मंगलवार, 29 दिसंबर 2015

" ओव्हर टाईम"-लघुकथा के परिंदे

अलभौर ही उसके काम की शुरुआत हो जाती पानी भरने से .यू तो नल घर मे था मगर छत की टंकी तक पानी जाने मे वक्त लगता  तो सारे काम चलते नल मे करने की जल्दी मे भागम भाग करना पड़ती.फिर घर बुहारना,बच्चों के स्कूल का टिफ़िन,चाय-नाश्ता,दोपहर के भोजन की व्यवस्था और घर को समेट उसे भी काम पर जाना होता.लौटकर आती तो फिर वही धुले बरतन जमाना, कपड़े समेटना,अगले दिन की भाजी-तरकारी की व्यवस्था,रात का खाना(घर वालो की फ़रमाईश का) सारा दिन चक्करघिन्नी सी घूमती काम करती रहती थी.शायद अब उम्र का तकाजा था शरीर इतने सारे काम के लिए साथ ना दे पा रहा था.मगर कहती किससे वो भी तो सुपर वुमन बनने की होड मे बिना किसी गिले-शिकवे के यह सब करती रही  और हम भी कभी मन से उसे काम मे हाथ ना बटा पाए.
अचानक गश खाकर गिरने पर तुम्हारे माथे की चोट इतनी गहरी लगी है कि सारी भावनाएँ उसमे गहरा गई है.मैं तुम्हें इस अवस्था मे नही देख सकता "अनुराधा",तुम्हें जल्द ही  कोमा  की स्थिति से लौटना ही  होगा मेरी जान.
कही ये ओव्हरटाइम,टाइम ओव्हर ना हो जाए.

नयना(आरती) कानिटकर.
२९/१२/२०१५

मंगलवार, 22 दिसंबर 2015

आदमी जिंदा है-लघुकथा के परिंदे --जिंदादिली

डायलिसीस सेंटर के वेटिंग एरिया मे बैठे स्मिता का सारा ध्यान चिकित्सा कक्ष की तरफ़ था सचिन को अभी-अभी अंदर ले गये थे.भगवान की मुर्ति सामने थी लेकिन  उसका मन अशांत था .
इतने मे सामने से एक खूबसुरत ,करिने से पहना हुआ सौम्य पहरावा,कोई भी आकर्षित  हो जावे ऐसा आभायमान व्यक्तित्व की धनी महिला आती है.
वो अपने डब्बे से सभी को मतलब हर आने-जाने वाले को तिल-बर्फ़ी ’चिक्की देते हुए कह रही थी "तिल-बर्फ़ी लो मीठा-मीठा बोलो".सभी डाक्टर्स,सिस्टर्स,वहाँ के सारे मरीज,मरीजो के रिश्तेदार सभी संग अपनी  खूबसुरत हँसी और अपनापन  बाँट रही थी
 स्मिता अशांत थी,अधिर हो रही थी लेकिन डाक्टर साहब ने उसकी मनस्थिती ताड ली .बोले--
"स्मिता ये जोशी आंटी है अपने पति संग लम्बे समय से यहाँ आ रही है.इनके सारे त्योहार दशहरा,दिवाली,राखी सब यही मनते है वो यहा की सबसे सिनियर पेशेंट रिलेटिव्ह है .बडी जिन्दादिल महिला है,सब पेशेंट रोज उनका इंतजार करते है और हा सचिन भी ठिक है अब जल्दी छुट्टी मिल जायेगी उसे.
 स्मिता ने अपने दु:ख का अपने चारो और मानो कोश सा निर्माण कर लिया था,लेकिन जोशी आंटी ने तो अपने प्रयत्नो से परिस्थीति को उलट दिया था,हार नहीं मानी थी.
उनको देख स्मिता ने सोच लिया जिंदगी हमेशा जीते रहने मे है,हौसले और जज्बे मे है.
जब तक जिंदादिली कायम है,आदमी जिन्दा है.

नयना(आरती) कानिटकर.
२२/१२/२०१५

मुँह दिखाई-नयी रीत लघु कथा के परिदे

 धूम-धड़ाके के साथ विवाह पश्चात जब बारात घर लौटी तो चारों ओर ख़ुशियों का माहौल था. सुरेखा ने आरती उतार घर मे प्रवेश कराया.भिन्न-भिन्न रस्मो मे समय कब गुजरा पता ही ना चला.तभी दादी माँ का आदेशात्मक स्वर सुनाई दिया.
"सुरेखा बहूरिया!! लगे हाथ मुँह दिखाई की रस्म भी कर लो,आसपास के घरो मे बुलावा भेज दो,लल्ली(नई बहू) जो दहेज़ लाई है उसे करिने से  सजा  लो ताकि जब वे आए तो उन्हे मुझसे  पूछना ना पडे --"तेरी पोते री बहू क्या लाई है संग"
"ना अम्मा!!! अब ये मुँह दिखाई की रस्म ना होगी इस घर मे और ना ही बहू घूँघट काढेगी.वैसे से भी शर्म आँखो मे और अदब दिल से होता है .मैं उसे अपनी  बेटी बनाकर लाई हूँ उसे अपने सुमन  बेटी की तरह स्वीकारो.दहेज़ मे मैने उसके माँ-बाबू से कुछ ना लिया.वो अपने पैरो पर खड़ी है,नौकरी करती है.जरुरत पडने पर होनी-अनहोनी ,हारी-बीमारी मे हमारे साथ है.बस यही दहेज़ है हमारा." कहकर बहू शकून के माथे हाथ फ़ेरने लगी .थक गई है सारा दिन रस्मो के चलते.
"जा बेटा शकुन थोडा आराम कर ले."
शकुन को घर मे अपने मिलने वाले स्थान का आश्वासन मिल गया.
"मगर बहूरिया!!! इस घर की रीत--"
"अम्मा आज से इस घर की यही नयी-रीत है."
नयना(आरती)कानिटकर

रविवार, 20 दिसंबर 2015

अपराध विषय आधारित-लघुकथा के परिंदे-"जमीन"

शीना और  शशांक के साथ  अपनी गाड़ी से प्रवास पर निकले शर्मा दंपत्ति सडक के  बाँयी ओर कोयले की आँच पर गर्मागर्म भुट्टे सेंकते देख उनका स्वाद लेने और  कुछ देर सुस्ताने के हिसाब से गाड़ी एक किनारे लगा देते है. पास ही एक महिला को ताजे-ताजे भुट्टे सेंकने का कह थोडा चहलकदमी करने लगते है.
 भुट्टे वाली के पास ही कुछ दूरी पर शीना की हम उम्र लड़की पत्थरों से घर बना ,झाडीयो मे लटकती ,लहराती बेलों से झुला बनाकर अपनी पुरानी सी गुड़िया जिसके हाथ-पैर लूले हो चुके थे ,खेल रही थी.शीना भी अपनी गुड़िया थामे  वहा पहुँच गई.उस लड़की ने भी शीना को अपने खेल मे शामिल करना चाहा ,तभी नमक-निंबू लगे भुट्टे हम तक आ चुके थे,वे उन्हे ले गाड़ी मे बैठ गये.
छीSSS मम्मी!!! कितनी गंदी गुड़िया थी उसकी और  वो कैसे पत्थर का घर बना उसे खिला रही थी मानो कोई महल हो,मेरी देखो इतनी सुंदर गुड़िया के साथ खेलना था उसे.---ना जाने क्या-क्या अर्नगल बोलने लगी.
चुप करो शीना!!! बहुत हो गया. अभाव क्या होता है तुम्हें मालूम नही है,तुम जो मांगती हो वह तुम्हें तुरंत मिल जाता है. उसकी माँ को देखो क्या कमा पाती होगी वो दिन भर मे किसी को इस तरह गंदा कहना,उसका मज़ाक उडाना---बोलते-बोलते मेरा बदन काँपने लगा.
बच्चों को सारी भौतिक सुविधाएँ तो जुटा दी किंतु उन्हे ज़मीन से ना जोड पाई.इस अपराध बोध मे मुझे अस्वस्थ कर दिया था.
 बच्ची को  शीना ने अपनी गुडिया भेंट स्वरुप दे दी. 
नयना(आरती) कानिटकर
२०/१२/२०१५

गले की जंजीर-लघुकथा के परिंदे-दहलीज

 बहू को अचानक अपने पिता  के साथ जाते देख शांती बहन के मन मे कुछ संदेह हुआ" माँजी!! मै सुनंदा को अपने  घर  ले जाने आया हू
"हा माँ !!!मैने ही पिताजी को बुला भेजा है"
बात को बीच मे ही काटते माँ दहाड उठी-" जानते हो क्या करने जा रहे हो,समाज के लोग क्या कहेगे?
"माँ आप तो सब जानती थी की --- फिर मै मना  भी करता रहा किंतू आप बिन माँ की बच्ची को प्यार और घर मिल जायेगा कहकर 
समाज मे दिखावे के खातिर  जबरन मेरा विवाह----
 बात यही खत्म होती तब भी ठिक था .सुनंदा तो बिन माँ की प्यार की भूखी थी,उसने मेरे साथ भी  सामंजस्य बैठा लिया आप लोगो से प्यार की लालसा मे.
"तो अब क्या हुआ?"
"हद तो अब हुई है माँ!!"-जब बडे भैया ने---घर के चिराग का वास्ता देकर----
"और भाभी आप??? --"
आप तो एक स्त्री थी,एक स्त्री दुसरी के साथ इस तरह--"
एक मिनट सुनो भैया!!  भाभी बोल पडी जब मैं माँ नही बन पा रही तो बाबुजी ने तुम्हारे भैया को ये सब करने को मजबूर किया  ये कहकर की घर की बात घर मे रहेगी और एक ही घर का खून भी.तब जबरन उनके कमरे मे ठेल दिया गया
हमने विरोध भी किया मगर--हम कमजोर थे शायद.धन्य है सुनंदा वो मजबूत निकली.
सुनंदा का हाथ थामे  सारी जंजीरे तोड रोहन भी  पिताजी के साथ घर की दहलीज लांघ गया

नयना(आरती)कानिटकर

शनिवार, 19 दिसंबर 2015

समरसता-लघु कथा के परिंदे-"बेटी का फ़र्ज"

सुधा  बिस्तर पर पड़े-पड़े सोच रही है  कल "सूमी" की भी फिस भरना है.भैया को क्या जवाब दूँ
"सुनो!!! अचानक सुधीर की आवाज़ से चौक गयी."
"कहो!!"
"क्या बात है कब से देख रहा हूँ सिर्फ़ करवटे बदल रही हो, चुप-चुप भी हो."
"कुछ नही"
"यू घुलते रहने से तो समस्या हल नहीं होगी ना,मैने सुबह फोन पर भैया से बातें करते सुन लिया था"
बाबूजी की लंबी बीमारी के चलते उन्हें जरुरत आन पड़ी होगी,कितनी उम्मीद से पहली बार उन्होने तुमसे सहायता माँगी है.वरना हरदम तो वे देते ही रहे है.
"जाओ बेटी होने का फर्ज अदा करो.कुछ रुपये लाकर रखे है मैने अलमारी मे."
भावविह्हल हो सुधा की आँखें भर आई.सुधीर ने कस कर सुधा का हाथ थाम लिया.

नयना(आरती)कानिटकर
१९/१२/२०१५

शुक्रवार, 18 दिसंबर 2015

लोहे की जाली--- अवसाद लघुकथा के परिंदे

एक दुर्घटना मे अपनी युवा बेटी की मौत के बाद  सुलक्षणा का मानो सब कुछ लूट गया था.सदमे से वह अंधकार के गर्त मे समा सी गई थी.घर, परिवार, मित्र,समाज इन सबसे उसका कोई सरोकार नहीं बचा था.
 प्यारा सा होनहार बेटा भी  इस आग मे झुलसता जा रहा था.आखिर मैने अपने आप पर काबू पाया और सारे सूत्र अपने हाथ मे ले लिये.उसकी हर छोटी -बडी जरुरत का हिस्सा बन गया.हम साथ टीवी देखते,साथ खाते मगर सुलक्षणा ? ,वो रसोई की छोटी-मोटी ज़िम्मेदारी निभा कमरे मे कैद हो जाती.
   बेटा विवाह योग्य हो गया तो मैने ही अपने प्रयासों से रिश्ता ढूंढा.आज वो लोग आ रहे थे"अनुज" से मिलने अपनी बेटी संग.उसके दोस्त विभोर  ने सम्हाल ली सारी ज़िम्मेदारी आवभगत की.सुलक्षणा तैयार होकर आई मगर उसने कोई बात नहीं की. स्वास्थ्य ठीक ना होने का बहाना बना बात को  सम्हाल लिया.
      उनके जाने के बाद बिफ़र पडी सुलक्षणा.---
"आप लोगो ने इतना बडा प्लान मुझे बताए बीना कैसे तय कर लिया.आपको मेरी बेटी के जाने का कोई गम नही है."जानबूझकर आप लोग वही सब नाश्ते की चीज़े लाए जो मेरी बेटी को पसंद थी."
   "अपने आप से बाहर निकलो सुलक्षणा यू कब तक अपने चारों ओर लोहे की जाली बना कर रखोगी. हमारा बेटा भी झुलस रहा  है उसमे.वो उसकी भी बहन थी लेकिन उसके सामने अभी पूरी जिंदगी पडी है ,तुम्हारे इस व्यवहार से वो टूट जायेगा.तुम एक नही दो-दो जिंदगियों को गवा बैठोगी. शुक्र मनाओ तुम्हारे निर्लिप्त आचरण के बावजूद भी वो लोग अपनी लडकी हमारे घर देने को तैयार है."
  मेरे सहलाने से  सुलक्षणा सामान्य हुई.उठो नया वक्त तुम्हारा इंतजार कर रहा है.तभी--अनुज! बेटी निकिता संग दरवाज़े पर खड़ा था.
 .सारा अवसाद आँसू बन बह चुका था.सुलक्षणा ने दौड़ कर निकिता को बाहों मे भर लिया.
नयना(आरती)कानिटकर
१८/१२/२०१५

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असली मुखौटा

अनाथ आश्रम"सहेली" के नियमानुसार बालिग होते ही मुझे अब अपनी व्यवस्था बाहर देखनी थी मैने जूनियर कॉलेज तक की शिक्षा आश्रम मे रहते ही  पूरी कर ली थी.आश्रम के मैनेजर सज्जन सिंह से मुझे विमला देवी का पता थमा उनसे संपर्क करने को कहा था ।
डोरबेल बजाते ही एक उम्रदराज महिला ने दरवाज़ा खोला
"जी   मुझे  सज्जन सिंह जी ने आपके पास भेजा है मेरा नाम---"
मैं आगे कुछ कहती उसके पहले ही हाथ खिंचते हुए वो मुझे अंदर ले गयी थी । ये हे तुम्हारा कमरा और ज्यादा कुछ बोले बगैर दरवाज़ा बंद कर बाहर निकल गई थी । मुझे कुछ अजीब सा लगा उनका बर्ताव ।कुछ घबरा सी गई पर फिर आश्रम के कर्ताधर्ता सेठ हरिशचन्द्र जी को फोन लगाया 
"हलौ!! सेठ जी मैं सुहानी बोल रही हूँ.सज्जन सिंह जी ने मुझे विमला देवी का पता दिया था मगर यहाँ  कुछ---
मेरी बात पुरी होने से पहले ही सेठ जी बोल पडे--
"क्या इतने साल तोड़ी मुफ़्त की रोटी की किमत भी अदा नही करोगी."अब तुम्हें वही करना होगा जो मैं चाहूँगा "
सेठ  हरिशचन्द्र का असली  मुखौटा मेरे सामने आ चुका था ।
इतने सालो विपरीत  परिस्थितीयो से लड़ते हुए मैने भी कच्ची गोलियां नही खेली थी. वहा से भाग निकलने मे कामयाब हुई ।
आज समाचार पत्रो मे सेठ  हरिशचन्द्र का मुखौटा मुख्य पृष्ठ की खबर बन चुका है ।

नयना(आरती)कानिटकर

"माँ को रोटी"


मैने देखा है माँ को
आटा सानते परात में
दो पैरो के बीच  थामकर
और रोटी तो कडेले*१पर जाते हुए
तब मै बैठा होता था उसके सामने
अपनी किताबे फ़ैलाए हुए
सने हाथो से खिसकाती थी वो डिबरी*२

संग बातें करते
चुल्हे की लकडियो को भी
सारते रहती आगे-पिछे
कहती रहती "ताप" सहन करना,
आना चाहिये हमे
बिना आँच लगे कुछ हासिल ना होगा
चुल्के मे पडे अंगारो की रोशनी
कम-ज्यादा होती रहती उसके मुख पर
इतनी आँच मे भी उसकी
 रोटी कभी जली नहीं,हमेशा फूली
सौंधी-सौंधी खुशबू संग
पर अब बच्चो का ऐसा नसीब कहा
कैसे निभाती होगी आग का
कम-ज्यादा करना की रोटी जले ना
जीवन के उतार-चढाव को भी
फूली रोटी के दो समान हिस्सो के समान
थमती रही अलग-अलग
क्या? ये उतार-चढाव झेलना संभव है
झेलना हमारे लिए
माँ को रोटी बनाते देखना भी
बडे तक़दीर की बात है मेरे लिए

*१-कडॆला= मिट्टी का तवा
*२ डीबरी=चिमनी

-----मूळ कवी सतीश सोळंकुरकर
अनुवाद नयना(आरती)कानिटकर

मंगलवार, 15 दिसंबर 2015

"माँ की सीख" मार्गदर्शन विषय आधारित

माँ ने विदा करते हुए कहा था."मेरी लाडो एक बात हमेशा ध्यान रखना अपनी पढ़ाई और मायके का कभी गुरुर ना करना.सबसे बडी  बात जो काम सामने दिखे उसे छोटा समझ कभी टालना मत,ना ही  मैं नही कर सकती तो कभी ना कहना. पहले प्यार बाँटना ,पलट के प्यार ज़रुर मिलेगा.घर की सबसे छोटी बहू बनकर जा रही हो सभी की तुमसे कोई ना कोई अपेक्षा होगी यथा संभव पूरा करना.
कोई रिवाज या कोई आदत जो तुम्हें पसंद ना आये तुरतफ़ुरत बदलने की ना सोचना अपने काम से सिद्ध कर बताना क्या गलत क्या सही.सबसे बडी बात स्वाभिमान सम्हालना पर अभिमान कभी ना करना.माँ की बात गाठ की तरह दहेज़ मे ले आयी थी मैं,तभी तो  ७ जेठ-जिठानी  और  ३ नंनदो के साथ तालमेल बैठाने मे मुझे कोई तकलिफ़ नही हुई.सबसे बडी बात की इतने बडे परिवार मे अब मेरे सिवा कोई पत्ता नही हिलता.
     वैसे ये कोई नयी बात तो ना है. हर माँ अपनी बेटी को ये सब बताती थी .
मगर ये आजकल की पीढी "पहले स्वंय से प्यार करो" के चक्कर मे "स्व" तक इतनी ज्यादा   सीमित हो गयी है कि  त्याग ,समझौता क्या होता है भूल गयी है.
 सारिका तो मुझे भी कहती रहती है -"माँ कितना काम करोगी कभी अपने मन का भी तो करो किंतु  सच बताऊँ सबको आनंदी (खुश) देखना मुझे ज्यादा भाता है. आज मैने ठान लिया चाहे मेरा मार्गदर्शन बुरा लगे पर मैं तो---.
आज बेटी की डोली विदा करते वक्त ये कान मंत्र मैने धीरे से उसके कान मे  फूंक ही दिया.

नयना(आरती) कानिटकर
१५/१२/२०१५

सोमवार, 14 दिसंबर 2015

"ओव्हरटाइम -"-विषय आधरित "चक्करघिन्नी "--लघु कथा के परिंदे

"रेखा!! मेरे मोजे-रुमाल कहाँ है,ओहोSSS शर्ट भी नही निकाल कर रखा तुमने-पता नही क्या करती रहती हो.
"सब कुछ  वही तो है अलमारी मे,तुम्हारा हिस्सा तय है उसी मे दिन-वार के हिसाब से तह करके रखती हूँ.उसमे से भी निकालने मे जोर आता है तुम्हें. मुझे भी तो ऑफ़िस जाना है." सुबह से लगी हूँ फिर भी
"चुप करो रेखा तुम मेरी बीबी हो ये सब काम तुम्हें करने ही होगें.वैसे भी वहा तो तुम नैन मट्टका करने---
वैसे भी मै आजकल आफ़िस मे ओव्हरटाइम काम कर रहा हू.
"सुनो अमित!! माँ ने बीच मे ही बात काटते हुए बोला--एक बात ध्यान से सुन लो रेखा भी घर-गृहस्थी सम्हालते हुए नौकरी कर तुम्हारे आर्थिक भार मे बराबरी से हाथ बंटा रही है.सुबह से रात  तक चक्करघिन्नी बन घूमती रहती है  वो तुमसे ज्यादा घंटे काम करती है और ये नैनमट्टक्के वाली बात -अपनी ज़बान पर काबू रखो , पहले अपनी बगले झांको वैसे भी मैं  तुम्हारी रग-रग से वाक़िफ़  हूँ.

"माँ !! मैं आपका बेटा होते हुए भी आप रेखा का पक्ष ----"
 एक स्त्री होकर भी मैं स्त्री को ना समझ पाई तो मुझसे बडा अपराधी कोई नहीं.
नयना(आरती) कानिटकर
१४/१२/२०१५

" बदला"

न्यायालय परिसर से बाहर निकलते ही सभी समाचार पत्रों के कुछ तथाकथित   पत्रकार  उसे घेर लेते है ।
पत्रकार--"महिला होकर भी बंदूक -चाकू जैसे अपने साथ रखने की वजह  । "
" वर्ग विशेष से सामूहिक बलात्कार और शोषण के खिलाफ़ बदला । "
"मगर आप ऐसे वर्ग से आती है जो मजदूरी कर पेट पालता है । इतने बडे नर संहार की जगह गाँव छोड उनके चंगुल से बचा जा सकता था ।
"शर्म करो तथाकथित पढे-लिखे लोगो-- कब तक और कहाँ तक भागती ,ये तो  मेरा पलायन हो जाता अपने अधिकारों के खिलाफ़ आवाज़ उठाने का । "
"तभी दूसरा--- ये काम तो सरकार का था  । शिकायत दर्ज की जा सकती थी उनके खिलाफ़ । बंदूक उठाना तो अपराध हुआ । "
  "लोगो के सुरक्षा की ज़िम्मेदारी तो सरकार पर है । अपराध तो सरकार कर रही है ऐसे लोगो को संरक्षण देकर वोट के ख़ातिर ।
"तो अब आगे क्या  मुफ़्त की रोटी तोड़कर----- । "
"नही-नही!!-अब निकम्मो के खिलाफ़ सरकार मे जाकर बदला लूंगी । ."

शुक्रवार, 11 दिसंबर 2015

" जिंदगी की आस"

. बहुत तेज बारिश मे अपनी संगिनी संग छाता थामे   सेना निवृत सैन्य अधिकारी  को इंतजार था अपने पोते आयुश्यमान के कोफ़िन (शव पेटी) का जो सेना के विशिष्ठ विमान से लाई जा रही थी .
 अपने बेटे की शहादत भी वो देख चूँके थे ऐसे मे उनकी सारी जिंदगी सिर्फ़ आयुष्यमान  के इर्दगिर्द सिमट गई थी. उनका पोता भी  भारत माता की रक्षा के ख़ातिर सीमा पर तैनात था.जो पहाड़ियों  पर एक अभियान   मे  शहीद हो गया. ये उनकी तीसरी पीढी थी जो देश सेवा करते हुए शहादत को प्राप्त हुई. भरी बारिश मे सेना उनके पोते  को अंतिम सलामी दे रही थी
 नीली छतरी वाला भी भर-भर आँसू बहा  शायद श्रद्धांजलि दे रहा था.ये हादसा उनके पोते के साथ नही  उनके साथ हुआ था. हादसे मे वो नही मरा ये मर गये थे अंदर तक.
सज्जनसिंग छाती पर हाथ थामे अधीर हो रहे थे उस मंजर को देख मगर   पथाराई सी सुहासिनी ने उनका हाथ  थाम रख था मज़बूती से पुन:जिंदगी की आस मे.
नयना(आरती) कानिटकर.

गुरुवार, 10 दिसंबर 2015

संघर्ष

जलती रही मैं तिल-तिल
संघर्ष मे, व्यंग बाणो से
कभी अपनो के तो
कभी परायो के।
"नयना"

सोंधी खुशबू

सीखती रही मैं उम्र भर
रोटी का
गोल बेला जाना
फिर भी पडती रही
सीलवटे उसमें
जो माकूल आग में
सिंकने पर भी
नहीं हो पाई सोंधी खुशबू वाली
नर्म और फूली -फूली

"नयना"

मंगलवार, 8 दिसंबर 2015

गुजारिश----मुठ्ठी से रेत

कैलेंडर  का पन्ना पलटते ही उसकी नजर तारीख़ पर थम गई। विवाह का दिन उसके आँखो के आगे चलचित्र सा घूम रहा था।.सुशिक्षित खुबसुरत नेहा और आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक नीरज की जोडी को देख सब सिर्फ़ वाह-वाह करते रह गये थे.वक्त तेजी से गुज़र रहा था।.
जल्द ही नेहा की झोली मे प्यारे से दो जुडवा बच्चे बेटा नीरव और बेटी निशीता के रुप मे आ गये।.तभी --
वक्त ने अचानक करवट बदली बच्चों के पालन-पोषण मे व्यस्त नेहा खुद  पर व रिश्ते पर इतना ध्यान ना दे पाई । उसके  के हाथ से नीरज मुट्ठी से रेत की तरह फ़िसलता चला गया और एक दिन विवाह की वर्षगांठ पर उस पर अनाकर्षक का तमगा लगाकर हमेशा के लिये चला गया किसी दुसरी  बेइन्तहां ख़ूबसूरत चित्ताकर्षक यौवना का हाथ थाम कर ।
वो एकल अभिभावक बन गई बच्चों की।
वो चार दिन की चाँदनी  थी कब तक चमकती अँधेरी रात तो होनी  ही थी. उसका सब कुछ उसकी सारी धन-दौलत,  बची- खुची इज़्ज़त मिट्टी में मिला कर जा चुकी थी। अब नेहा के पास लौटने अलावा कोई चारा ना था।
अचानक डोर बेल की आवाज से उसकी तंद्रा भंग हुई।दरवाज़ा खोलते ही ,सामने बढी  हुई दाढ़ी और अस्तव्यस्त कपड़ों मे नीरज को देख दरवाज़ा बंद करने--
" रुको नेहा !! मैं तुमसे अपनी ग़लती की माफ़ी मांगता हूँ ,तुमसे  सिर्फ़ एक गुज़ारिश है मुझे मेरे बच्चों से दूर ना करो" बच्चों का वास्ता देकर वो-वो गिड़गिड़ाने सा लगा--

"कौन से तुम्हारे बच्चे?? ज़िम्मेदारी से हाथ झटकने वाले को मेरे घर मे कोई जगह नही है।"

नयना(आरती) कानिटकर

सोमवार, 7 दिसंबर 2015

"आभासी रंग"----चित्र प्रतियोगिता

"बादल !! देखो कितनी सुन्दर हरियाली , चलो हम कुछ देर यही टहलते है."
वो देखो मानव और प्रकृति भी है .संग नृत्य करेगे.
"बादल ने हवा का हाथ पकडते हुए  गुस्से मे कहा-- चलो!! यहाँ से  धरती माँ की गोद  मे  जहाँ सिर्फ़ प्रकृति बहन ही हो. हम वहा नृत्य करेगे".मानव तो कब का उसे छोड चुका है,बेचारी मेरी प्रकृति बहना
" बादल !!  ऐसा क्यो कह रहे हो. ये हरा रंग देखो चारो ओर कितना लुभावना है,प्रकृति का ही तो --."
" नही नही" हवा!!  अब यहाँ ना फूल है ,ना तितली,ना जंगली जानवर.बस! मानव निर्मित अट्टलिकाऎ है.अब हमे यहाँ नही रहना.
 यह तो आभासी है.इसे मानव ने हरे नोटो के साथ हरा रंग दिया है"
.
नयना(आरती) कानिटकर
05/12/2015

शनिवार, 5 दिसंबर 2015

"अब लौट चले" व्यवहारिकता का चेहरा-लघु कथा के परिदे

सुरेखा कब से देख रही थी आज माँ-बाबूजी पता नहीं इतना क्या सामान समेट रहे है। बीच मे ही बाबूजी बैंक भी हो आए.एक दो बार उनके कमरे मे झांक भी आयी चाय देने के बहाने मगर पूछ ना पाई।
"माँ-बाबूजी नही दिख रहे ,कहाँ है.?"सुदेश ने पूछा
"अपने कमरे मे आज दिन भर से ना जाने क्या कर रहे है। मैं तो संकोच के मारे पूछ भी नही पा रही.तभी---
आप कहाँ जा रहे है बाबूजी आप ने पहले कुछ भी नहीं बताया.सुदेश बोल पडा--
मैं और माँ अब गाँव मे रहेंगे।
"हमसे क्या गलती हो गई माँ??,बाबूजी??"
बस बेटा गाँव का घर अब हमे पुकार रहा है.वहा हमारी १-२ बीघा ज़मीन है उसी मे भाजी- तरकारी लगा लेगे , फिर मेरी पेंशन काफ़ी है हम-दोनो के लिये,तुम चिंता ना करो।
बहुत भाग-दौड़ कर ली ता उम्र पैसे और तुम्हारी शिक्षा के लिये.अब बस सुकून के दो पल प्रकृति के सानिध्य मे बिताना चाहते  है.. ये हमारे वानप्रस्थाश्रम का समय है।
-- सुरेखा!!!ये लो इस घर की चाबियाँ आज से यह तुम्हारा हुआ।
पत्नी का हाथ थामते हुए बोले---"चलो जानकी!! अब लौट चले।"
नयना(आरती)कानिटकर
०४/१२/२०१५
मौलिक एंव अप्रकाशित
०४/१२/२०१५


हाँ बेटा हमारे पूर्वजो ने बडी सोच के साथ जीवन को ४ भागो मे विभाजित किया था

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2015

प्यार की गुलामी-कघुकथा के परिंदे गुलामी का अनुबंध

अंतिम सांस की आहट और खड़खड़ाहट गूंजती है अब भी कानों में मेरे. महसूसती हूँ आज भी अंतिम स्पर्श और सुनाई देती है अंतिम मौन की चीख ....
निर्जीव देह एक नही दो-दो---जीवन यात्रा का पूर्ण विराम.
वक्त के साथ सफर जारी है मेरा--मगर कब तक
’माँ उठो !! देखो ये पापा की तस्वीर के आगे कब तक यू सिर झुकाए ------"
"तेरे पापा के साथ मेरा अनुबंध था बेटा सात जन्मो का प्यार की गुलामी... . बहुत इंतजार किया बस अब और नहीं
ॐ नमो नरायण ॐ नमो नरायण ॐ शांति शांति शांति......
नयना(आरती) कानिटकर


गुरुवार, 3 दिसंबर 2015

मंजर

आज भी फूंलती है सांसे
धडकता है दिल जोरो से
जब देखती हूँ सरे आम
सिगरेट का कश लेना
या फिर गलबहिया डाले
चौराहे पर घूमना उसका
आँखो के आगे नाच उठता है
वो खौफ़नाकर मंजर
स्त्रीत्व के खंड-खंड होने का
नयना(आरती) कानिटकर ०३/१२/२०१५

घूंघट का संकल्प


           बचपन से गाँव की चिरपरिचित बुराइयों को देखती आ रही  वह अब  सयानी हो चुकी थी और सब कुछ समझने लगी थी. अपने ही गाँव के सारे पुरुषों को हमेशा दिन मे बड के पेड के निचले चबुतरे पर 'तीन-पत्तीखेलते देखा था या फिर शाम होते ही शराब के नशे मे धुत्त .. सोचती क्या यही है यह पुरुष ?
 
जबकि उसके गाँव की स्त्रियाँ भोर होते ही घर का काम निपटा खेतो की ओर चल देती शाम तक खेतों में निराई-गुडाई के साथ-साथ मजदूरी करती नही थकती थी आख़िर पापी पेट का सवाल था।   वह  बडी असमंजस में थी जब देखती और सुनती की साँझ ढले घर आने पर थके शरीर पर पिल पड़ते सबके मरद ...
  
ये देख उसका तो सारा तन-बदन अंगार की तरह जल उठाता था। उसके मन पर  गहरा प्रभाव छोड़ चुकी थी यह रोज की हक़ीकत।   बस अब उसने ठान ली थी की उसका बस चले तो सब कुछ बदलने की ... पर कैसे ?
   बहुत सोच समझकर उसने
गाँव की स्त्रियों को इकट्ठा कर इस पर चर्चा की और सबकी राय जानी। इसके बाद सहमति से  पहले अवैध शराब की बिक्री पर रोक के लिए पंचायत पर धरना दिया घर-घर जाकर पुरुषों को समझाईश .. कुछ की समझ में आया कुछ निरे खूसट निकले
 सब महिलाओ ने सर्वसम्मति से "नशा मुक्ति"
और" जुआ बंदी"  का अभियान चलाया
     अब उसकी संकल्प शक्ति रंग दिखाने लगी  थी और जल्द ही गाँव की हर स्त्री का साथ उसे मिलने लगा - वह सबका दिल जीतने में कामयाब रही थी
और फिर वह दिन आ गया जब--
  सगुन बाई सर्वसम्मति से ग्राम पंचायत छाईकुआं की सरपंच चुन ली गई

    उसका सपना अब सच होने वाला था उसकी आँस जाग उठी  वह खुश थी अपने गाँव की स्त्रियों के मनोबल को देखकर
.
      उसने सरपंच की हैसियत से बचपन से हृदय में बिधे  कोलाहल को समाप्त करने की घोषणा की ---
   "
शराब पीता या जुआँ खेलता गाँव का कोई भी पुरुष नजर आयेगा या पकड़ा जायेगा तो उसके जूते-टोपी उतार उसे गाँव की सीमा के बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा "
        आज उसका पहला साक्षात्कार था कोई विदेशी पत्रकार गाँव में आई हुई थी .. गाँव टौरियाँ की किस्मत अब दुनिया देखने वाली थी !
      काश पूरा हिन्दुस्तान भी इसी तरह बेहतर हो--क्या हो पाएगा ऐसा?


  "निश्चित हो सकेगा । इसी तरह की दृढ संकल्प शक्ति के साथ"

 

मौलिक  एवं अप्रकाशित

मंगलवार, 1 दिसंबर 2015

"व्रत"फासले---विषय आधारित


गुड मार्निग दोस्तो कैसे हो सब लोग ?रात को अच्छे से नींद आई ना सबको, नेहा ने जैसे ही वार्ड मे प्रवेश किया सभी के चेहरे पर मुस्कान छा गई।”
नेहा रोज के नियमानुसार सभी के हाथों गुलाब का फूल थमाते उनको प्यार की झप्पी देती जा रही थी ।तभी--
“रुको नेहा!!!हाथ थामते हुए निमेश ने कहा-तुम्हारी सेवा से मेरे मन का सारा मैल धुल चूका हैं।”
“वो मेरी बड़ी भुल थी । मुझे माफ कर दो मुझे अपने किए का पछतावा हैं और फिर तुम जो मेरी सेवाss---
“नहीं-नहीं ये अब ना हो पाएगा । वो तो मैने नर्स की ट्रेनिंग के बाद सेवा की ली हुई शपथ का परिणाम है।
“निमेश!!शरीर के घाव तो दवा से मिट सकते हैं ,दिल पर जो गहरा घाव तुमने दिया उसे भूलना असंभव है।
हमारे बीच के फासले को अब यू ही रहने दो।"
हाथ छुडा नेहा अगले मरीज की तरफ बढ़ गई।
नयना(आरती)कानिटकर
०१/१२/२०१५

शनिवार, 28 नवंबर 2015

कैद से मुक्त

जब से ब्याकर इस घर मे आयी पति और सासू माँ के इशारे पर ही नाचती रही | सासू माँ दबंग महिला थी अपनी हर बात सही साबित करती और उसे मनवा कर ही दम लेती |
पति देव भी जब-तब छोटी-छोटी बात पर उसे तलाक के लिये धमकाते रहते | फिर भी इन सब परिस्थितियों से लढ़कर चुपचाप रात के अंधेरे मे उसने सिविल सेवा  की तैयारी की थी |
    आज उसका परिणाम निकला था उसे डिप्टी कलेक्टर के पद के लिये चुन लिया गया था .समाचार पत्र मे उसकी तस्वीर सहित परिणाम घोषित हुआ था.
   आज दोनो के मुँह पर ताला जड गया  और वो सांसों की  कैद से मुक्त |
नयना(आरती) कानिटकर
२८/११/२०१५

जरा सी गिरह

हरे रंग की लाल किनारी वाली साड़ी मे सुनयना का रुप जैसे और खिल आया था.
"राज ने छेडा भी उसे "ओहोSS !!! क्या बात है,आज तो ग़जब ढा रही हो."
"हा!! राज आज रक्षा बंधन है ना मुझे "कान्हा"  को राखी बांधनी है .वो मेरे मित्र ,मेरे भाई सभी  तो है .मेरा  अपना भाई तो  नाराज़------"आँखें भर आई सुनयना की.
तभी द्वार की घंटी बजी--- सामने सुजीत को देख ,सब कुछ भूल गई और उसे गले से लगा लिया .
"जरा सी गिरह से तू कितना नाराज गो गया मेरे छुटकू"
भाग कर  अंदर गयी और जल्दी से आरती की थाली ला रक्षा सूत्र उसके हाथ मे बांध दिया.
  आज सुजीत मे उसने कान्हा का रुप देख लिया था.

नयना (आरती) कानिटकर
२८/११/२०१५

शुक्रवार, 27 नवंबर 2015

"खरीददार"

अवध सिंग ने जब कोठे मे प्रवेश किया तो सारा कमरा शराब की गंध से भर उठा.
वह  अवध को लगभग खिंचते उसे दूसरे कमरे मे ले जाने लगी. तभी उसकी नजर
"अरे!!! ये ये कौन चम्पाकली है तेरे संग. आज तू इसे मुझे सौंप दे. वैसे भी तू अब सूखा फूल---"
"नागिन की तरह फ़ूफ़कार उठी कमला.मजबूरी मे बिकी थी मैं."
"तू!!! मेरी बेटी का खरीददार नहीं हो सकता."
उसे बाहर ठैल भडाक से दरवाज़ा बंद कर लिया.
नयना(आरती) कानिटकर
२७/११/२०१५

"नीला आकाश"

सुन्दर वस्तुओ के प्रदर्शनी के एक स्टॉल पर एक हिरे-मोती का व्यापारी और एक सोने का व्यापारी आ पहुँचते है। दोनो भिन्न-भिन्न चीज़े देखते तभी उनकी नजर एक कोने मे पिंजरे मे रखी सफ़ेद मैना पर जाती है,दोनो का मन मोह उठता है उसपर।
" भाई तुम बाकी चीज़े तो रहने दो मुझे ये सफ़ेद मैना बेच दो मैं इसे रोज मोती के दाने चूगाऊँगा।"
"तुम इन्हे छोड़ मुझे बेच दो मैं इसके लिये सोने का पिंजरा बनवा दूँगा ये इस लोहे के पिंजरे मे शोभा नही देती।"
दोनो व्यापारी ही आपस मे उलझ पड़ते है उसे ख़रीदने को.
"नहीं-नहीं मैं इसे नहीं बेच सकता ये तो मेरी जान है।" इसे बेचकर मे------
दोनो बहुत दबाव डालते है उस पर मैना को बेच देने के लिये।
हार कर वो कहता है --"ये मैना इंसानी भाषा जानती व बोलती है।एक काम करता हूँ इसका पिंजरा खोल देता हूँ,ये जिसके भी कांधे पर बैठेगी ,उसी की हो जायेगी।
पिंजरा खुलते ही मैना फ़ुर्र्र्र्र्र्र्र से उड जाती है--"मुझे ना तो मोती चाहिए ना सोने का पिंजरा।"
" वो देखो नीला आकाश बाहे फ़ैलाए मेरा इंतजार कर रहा है।"
नयना(आरती) कानिटकर
२७/११/२०१५



मुझे जीने दो-विषयआधारित

अस्पताल पहूँचते ही  हृदय जोर-जोर से धड़कने लगा,कही इस बार भी डाक्टर ने लड़की---
" तभी नर्स ने आवाज़ लगाई सुगंधा!!!--आइए"
जाँच के लिये डाक्टर ने जैसे ही स्टैथौस्कोप लगाया. अंदर से आवाज़ आई-"मुझे जीने दो" "मुझे जीने दो"
 डाक्टर ने इस बार स्टैथौस्कोप का डायफ़्राम पेट पर रख ईयरटिप मेरे कानों मे लगा दी थी.फिर आवाज़ गुंजी"मुझे बचा लो माँSSSS "प्लीज़ "मुझे जीने दो".मेरा शरीर बुरी तरह थरथर कांपने लगा.
 पसीने से तरबतर  डाक्टर के हाथों से स्टैथौस्कोप नीचे गिर गया और वे धम्म से कुर्सी मे समा गई.
नयना(आरती) कानिटकर
२७/११/२०१५


गुरुवार, 26 नवंबर 2015

व्यक्तित्व निर्माण


 चारों ओर चमकती रौशनी,डीजे पर थिरकति जोड़ियाँ,भिन्न-भिन्न व्यंजनो की खुशबू  ने पूरे वातावरण मे मादकता घोल दी  थी। पार्टी पूरे शवाब पर थी कि अचानक एक समूह से तल्ख बातचीत की आवाज़ सुनाई दी.अमित अंजू   से बडी तल्खि से पेश आ रहा था। आदिश ने जब एतराज़ जताया तो वह उससे उलझ पडा और फिर बात तू-तू,मैं-मैं तक पहुँच गयी।
     जरा चलो अमित!!अंजू ने बाँह पकड़ लगभग खिंचते हुए उसे कुर्सी  पर बैठाया। प्यार से उसका हाथ पकड़ माथे पर बच्चों सा सहलाने लगी। सभी का ध्यान उसकी और खींच गया। थोड़ी ही देर मे सामान्य होने पर वह उसका हाथ थामे डांस फ़्लोर पर थिरकने लगी,अमित भी अब सामान्य हो अन्य गतिविधियों मे संलग्न हो गया।
"अंजू तुम कैसे सह लेती हो अमित का यह व्यवहार,मैं तो जरा भी बर्दाश्त नहीं कर पाऊँगी.फिर तुम मे भी क्या कमी है। "
"बात कमी कि नहीं है नेहा!! तू तो जानती हो अमित एक भयंकर कार दुर्घटना से उबरकर हमारे साथ है। पुनर्जीवन मिला है उन्हे । दवाओं ने उन पर बुरा असर डाला है।
अभी मेरे बच्चे भी बडे हो रहे है ,सबसे बडी बात उनके व्यक्तित्व निर्माण का दौर चल  है ये। ऐसे मे अमित रूपी नींव के डगमगाते खंभे को मैं ही तो मज़बूती से थाम सकती हूँ। तभी माइक पर आवाज़ गुंजी---
" आज के ईवेंट के बेस्ट कपल है----"
अमित ने कस कर अंजू का हाथ थाम लिया।
नयना(आरती) कानिटकर

पहला सेल्फ़ी

हमारे दोनो बच्चे छोटे-छोटे थे.  दोनो को अचानक घूमने जाने का बहुत शौक चढ़ आया।  जिद  कर बैठे शिमला-मनाली जाने क। परिवार के साथ .... पूरे १० तीन का टूर प्लान किया था हमने। रेल्वे के स्लिपर क्लास और पब्लिक ट्रांसपोर्ट से घूमना ...आहा !! कितना आनंद दायक था।
      गंतव्य तक  पहुँच कर वहाँ रूकने के लिए होटल में सस्ता कमरा तलाशने के लिए तुम बाहर होकर आते मैं बच्चों और  सामान के साथ प्रतीक्षालय मे बैठकर इंतजार करती।
.... हम कई जगह  घूमें .....लेकिन तरीका ये होता कि एक जगह से दूसरे जगह   बस से रात के सफ़र का टिकट लेते कोई एक ही जाकर ...फिर रूकते भी एक ही कमरा लेकर .. सामान उसमें रख देते बारी-बारी नहाकर तैयार होते ,नाश्ता साथ करते ...और अपनी पसंद के अनुसार घूमते दिन भर ।  तब हमारे पास एक कैमरा था पुराना.आखिरी दिन  बिटिया ने  कैमरा सेट कर भागकर मेरे पिछे गले मे बाहें डालकर और बेटा तुम्हारे गले मे बाहें डाले "पहला सेल्फ़ि "लिया था हमने । बाद मे दो कापी बनाई  थी ,  ताकी दोनो बच्चे फोटो के लिये आपस मे झगड़ा ना करे । दोनो ने अपने-अपने बक्से मे रख दिया उसे सहेज कर।
   बेटी को विदा करने के बाद आज जब सब मेहमान भी रवाना हो गये ,तो मैने बेटी की यादों का बक्सा खोल लिया और ये तस्वीर हाथ आ गयी. तभी तुम भी पहुँच गये.
    बेटी के साथ गुजारे  क्षणों का " थोडा सा चंद्रमा "सिमट आया मेरे आँचल मे और तुम भी भावुक हो गये.
नयना(आरती) कानिटकर

मंगलवार, 24 नवंबर 2015

उत्तराधिकारी

        अत्यंत रुपवती स्नेहल के लिये सिर्फ़ एक रुपया और सुपारी मे सेठ करोडीमल की ओर से रिश्ता चल कर आया तो माँ-बाबा पहले तो डर गये मगर अपनी गरीबी परिस्थिति देख रिश्ता स्वीकार कर लिया था.
      विवाह पश्चात एक अत्यंत साधारण परिवार से निकल जब गोकुलधाम मे  कदम रखा तो    सिर्फ़ बाबा की बातें गांठ बांध कर लाई थी.
" बेटा देने को मेरे पास कुछ नहीं है,बस संस्कारो की गठरी तुम्हें सौंप रहा हूँ.मेरा मान रख पति और ससुराल वालो से  सामंजस्य बैठा लेना . यहाँ तो तुम्हें मे ठिक से दो जून रोटी भी नही खिला सका,वहाँ तुम्हें दोनो वक्त की रोटी तो भर पेट मिलेगी.
    अपने प्यार से ,बर्ताव से मैने उनके बेटे के साथ-साथ सेठ का दिल भी जीत लिया था जब  उनका निकम्मा बेटा भी उनके काम मे हाथ बटाने लगा था."
       गहन चिकित्सा कक्ष मे भर्ती सेठ करोडीमल के सिरहाने बैठी वो इसी सोच मे मग्न थी.
   तभी सेठ करोडीमल भी आँखो  के इशारे से उसे पास बुलाते हुए एक लिफ़ाफा थमा खोलने को कहते  है .
आज वैकुंठ चतुर्दशी है ना ?  आज तुम्हारा जन्मदिन है,ईश्वर तुम्हें वो हर खुशी प्रदान करे जिसकी तुम हक़दार हो.जन्मदिन के अनेक आशीष के साथ वसियत  देख--."
                 " आज से तुम्हें  इस  गोकुलधाम एम्पायर की उत्तराधिकारी घोषित करता हूँ "-- आज मेरे घर भी तुम्हारे रुप मे एक बेटी का जन्म हुआ है ."
नयना(आरती)कानिटकर

इबादत -२

---- इबादत ---(प्रतियोगिता के लिये) -गागर मे सागर "सच्ची उपासना"
आँख खुलते ही गुलाब का फूल हाथों मे थमाते दादी ने कहा!!!--"जन्मदिन की शुभकामनाएँ और ढेरों आशीष,आज का दिन तुम्हारे जीवन मे अनेक सौगाते लाए एकदम अलग सा दिन हो तुम्हारा
।"
वाह पापा!!! आप मेरे लिये क्या उपहार लाये है और हमारा बर्थ डे केक कहाँ  है?
रेखा ने नयी  गुलाबी फ़्राक थमाते हुए कहा--रुकिये सलोनी!!!  पहले दैनिक कार्यो से निवृत हो स्नान कीजिए फिर हम सबसे पहले उस ईश्वर को धन्यवाद करने मंदिर जाएंगे जिसने इतना सुंदर तोहफ़ा तुम्हारे रुप मे हमे दिया है.
"वाह कितनी सुंदर फ़्राक."
"चलिये पापा,माँ,दादी मैं तैयार होकर आ गई हूँ
। जल्दी केक लाईये।"
"रुको बेटा !! आज पहले  केक  नही कटेगा। पहले गाड़ी मे बैठो हमे कही जाना है  फिर--"
ओह!! दादी अब मैं बड़ी हो गई हूँ पूरे ६ साल की फिर भी आप ठिक से कुछ नही बता रहे मुझे।"
गाड़ी एक अनाथ-विकलांग बच्चों के स्कूल के आगे रुकते ही--बच्चे द्वार तक आकर अपनी-अपनी क्षमता से गाने लगते है---"हैप्पी बर्थ डे टू यू--हैप्पी बर्थ डे टू यू".
सलोनी आनंद विभोर हो उठती है. मगर" पापा,दादी आप तो किसी मंदिर जाने की बात कर रहे थे."
बेटा!! इन बच्चों मे ही सच्चा ईश्वर वास है.इन बच्चों के चेहरे की खुशी को देखो। नियती ने इनसे कुछ ना कुछ छिन लिया,लेकिन हमारे जैसे परिपूर्ण लोग इन्हे ख़ुशियाँ बाटकर उस सर्वशक्तिमान की सच्ची उपासना (इबादत) कर सकते है
सलोनी -तोहफ़े से भरे बक्से से सुंदर-सुंदर उपहार निकाल उन्हे बाँटने लगती है


नयना(आरती) कानिटकर

2)गाड़ी एक अनाथ-विकलांग बच्चों के स्कूल के आगे रुकते ही--बच्चे हाथों मे फूल थामे द्वार तक आकर अपनी-अपनी क्षमता से गाने लगते है---"हैप्पी बर्थ डे टू यू--हैप्पी बर्थ डे टू यू".
सलोनी आनंद विभोर हो उठती है. " पापा,दादी !! मगर आप मेरे जन्मदिन के उपलक्ष्य मे  किसी मंदिर जाने की बात कर रहे थे."
ओह!! अब समझी  दादी !!!आपने सुबह आँख खुलते ही गुलाब का फूल हाथों मे थमाते हुए इसीलिए कहा!!!--"जन्मदिन की शुभकामनाएँ और ढेरों आशीष,आज का दिन तुम्हारे जीवन मे अनेक सौगाते लाए और एकदम अलग सा दिन हो तुम्हारा।"जी  हाँ बेटा!! इन बच्चों मे ही सच्चा ईश्वर वास है.इन बच्चों के चेहरे की खुशी को देखो। नियती ने इनसे कुछ ना कुछ छिन लिया,लेकिन हमारे जैसे परिपूर्ण लोग इन्हे ख़ुशियाँ बाटकर उस सर्वशक्तिमान की सच्ची उपासना (इबादत) कर सकते है सलोनी -पापा के लाए तोहफ़े से भरे बक्से से सुंदर-सुंदर उपहार निकाल उन्हे बाँटने लगती है
नयना(आरती) कानिटकर

सोमवार, 23 नवंबर 2015

इबादत-३

  पुलिस के कडे सुरक्षा घेरे  के बीच जब  उन्हे न्यायालय  परिसर मे लाया गया तो बिरादरी और आम लोगो की  नज़रों से बचने  के लिये वह अपना मुँह ढाक पिता के पिछे-पिछे चली आई।

        उसे अपने किये का  जरा भी रंज नही था
 सेना और आतंकी मुठभेड़ मे एक आतंकी उनके घर मे घुस आया था।तब डर के मारे उन्होने उसे पनाह दी थी मगर----
   सुबह के धुंदलके   मे  उसे अचानक अपने शरीर पर किसी का स्पर्श महसूस होता है.।"
वह हिम्मत से काम ले अपने सिरहाने रखी दराती (हँसिया) उठा अचानक उसके दोनो हाथों पर ज़बरदस्त वार कर देती है।
  वह चिखते हुए भागने की कोशिश मे उसके पिता के हाथ पड जाता है और अंत में------
अब्बा  को  भी अपने किये का ना कोई दुख ,ना कोई   शिकन ---
.ईद के मौके पर आज उनकी बेटी ने बिरादरी पर लगे कलंक की बलि देकर  अल्लाह की सच्ची इबादत की है।


शनिवार, 21 नवंबर 2015

"आभा

---"जीवन रेल"--- रुपा माँ बनने वाली थी.मै भी बहूत खुश था मैं मारे खुशी के उसे उठाकर झुमने वाला था कि माँ जोर से बोल पडी-
"सुन मास्टरनी मैं तो बेटा चाहू हूँ। जिला अस्पताल जाकर जाँच करा लियो जल्दी से बेटी हुई तो गाँव की दाई के बुलवा----.
"मास्टरनी होगी तु अपने स्कुल की मेरे घर मे रौब ना झाडना,घर मे तो मैं ही मास्टरनी हूँ याद रखियो। "
बिफ़र पडी थी रुपा माँ पर और मुझ पर भी।
मैं भी समझती हूँ महेश!!! क्या तुम भी मेरा साथ नहीं दोगे मेरी चुप्पी ने उसे अंदर तक तोड दिया था। फिर बीना बताए चुपचाप वह घर छोड़ गई थी
मेरी हर शाम रुपा के इंतजार मे पटरियो पर गुजरने लगी.सोचता ये लोहे की पटरियां भी तो कही ना कही एकबार मिलती फिर मुडती भी है, रास्ता बदलने के लिए। एक बार तुम मिल जाओ तो मै इस बार सब-कुछ छोड़ तुम्हारे साथ चल दूँगा।
पता नही मैं बाप बना हूँ -- इसी उधेडबुन मे था कि मोबाईल की घंटी बज उठी--
हैलो महेश!!!! में रुपा बोल रही हूँ ट्रेन मे हूँ बस पहुचने ही वाली हूँ गाँव।
हैलो रुपा!!!! क्या ----.तभी बातचीत कट जाती है।
पटरियों से उठ दौडकर स्टेशन पहुँचता हूँ. रुपा सामने ही खडी है।
ये लो महेश!! हमारे जीवन रेल को चलायमान करने वाली हमारी बेटी।
हमारे जीवन मे "आभा" बिखेरने को आतुर।
नयना(आरती)कानिटकर
२१/११/२०१५

जीवन रेल

"मास्टरनी होगी तु अपने स्कुल की मेरे घर मे रौब ना झाडना,घर मे तो मैं ही मास्टरनी हूँ याद रखियो। "
  गाँव के प्रायमरी स्कूल की शिक्षिका "रुपा" माँ की बुजुर्गियत का ख्याल रख   चुपचाप ताने सुनती रहती।
मै भी उसे समझाता रहता --हर दिन एक से नहीं होते धिरज रखो हमारी जिंदगी की रेल भी पटरी पर दौडेगी. तभी --
"सुनो!!! महेश मैं माँ बनने वाली हूँ। "
मैं मारे खुशी के उसे उठाकर झुमने वाला था कि माँ जोर से बोल पडी--
"सुन मास्टरनी मैं तो बेटा चाहू हूँ। जिला अस्पताल जाकर जाँच करा लियो जल्दी से बेटी हुई तो गाँव की दाई के बुलवा----.
बिफ़र पडी रुपा माँ पर और मुझ पर भी।
  मैं भी समझती हूँ महेश!!! बुज़ुर्ग का सम्मान करना किंतु क्या तुम भी मेरा साथ नहीं दोगे मेरी चुप्पी ने उसे अंदर तक तोड दिया और फिर बीना बताए चुपचाप उसने घर छोड़ दिया।
 पूरा एक अरसा गुज़र गया  बहुत खोजा था उसे। आखिर हार कर रोज शाम को पटरी पर आ बैठता रुपा के आने के इंतजार मे हर गाड़ी को तकता सोचता रहता था कि  हमारी पटरियों के बीच की दूरी आखिर इतनी लंबी क्यो है? ये  लोहे की पटरियां भी तो कही ना कही एकबार मिलती फिर मुडती भी है, रास्ता बदलने के लिए। एक बार तुम मिल जाओ तो मै इस बार सब-कुछ छोड़ तुम्हारे साथ चल दूँगा। पता नही मैं बेटे का बाप बना हूँ या कि बेटी का इसी उधेडबुन मे था कि मोबाईल की घंटी बज उठी---
हैलो महेश!!!! में रुपा बोल रही हूँ  ट्रेन मे हूँ बस पहुचने ही वाली हूँ गाँव।
हैलो रुपा!!!! क्या तुम्हारे साथ हमारा बच्चा----.तभी बातचीत कट जाती है।
पटरियों से उठ दौडकर स्टेशन पहुँचता हूँ. रुपा सामने ही खडी है।
ये लो महेश!! हमारे जीवन रेल को चलायमान करने वाली हमारी बेटी-जो अब हमारे जीवन मे  "आभा" बिखेरने को आतुर है।
नयना(आरती)कानिटकर
२१/११/२०१५

शुक्रवार, 20 नवंबर 2015

मातृत्व

लाखों जतन किये  डाक्टर,पूजा-पाठ ,उपवास जप-तप-मंत्र  ,हर वक्त कलेजे से एक हूक सी उठती रहती जो उसके स्त्रीत्व पर वार करती मगर ईश्वर को उसकी झोली भरना मंज़ूर ना हुआ
  हार कर  रिश्तेदारों के बच्चों मे ही उसने अपना मातृत्व ढूंढने की कोशिश कीउन्हे अपने पास रखा ,अपने आंचल तले ममता की छांव दी,अपनापन दिया,पढ़ाया-लिखाया लेकिन ममता की डोर उन्हे भी बांधने मे कामयाब ना हो सकी वे भी उड गये पंछी  की तरह  आकाश मे उँची उड़ान भरने जो फिर लौटकर घोसले मे कभी ना आये
  सोचते-सोचते अखबार पढते हुए  अचानक उसकी नजर आज के वर्गिकृत विज्ञापन के पेज पर अटक गई
            "एक कामकाजी दंपत्ति को अपना बच्चा सम्हालने के लिये आवश्यकता है एक ऐसी महिला की जो    बच्चे को नानी-दादी सा प्यार दे सके."
  अपनो को तो बहुत देख चूकि थी. अब निश्चय किया पराये के काम आने का.शायद अब उसके कलेजे को ठंडक मिल जाये
 उठकर तुरंत दिये  गए मोबाईल नंबर पर उँगलिया घुमा दी.
नयना(आरती) कानिटकर


मंगलवार, 17 नवंबर 2015

मेरा वक्त

वेनू मेरी अंतरग सहेली,हम दोनो एक साथ पली-बढी और हमारा सौभाग्य देखिये ब्याहकर आई भी तो एक ही शहर मे .
अचानक सुबह सुबह मोबाईल घंटी  सुन नींद मे  हडबडाहट  मे  उठाते उधर से आवाज़ आयी
"नेहा!! जितनी जल्दी हो सके नेशनल अस्पताल पहूँचो मैं विराज को लेकर जा रही हूँ शायद---"
"वेनू!! धैर्य रखो बस मैं पहुँच रही हूँ."
"नीरज उठो!!! आज तुम" ख़ुशी "को स्कुल पहुँचा देना .मैं अस्पताल जा रही हूँ , विराज को शायद हार्ट अटैक आया है मैं वहाँ पहुँच कर फोन करती हूँ.
  वेनू गहन चिकित्सा कक्ष के बाहर ही मिल गई,उसे धैर्य बंधाया,सब ठिक होगा तभी--
"सब कुछ खत्म हो गया हमे उपचार का अवसर ही नहीं मिला."
अस्पताल की सारी औपचारिकताओ के साथ-साथ उनकी अंतिम यात्रा तक नीरज ने मेरा पूरा साथ निभाया.
मैं विचरो में खोयी वेनू के पास थी.जानती थी पेशेवर वित्तीय सलाहकार ,
अपने हिसाब से चलने वाले उसकी किसी सलाह या निर्णय पर हमेशा कटाक्ष करने वाले विराज ने जिस्मानी संबंधों के अलावा कभी उसे वह स्थान नहीं दिया जिसकी वह हक़दार थी.सौम्य स्वभाव की पढने मे रुचि रखने वाली वेनू ने कभी शिकायत नहीं की और अपने आप को लेखन-पाठन से जोड लिया.
"वेनू!!! कैसे दिन काटोगी अब ,जब इच्छा हो चली आना.
"चिंता ना करो नेहा!! जब हसरतो के दिन गुज़र गये ये वक्त भी कट जाएगा जीवन का सच्चा अर्थ तो अब समझ आया मुझे."

"अब मेरी क़िताबें, लेखन-पाठन और सबसे बडा मेरा वक्त मेरी मुट्ठी मे है."

नयना (आरती) कानिटकर

गुरुवार, 12 नवंबर 2015

"हौसला"


"हौसला"
किसना के संग ब्याह कर जब भानपुर आई तो मैने कोई ज्यादा सपने नही देखे थे। वैसे भी खेतीहर मज़दूर की बेटी दो जून रोटी और दो जोड़ी कपड़े से ज्यादा क्या सोचती। मैं भी किसना के साथ खेतो मे जी - तोड़ मेहनत करती, लेकिन इन्द्र देवता की नाराज़गी के चलते हम ज्यादा काश्त ना निकाल पाते | और साहुकार का कर्ज चढ़ गया सो अलग।
थक हार कर किसना ने माई - बाबू को मना लिया मुंबई जा कर मजदूरी के लिए। मैं भी आ गई थी उसके संग। सारा-सारा दिन ईट-सिमेंट ढोते-ढोते थके हुए दो कौर हलक में उतार बस फ़ुटपाथ पर ही सो जाते हर रात !
अधिक मेहनत से जब किसना की तबियत गडबडाने लगी तो हम वापस गाँव लौट आए। दवा-दारु मे बैल भी चुक गए।
गाँव आते ही साहुकार भी रोज चक्कर काटने लगा वसूली के लिये। पैसा ना देने पर मुझे उठाने की बात ...
अब तो सुबह रोटी खाओ तो शाम के निवाले की मुश्किल हम पर साया बन कर पीछा कर रही थी - भला कहाँ से कर्ज चूकते ?
इस वर्ष एक काश्त निकलने तक तो इंतजार .... पर साहुकार के कानों जू ना रेंगती !!
तभी एक दिन भोर होते ही अचानक हरिया चिल्लाते हुए आया "... भौजी .. भौजी ... किसना ने खेत में आम के पेड पर ...." .. मेरा किसना लड़ाई हार गया था .. अब मैं किसे बताऊँ कि ..?
तीन दिन का सोग (शोक) मनाने के बाद मैने हिम्मत बटोरी और माई से कहा - " .. माई बैल के लिए हमे किसी के आगे हाथ नही फैलाना है, चलो .. हम खुद खेत जोत लेगे, अब तो बुआई के दिन भी नज़दीक है "
मेरे कोख मे भी एक बीज ... आँगन में एक पौधा जन्म ले रहा था ... उस दिन मैने फ़ैसला किया मैं हार नही मानूँगी .. मै लडूंगी नियती से .. आख़िरी दम तक ।

नयना(आरती)कानिटकर

मंगलवार, 10 नवंबर 2015

प्यादी चाल



चलो सरिता जल्दी तैयार हो जाओ और हा सुनो!!! वो हरे-गुलाबी काम्बिनेशन की साड़ी है ना वो पहनना. आज  बास का जन्मदिन है.
" अरे सुधीर !! वो साडी तो  तुम्हें पसंद नही है ना ? याद है जब पिछली बार मैने पहनी तब तुम नाराज़ हुए फिर आज--।"
" हा हा तो क्या हुआ पर अखिलेश जी को तो तुम इस साड़ी में---और हा सुनो चलते-चलते एक सुन्दर सा तोहफ़ा भी ले चलेंगे। ऑफ़िस मे जल्द ही  पदोन्नती की सूची जारी होना है।
जन्मदिन की पार्टी पूरे शवाब पर थी जाम-से जाम टकराए जा रहे --
अरे!! आइए-आइए सुधीर और हमारी खु्बसुरत  सखी सी सरिता कहाँ  रह गई।"
"अरे !! तुम पिछे क्यो खड़ी हो !!!आओ मुबारकबाद दो हमे---अपने दोनो हाथ आगे बढा आलिंगन--
"बहुत शुभकामनाएँ सर!! वही से हाथ जोड़ते हुए सरिता ने कहाँ"---अखिलेश कसमसा कर रह गए.
"सुधीर ने सरिता के कान मे फुसफुसा कर कहा ! क्या होता जो अखिलेश जी का मान रख लेती समझ रही हो ना ,मैने बताया तो था कि पदोन्नति---
"अखिलेश जी एक तोहफ़ा हमारी तरफ से--" सरिता आगे बढते हुए बोली
"अरे!! इसकी क्या जरुरत थी"  --सरिता से हाथ मिलाते हुए उन्होने हाथ  कस कर दबा लिया."
सरिता हाथ छुडाते हुए  चिख पडी!!! अखिलेश जी!!! , सुधीर!!!
’सुधिर !!!!क्या तुम अपनी तरक्की के लिये प्यादे की तरह मेरा इस्तेमाल करना चाहते हो जो चुपचाप एक-एक घर आगे बढ़ता है."
शायद तुम नही जानते अगर मे प्यादी चाल चल दू तो राजा  को भी मार सकती हूँ.

..

अंतिम यात्रा

घर के बाहर भीड़ जमा है । पूरी तैयारी हो चुकी है।
"लड़का आ रहा है चेन्नई से . हवाई जहाज़ से आ रहा है बस पहुँचने ही वाला है।"
"एक दिन तो हम सभी को जाना है किन्तू---"
"किन्तू क्या"-- उर्मिला ने पूछा
"अरी!!  बहुत सीधी-सादी है भाभी जी और सुना है ये उनका पेट जाया भी नही है। किसी अनाथ आश्रम से उठा लाये थे। पढा-लिखा बडा किया और वो
चेन्नई जा बसा। "
’अरे हा!!! कहते है वर्मा जी ने भी तो खूब उठा-पटक  और लोगो को लूट अपना व्यवसाय चलाया।"
"तभी तो  इन्कम टैक्स की चोरी  के चलते रेड हुई . कोर्ट मे मामला चल रहा है उसी के चलते उन्हे हार्ट अटैक--"
 "हा ना बेटे को भी पता चल गया था कि वो अनाथ है- तभी घर छोड गया।"
"ओह!अब अब मिसेज वर्मा का क्या होगा बेचारी कोर्ट-कचहरी मे उलझ जाएगी। पता नही बेटा भी---??"
"अरे!! कुछ नही होगा जीवन की फ़ाइल बंद होते ही --सभी फ़ाईले बंद हो जानी है।"
"फिर भी मामला तो नाज़ुक है ना--"

तभी राम-नाम सत्य है के साथ अर्थी उठा ली गई।

नयना(आरती)कानिटकर


सोमवार, 2 नवंबर 2015

" बात बिगड गई"


"सुनील !!!यह बताइय़े हमारा जो नया टेंडर आज जमा होना है उसका क्या हुआ?"
" सर!!! पूरी तैयारी है बस एक दो मुद्दों पर आपसे चर्चा करनी है ।"
"बोलिये!! यू खिसे मत निपोरिये,जल्दी बताइये क्या कहना चाहते है।"
"सर!! वो कुछ नक़दी का इंतज़ाम हो जाता तो---- आप तो जानते ही है।"
" जब हमारी सारी कगजी कार्यवाही वैधानिक और साफ़ सुथरी है,यथासंभव किमत भी कम से कम तय कि है  फिर यह नक़दी?."
"आप तो जानते है सर !!!,इसके बिना हमारा टेंडर पास होना कितना मुश्किल है."
" बैग तैयार है, और हाँ !!! मगर काम हो ही जाना चाहिये, त्यौहार भी पास ही है ।
"जी सर!!!"
"केबीन से बाहर निकल वाह-वाह  करते हुए बैग से ५०० की दो गड्डिया निकाल अपनी जेब के हवाले कर-----"आज तो मेरी बात बन गई ।

 तभी अमित जी अपने केबिन से निकल के बर्ख़ास्तगी  का आदेश थमा देते है।

वजूद

शोध की विद्यार्थी स्नेहा की  अचानक एक दिन मुलाकात बहुत बडे व्यवसायी चंदानी परिवार के आए.आए.एम. पास आउट समीर से होती है और बात आगे बढते हुए  विवाह मे बदल जाती है
 माँ उसे बहुत समझाती है----
"बेटा!!! तुम्हारी शिक्षा और उसके व्यवसाय का आपस मे कोई मेल नही हो पाएगा तुम्हारी सारी शिक्षा व्यर्थ चली जाएगी ,लेकिन प्रेम मे कायल स्नेहा तब कुछ सुनने को राजी नही होती और अंतत: विवाह कर समीर के घर आ जाती है"

   हनिमून से लौटने पर जब कॉलेज जाने की तैयारी करते देख ,अचानक परिवार मे यह घोषणा कर दी जाती है कि उसे अब पी.एच.डी.करने की कोई आवश्यकता नही परिवार की बहुए बाहर किसी काम के लिये नही जा सकतीउसे यहाँ किसी चीज की कोई कमी नही होगी
 
उसका सारा वजूद हिल जाता है

"समीर !!! मैं अपना शोध पूरा करना चाहती हूँ । घर की महिलाओ के साथ सिर्फ़ गहने,कपड़ों और रसोई  की बातों मे पूरा दिन काटना मेरे लिए असंभव है।शोध करते हुए भी मैं अपने कर्तव्य में कोई कमी नहीं आने दूँगी
   ये तो तुम्हें पहले सोचना चाहिए था स्नेहा!!!अब घरवालों की इच्छा के विरुद्ध मैं नही जा सकता। अब तुम्हें इनके साथ सामंजस्य बिठाना ही होगा
मगर समीर!!!! तुम इतने पढ़-लिखे  हो फिर मेरी बातों-----"

अंतत: निराश स्नेहा अपने माता- पिता से बात कर और अपने  पी.एच.डी. के गाइड की मदद से   होस्टल मे रहने की व्यवस्था कर लेती है

"अरे स्नेहा!!! अचानक कहाँ जाने की तैयारी कर रही हो वो भी मुझे और  किसी  को बताए बीना."
" हा समीर !!! मैने  जल्दी कर दी तुम्हें समझने में लेकिन अब गलती  सुधार रही हूँ
काश!!   मैने माँ की बात सुन ली होती

" उनके जीवन अनुभव और वजूद का सच्चा अर्थ आज मैने जाना ।"