गुरुवार, 30 मई 2013

जिन्दगी के रंग


जिंदगी के सारे रंग चुन लाई थी
सपनों के सतरंगी इन्द्रधनूष के साथ
फूलों से लदी  डाली बनकर
और कूद पडी थी होली से इस
अग्निकुंड मे
बडी उम्मीद और आरजु के साथ
फिर तुम भी तो आये थे मेरे साथ
रंग-बिरंगी फूलों कि बहार और
ख़ूबसूरत रंगों की बौछार बनकर
इस अग्निकुंड में शितलता देने
तुमने
सागर सा समेट लिया था मुझे
अपने आगोश मे दृढ़ बंधन के साथ
फिर मैने भी कभी कोशिश नही की
तुम्हारे इस आगोश से छूटने की
कि  ये सिलसिला सदा बना रहे
और आज                                                      
रंग-बिरंगी फूलों कि बगियाँ बन
इठला रहे है खूशबु बिखेरे चारो ओर
सपनों के ये इन्द्रधनूषी रंग
विस्तृत हो चुके है आकाश भर
सदा एकरुप होकर अपनी आभा बिखेरने

नयना(आरती) कानिटकर
३०/०५/२०१३