मंगलवार, 15 दिसंबर 2015

"माँ की सीख" मार्गदर्शन विषय आधारित

माँ ने विदा करते हुए कहा था."मेरी लाडो एक बात हमेशा ध्यान रखना अपनी पढ़ाई और मायके का कभी गुरुर ना करना.सबसे बडी  बात जो काम सामने दिखे उसे छोटा समझ कभी टालना मत,ना ही  मैं नही कर सकती तो कभी ना कहना. पहले प्यार बाँटना ,पलट के प्यार ज़रुर मिलेगा.घर की सबसे छोटी बहू बनकर जा रही हो सभी की तुमसे कोई ना कोई अपेक्षा होगी यथा संभव पूरा करना.
कोई रिवाज या कोई आदत जो तुम्हें पसंद ना आये तुरतफ़ुरत बदलने की ना सोचना अपने काम से सिद्ध कर बताना क्या गलत क्या सही.सबसे बडी बात स्वाभिमान सम्हालना पर अभिमान कभी ना करना.माँ की बात गाठ की तरह दहेज़ मे ले आयी थी मैं,तभी तो  ७ जेठ-जिठानी  और  ३ नंनदो के साथ तालमेल बैठाने मे मुझे कोई तकलिफ़ नही हुई.सबसे बडी बात की इतने बडे परिवार मे अब मेरे सिवा कोई पत्ता नही हिलता.
     वैसे ये कोई नयी बात तो ना है. हर माँ अपनी बेटी को ये सब बताती थी .
मगर ये आजकल की पीढी "पहले स्वंय से प्यार करो" के चक्कर मे "स्व" तक इतनी ज्यादा   सीमित हो गयी है कि  त्याग ,समझौता क्या होता है भूल गयी है.
 सारिका तो मुझे भी कहती रहती है -"माँ कितना काम करोगी कभी अपने मन का भी तो करो किंतु  सच बताऊँ सबको आनंदी (खुश) देखना मुझे ज्यादा भाता है. आज मैने ठान लिया चाहे मेरा मार्गदर्शन बुरा लगे पर मैं तो---.
आज बेटी की डोली विदा करते वक्त ये कान मंत्र मैने धीरे से उसके कान मे  फूंक ही दिया.

नयना(आरती) कानिटकर
१५/१२/२०१५