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शुक्रवार, 1 अप्रैल 2011
आओ गुनगुनाऊँ
एक गीत नया गाऊँ
अपनो के मेले मे
हर पल मुस्कुराऊँ
एक गीत नया गाऊँ
बूंद बनकर पनी की
नदी मे घुल जाऊँ
पंख फैलाकर व्योम मे
सुरिली तान गाऊँ
फिर गुनगुनाऊ---
केनवास पर उतरता
चित्र बन जाऊँ
प्रकृति के रंगो मे
घुलमिल जाऊ
एक गीत नया गाऊँ
झरझर कर झर रहे
पिले-पिले पात
नये कपोंलो का
श्रॄंगार पेडों पर आज
नयनो मे रस भरके
फिर गुनगुनाऊ----
एक गीत नया गाऊँ
कल्पवृक्ष कि छाँव
में बैठकर
समय कि फिसलन में
उम्र भुल जाऊ
फिर गुनगुनाऊ----
एक गीत नया गाऊँ
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