रविवार, 28 अगस्त 2016

संक्रमण--लघुकथा

" हैलो.." ट्रीन-ट्रीन की घंटी बजते ही स्नेहा फोन  उठाते हुए बोली
" हैलो स्नेह! कैसी हो. बहुत व्यस्त हो क्या." उधर से बडे भैया की आवाज थी.
" अरे! भैया व्यस्त ही नही अस्तव्यस्त भी हूँ."
" क्यो क्या हुआ..."
"क्या बताऊँ  समझ नही पा रही. तुमने जो रिश्ता सुझाया था ना अपनी भांजी ले लिए कहती है प्रोफ़ाइल तो अच्छा है. मगर पाँच साल बडा है वो मेरे सामने अंकल लगेगा. आजकल तो एक साल मे ही गेनेरेशन गेप आ जाता है. अब तुम ही  बताओ मैं तो थक गई हूँ समझा कर भी और..."
" बहना! इधर भी यही हाल है. सोमेश को कोई भी लड़की दिखाओ कहता है पापा! मुझसे पाँच- छह साल छोटी हो वरना शादी के एकाध साल मे ही वो आंटी दिखने लगेगी."
"सच! बहुत मुश्किल है दादू इस पीढी को समझाना."
"कोई ना छोटी संक्रमण काल है ये हमारी पीढी का."
ना तो  पुराना सहेजा जा रहा और  ना ही नई पीढी के साथ सामंजस्य बैठ रहा.

मौलिक एंव अप्रकाशित

मंगलवार, 23 अगस्त 2016

ठोस रिश्ता---"भावनिक विवाह"

"ठोस रिश्ता"
"अरे रश्मि! तुम यहाँ - तुमने चेन्नई कब शिफ़्ट किया, मुझे बताया भी नहीं और हा! तुम बडी सुंदर लग रही हो इतनी बडी बिंदी- मंगलसुत्र में. ये तुम कब से पहनने लगी . तुम तो इन सबके खिलाफ़ थी."
" हा! हा! सब एक साथ ही पूछ लेगी क्या. चल सामने की  शाप  मे एक-एक कप कॉफी  पीते है"
"अब बता" विभा ने कहा
" तू तो जानती है मैने अनिश के साथ प्रेम विवाह किया था. मैने तो उसे दिल मे बसाया था तो मैं इन सब चीजों का प्रदर्शन ढकोसला मानती थी.  उसने  भी कभी कुछ नहीं कहा वो मेरी हर बात का मान रखता था. जिंदगी बडी खुबसुरत चल रही थी कि अचानक एक दिन अनिश  गश खाकर गिर पडा. उसका निदान मस्तिष्क की रक्त वाहिनियो मे थक्के के रूप में हुआ. अनेक प्रयत्नो के बाद भी मैं उसे बचा ना सकी."
"तू भी कितनी बेगैरत निकली दूसरा विवाह भी कर लिया." विभा ने कुछ नाराज़गी से कहा
"नही रे! बहुत बुरा समय गुजरा इस बीच . तू तो जानती थी मेरे ससुराल वाले लोगो को मुझ पर देवर से शादी का दबाव...फिर मैं अपना तबादला लेकर यहाँ आ गई. लेकिन यहाँ भी भेडिये कम ना थे."
"फ़िर.." विभा ने पूछा
"फिर क्या मैने अनिश की आत्मा से विवाह रचा लिया और धारण करली ये भावनाएँ"

नयना(आरती)कानिटकर
भोपाल
२३/०८/२०१६

गुरुवार, 18 अगस्त 2016

अनमोल पल

कितना आनंद है ना
इन त्योहारों का
ले ही जाते है स्मृतियो में
याद आ रहा है वो
माँ का एक ही छिंट के थान* से
दोनो बहनों का एक समान
फ्राक सिलना और
छोटे भाई का वो झबला
कि हम ना करे तुलना
एक दूसरे से तेरे-मेरे अच्छे की
फिर छोटे-छोटे हाथों से
वो उसका उपहार
साटिन की चौडे पट्टे की रिबन का
दो चोटियों मे गूँथ ऐसे डोलते
मानो सारा आकाश हमे मिल गया हो
फ़ुदकते रहते सारा दिन
आंगन और ओसरी पर कि
कोई तो देखे हमारे भाई ने क्या दिया
बहूत छोटी-छोटी खुशियाँ थी
संग ढेर सा प्यार
कितने अनमोल थे वे पल

"नयना"

*थान--असीमित कपड़े की लंबाई
रक्षाबंधन की शुभकामनाऎ भाई