मंगलवार, 8 नवंबर 2011

जीवन

नमन शब्दग्राम!
मीनाक्षी मोहन 'मीता' जी के आह्वान पर 💐💐💐

पंक्ति_आधारित_काव्य_सृजन



जीवन मृत्यु का यह खेल अजीब,
इस खेल से न कोई बच पाया है.
जीवन वैभव के उन्माद को अब तक
मृत्यु  सन्मुख  नतमस्तक ही पाया है
इसलिए तो----
जीवन सिर्फ इक सीप नहीं है
इसके हर मोती को चुन लो,
गिर कर उठकर बारबार तुम,
जीवन का रस पूरा चख लो,
बूंद-बूंद जोड मधु जीवन का
इस अमृत घट को प्यार से पीलो
खुशियों का ढेर भर अंजुरी में,
सुंदर जीवन का रस पीलो
मदमस्त हो जीवन जीलो

मदमस्त हो जीवन जीलो