....
चलता रहेगा यही फ़साना
कभी कह ना पाऊगी
क्या मै दिल क तराना.
अंधेरे में जो बैठे हैं, नज़र उन पर भी कुछ

डालोअरे ओ रोशनी

वालों बुरे हम हैं नहीं इतने,

ज़रा देखो हमें भालो अरे ओ रोशनी वालों ...
क़फ़न से ढाँप कर बैठे हैं हम सपनों की लाशों को

जो क़िस्मत ने दिखाए, देखते हैं उन तमाशों

को हमें नफ़रत से मत देखो, ज़रा हम पर रहम खा

लो अरे ओ रोशनी वालों ...
हमारे भी थे कुछ साथी, हमारे भी थे कुछ

सपने सभी वो राह में छूटे, वो सब रूठे जो थे अपने

जो रोते हैं कई दिन से, ज़रा उनको भी समझा लो

अरे ओ रोशनी वालों ...

गुरुवार, 26 अगस्त 2010

मेरी सहेलि अर्चना के ब्लोग से प्रेरना लेकर मै भी प्रयत्न कर रहि हू।अर्चना और मै कई सालो बाद फ़ेसबुक पर मिले।फिर हमने एक और सहेलि को खोज निकला जिसका नाम नीता है।बहुत नजदीकि रिश्ता रहा था हमलोगों मे.