अचानक वज्रपात हुआ था उस पर
। वरुण उसे कार दुर्घटना मे अकेला छोड गये थे
। वह स्वयं भी एक पैर से लाचार हो गयी थी
। कुछ सम्हलने के बाद उसने माँ से गुज़ारिश की थी कुछ काम करने की
।
"बेटा! कैसे कर पाओगी सब हमारे रहते तुम्हें किसी चिंता की जरुरत नहीं
।"
"नहीं माँ मैं आप लोगो पर भार नहीं बन सकती
। मेरे पास आप के दिये बहुत सारे हुनर है
।मैं अपना एक बूटिक खोलना चाहती हूँ
।उसके मस्तिष्क मे अपने दादी के साथ के वे सारे संवाद घुमने लगे थे जिससे कभी उसे बडी कोफ़्त होती थी
।
"बहू! गर्मी की छूट्टीयाँ हे इसका मतलब ये नही कि घर की लड़की अलसाई सी बस बिस्तर पर डली रहे
। उसे कुछ सिलाई,कढाई,बुनाई का काम सिखाओ
।"
"क्या! दादी आप जब देखो मेरे पिछे पडी रहती है
। मुझे नहीं सीखना ये सब कुछ
। ये किस काम का.आजकल तो बाज़ार मे सब मिलता है
।"
" हा बेटा! मगर ये सब काम करके पैसा बचाना भी एक तरह से पैसे कमाने के समान है
।"
आखिर हार कर उसने माँ और दादी से धीरे-धीरे सब सीख लिया
। घर के सब लोग उसकी सुघडता की तारीफ़ करते
। अब तो उसे भी इन कामों मे रस आने लगा था
। अब वही उसका संबल बनने जा रहा था.वह तेजी से सारी तैयारी कर चुँकी थी
। बस एक विशिष्ठ मेहमान के आने का इंतजार था
।
राधिका बूटिक के काउंटर पर बैठी अपनी माँ को देख रही थी जिनके चेहरे पर असीम संतुष्टि के भाव थे
।
तभी पापा दादी को लेकर आ गये
। सारे मेहमान द्वार पर इकट्ठा हो चुके थे
।
दादी ने फ़िता काट उदघाटन किया और उसे अपने अंक मे भर लिया
।
नयना(आरती)कानिटकर
भोपाल
ड्राफ़्ट
"हुनर"
"बहू! गर्मी की छुट्टीयाँ हे इसका मतलब ये नही कि घर की लड़की अलसाई सी बस बिस्तर पर डली रहे.उसे कुछ सिलाई,कढाई,बुनाई का काम सिखाओ।"
"क्या! दादी आप जब देखो मेरे पीछे पडी रहती है। मुझे नहीं सीखना ये सब कुछ। ये किस काम का.आजकल तो बाज़ार मे सब मिलता है।"
" हा बेटा! मगर ये सब काम करके पैसा बचाना भी एक तरह से पैसे कमाने के समान है।"
आखिर हार कर उसने माँ और दादी से धीरे-धीरे सब सीख लिया। घर के सब लोग उसकी सुघडता की तारीफ़ करते। अब तो उसे भी इन कामों मे रस आने लगा था.
अचानक घर पर वज्रपात हुआ। वरुण उसे कार दुर्घटना मे अकेला छोड गये। वो स्वयं भी एक पैर से कमजोर हो गयी। कुछ सम्हलने के बाद उसने माँ से गुज़ारिश की कुछ काम करने की।
"बेटा! कैसे कर पाओगी सब, हमारे रहते तुम्हें किसी चिंता की जरुरत नहीं।"
"नहीं माँ मे आप लोगो पर भार नहीं बन सकती।मेरे पास आप के दिये बहुत सारे हुनर है। मैं अपना एक बूटिक खोलना चाहती हूँ।
राधिका काउंटर पर बैठी अपनी माँ को देख रही थी जिनके चेहरे पर असीम संतुष्टि के भाव थे।वह तेजी से बाकी सारी तैयारी कर चुँकी थी .बस एक विशिष्ठ मेहमान के आने का इंतजार था.
आशा बेटी की चल रही भाग दौड को देख रही थी। मन के किसी कोने मे दु:ख तो था अपने दामाद को खोने का मगर साथ ही स्नेहा को अपने पैरो पर खड़े होते देखने का संतोष भी।
तभी पापा दादी को लेकर आ गये। सारे मेहमान द्वार पर इकट्ठा हो चुके थे।
दादी ने फ़िता काट बूटिक का उदघाटन किया और उसे अपने अंक मे भर लिया।