गुरुवार, 30 जुलाई 2020

पदचिन्हों

नहीं चाहती मैं कि
तुम भी चलो 
रेत में छपे मेरे पदचिन्हों पर 
उन पर  तो चली हूँ मैं जन्मों से
अब उभरकर आई है 
जिनमें 
वे किरचें दरारों सी 
जो मेरे दिमाग से निकल 
मेरे हृदय से गुजरते  
 फिर ठिठक गई है
पैरों के तलवे में जाकर 
जख्मों की तरह 
तुम , तुम तो 
पहले ही भर देना उन
दरारों को
बालू से निकले उन
यूरेनियम के कणों से
जो शृंखला बनाकर
भर दे तुममें 
एक अथांग ऊर्जा
और गर वक्त आ जाए कभी
अनियंत्रित अवस्था का 
तो कर देना उसका 
विखंडन ...
विस्फोटक के रुप में 
©नयना(आरती)कानिटकर
३०/०७/२०२०