मंगलवार, 8 सितंबर 2015

रिश्ता-मातृभूमि से

-------------साप्ताहिक शीर्षक "रिश्ते" आधारित लघुकथा -----
अपनी बेटी को खोने का दुख वे सम्हाल नही पा रहे थे,बेटी की आख़िरी सलामी परेड मे उनकी आँखो से झर-झर आँसु बह रहे थे तो दूसरी  तरफ़ गर्व भी था.
  चल चित्र से  वे  दिन उनकी  आँखो के सामने तैर गये  जब  माँ के  लाख मना करने पर भी बेटी ने जिद करके भारतीय वायुसेना को ज्वाइन किया था.
कठिन प्रशिक्षण के बाद पासिंग आउट परेड मे शामिल हो ने वे सपत्निक गये थे.उसे गोल्ड मेडल से नवाजा गया था.तब गर्व से उनका सीना चौड़ा हो गया था.
  फिर अचानक एक दिन दुर्घटना की खबर उन्हे अंदर तक हिला दिया .आनन-फानन मे वे अस्पताल पहुँच गये थे जहाँ उनकी बेटी को लाया गया था.
    अत्यधिक घायल मूर्छित अवस्था मे बेटी को देख थोड़ी देर को होश खो बैठे .मगर  अपने आप को संयत किया .
वे  और पत्नी उसके सिरहाने बैठे उसके सिर पर सहला रहे थे कि बेटी के शरीर मे अचानक हलचल महसूस हुई. अपने सिरहाने माँ-पापा को देख उसके चेहरे पर  धीमी सी मुस्कान तैर गई.
अचानक वो बोल पड़ती है---- पापा-माँ!!!!! मातृभूमि से अपना रिश्ता निभाते-निभाते मैं आपके रिश्ते से न्याय्य्य्य--------
  चारों और  एक गहरा सन्नाटा छा गया.

नयना(आरती) कानिटकर
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