बुधवार, 5 सितंबर 2012

परम्पराए और वैज्ञानिक आधार---भाग (१)




भारतीय संस्कृति में पुरातन समय से कई परंपराए चली आ रही है जिनका कही-कही तो निर्बाध गती से पालन होता है किंतु कुछ का आधुनिकता के चलते त्याग कर दिया जाता है.विज्ञान सम्मत कुछ परंपराओं को हमे मानना चाहिये इसलिये यह उप क्रम.
               अभी कुछ दिनों पूर्व एक समाचार पत्र के कालम मे पढने मे आया कि "ट्रसी बायर्न" जो बच्चों के पैरों पर विशेष संशोधन कर रही है का कहना है कि बहुत कम उम्र से जुते उपयोग मे लाने से बच्चों  मे अनेक दोष उत्पन्न होते है एवं उनके मस्तिष्क  विकास मे बाधा पहुँचती है.उनका कहना है कि हम जैसे चमड़े य अन्य किसी वस्तु के जुते पहनाते है तो पैरो का नैसर्गिक विकास रुक जाता है.बच्चा जितना छोटा खतरा उतना अधिक है.वास्तव मे बच्चों के पैर उपास्थि(cartilage) के बने होते है और १६-१७ वर्ष कि उम्र तक आकर उनका अस्थिकरण होता है.
           रेंगकर(घुटनों के बल) चलने वाले बच्चों को जुते पहनाना बडा धोकादायक हो सकता है.कई सम्पन्न लोग अपनी शान के लिये घुटनों के बल चलने बच्चों को जुते पहनाते है लेकिन इससे उनके निकट दृष्टि कौशल मे बधा उत्पन्न होती है जो आगे जाकर उसके वाचन कौशल  मे बाधा उत्पन्न कर सकते है
               हम भारतीय घरों मे भी  जुते बाहर उतारने कि परंपरा है उसका मुल भी यही रहा होगा. लेकिन आधुनिकता के चलते आजकल ऐसा अनुरोध करने पर लोग इसे अपना अपमान समझते है ऐसा मेरा स्वानुभव है.हमारे घरों मे यह परंपरा रही है कि कही बाहर से आने पर जुते बाहर उतार कर पहले पैर-हाथ धोने के बाद हम घर मे चहलकदमी कर सकते है.किसी अतिथि के आने पर भी बाहर उसके हाथ- पैर धुलाने की व्यवस्था कि जाती थी.
            एकबार मुझे याद है मेरे घर कोई परिचित आये थे मुझे घर मे नंगे पाँव काम करते देखकर उपहास करते हुए उन्होने मेरी आर्थिक स्थिति पर व्यंग्य किया था.जब मैने उन्हें बताया कि हमारे घरों मे चप्पल पहनकर काम करने कि आदत ही नही डाली जाती हमारे यहा जुते-चप्पलो का स्थान देहरी के बाहर ही होता है तो उन्होंने मेरी स्वच्छता पर व्यंग्य किया था.अब चूँकि ज्यादा देर जुते पहने रहना या घर मे भी जुते पहने रहना कितना नुकसानदायक है यह अमेरिका में संशोधन के रुप मे स्वीकार हो चुका है तो अब वे तथाकथित भारतीय भी इसका अनुसरण करेंगे.
          बचपन मे जब हम स्कूल जाया करते थे तो वहाँ भी जुते-चप्पल कक्षा के बाहर एक पंक्ति मे उतारने कि परंपरा थी और टाटपट्टी पर नीचे बैठकर सामने एक डेस्क(ढलवां मेज़) पर अभ्यास का क्रम चलता था.आजकल स्कूल जाने के समय से लेकर घर वापस आने तक ७-८ घंटे या अघिक समय तक जुते का प्रयोग उनके पैरो कि निरोगी वृद्धि मे बाधा निर्माण कर सकते है और इतने समय तक मेज़- कुर्सी पर पैर लटका कर बैठना उनके पैरो के रक्त संचार मे बाधा उत्पन्न कर सकता है.
       मेरा उन सभी पालको से अनुरोध है कि अपने बच्चों को कम से कम घरों में तो भी नंगे पाँव घूमने दे खेलने दे.परंपराओं का निर्वाह करते हुए बच्चों के स्वस्थ्य एवं निरोगी भविष्य के लिये यह अत्यंत आवश्यक है.