शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2016

छोटे-छोटे सपने-जिंदगी नामा. ऽ लघुकथा के परिंदे-सनसनाते बाण 6 टी प्रस्तुति

एक छोटा सा रेप सीन मारे आनंद के उसने सिर्फ़ इसलिये स्वीकार कर लिया था कि रोज के मिलने वाले मेहनताने से  दो से ढाई गुना ज्यादा रकम जो मिलनी थी.
अनेको जरुरतो के सपने तैर गये उसकी आँखो में. रेप सीन के अभिनय मे जान डालने के चक्कर मे  रीटेक पे रीटेक और आखिर....
थके तन और टूटे दिल से जब उसने इसपर ऎतराज जताया तो...
" तन के लिये इतना शोर मचा रहीं हो अपनी पेट की आग का क्या करोगी. ये लो तुम्हारी रकम .अब निकलो यहाँ से. तुम नहीं कर सकती तो बहूत है तुम्हारे पिछे इंतजार में."
टूटे काँच की तरह भरभरा गई वह.

नयना(आरती)कानिटकर
भोपाल
२५-०२-२०१६