मंगलवार, 1 सितंबर 2015

"अंधकार"

मात्र ७ वर्ष की उम्र मे वो इस घर मे आ गयी थी.माँ-पिता का साया उठ जाने के बाद गरीब मामा भी उसे पालने मे अक्षम थे..
           तब उन्होने अपने साहब के यहाँ छोटे-मोटे घरेलू कामों के लिये मुझे छोड दिया था.बदले मे मुझे दो वक्त का खाना और वर्ष मे २-३ जोडी कपड़े नसीब होते थे.
      मेरी मालकिन दीपा आँटी बहुत नरम और दिलेर स्वभाव की थी.उन्होने मुझसे कभी गलत बर्ताव नही किया.पास ही के एक सरकारी स्कूल मे मुझे एडमिशन भी दिला दिया था.सुबह के काम साथ-साथ निपटा कर मे स्कूल जाने लगी थी.अपने बच्चों के साथ-साथ कभी-कभी वह मुझे भी पढा दिया करती
       मैं  पूरी तरह अब उस घर मे रम सी गयी थी.प्रकाश अंकल ने तो मेरा नाम रानी रख दिया था.मैं भी उन्हे पूरा आदर देती थी.इसी तरह धीरे-धीरे १२ वर्ष गुजर गये .मैने १२ वी की परीक्षा उत्तिर्ण कर ली
        उस दिन आनंद से दीपा आंटी और अंकल ने मिठाई बाँटी और मेरे मामा के घर भी भिजवाई थी.मामा भी मिलने आए थे उस दिन.आँखो मे आनंद से आँसू उमड़ आए थे उनके.घर ले जाने की बात करने लगे पर अंकल ने मना कर दिया
     अब मे घर के कामो के साथ अंकल के व्यवसाय के  लिखा-पढी के छोटे-मोटे काम देखने लगी थी.साथ ही साथ प्राइवेट बी.काम. भी पूरा कर लिया
    आज मे बहुत खुश थी .अंकल-आंटी ने मेरा विवाह उन्ही के ऑफ़िस मे काम करने वाले अनाथ योगेश के साथ कर दिया था जो उनके यहाँ ५-६ सालों से काम कर रहा था.बहुत सरल मेहनती स्वभाव का था वो.
अंकल-आंटी के आँखो मे मेरी बिदाई के साथ-साथ खुशी के आँसू भी थे.
  आज दो जिंदगीयो से "अंधकार" हमेशा के लिये दूर हो चुका था