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गुरुवार, 24 मार्च 2016

मेरे विचार--नया लेखन व लघुकथा के परिंदे ५वी प्रस्तुति

"अरे विचार! कहाँ चल दिये अचानक मुझे  यू अकेला छोड़कर" मीनी (कहानी) ने पूछा
"तुम बडी संकुचित और लघु हो गई हो आजकल. मैं कुछ दिन अपनी पुरानी सहेलियो  के साथ मुक्त विचरना चाहता हूँ"
"मतलब...."
 "मीनी मे तुम्हें छोड़कर कही नही जा रहा,बस कुछ दिन  मुक्ता, सरिता,कादम्बिनी से मिलने को उत्सुक हूँ। कई दिन बीत गये उनसे मिलकर। भावना मुझे ले जाने वाली है उनके पास
"मगर फ़िर मेरा क्या?"
" अरे मीनी!  मैं तो तुम्हारे साथ हूँ हरदम।  तुम अभी तंज और विसंगति  के पालन-पोषण... ऐसे मे मैं कुछ दिन के लिए...."
"रुको रुको विचार! ये दोनो ... सिर्फ़ मुझे दोष मत दो। सब लोग अब बडे समझदार हो गये है.लोगो के पास  अब ज्यादा वक्त कहाँ होता है। वो देखो कितनी धुंध और कुहासा छाया है चारों ओर.
लोग ज्यादा दूर का देख भी नहीं पाते


नयना(आरती)कानिटकर
भोपाल

सोमवार, 21 मार्च 2016

दबा हुआ आवेश--लघुकथा के परिंदे-- दिल की ठंडक---- केक्टस मे फूल


पड़ोस के गुप्ता आंटी के घर से आती तेज आवाज़ से तन्मय के कदम अचानक बालकनी मे ठिठक गये। अरे! ये आवाज़ तो सौम्या की है।  यथा नाम तथा गुण वाली सौम्या को उसमे हरदम बस घर के कामों मे ही मगन देखा था या फ़िर चुपचाप कॉलेज जाते हुए।  हरदम उनका एक जुमला जबान पर होता काम ना करेगी तो ससुराल वाले लात मार बाहर कर देंगे।  वो भी बस चुपचाप क्यो सहती समझ ना पाया था और फ़िर वह ब्याह कर चली गई थी शहर छोड़कर...
"माँ! समझती क्यो नहीं हो भाभी पेट से है उनसे इतने भारी-भारी काम ..."
"सुन सौम्या! अब तुझे इस घर मे बोलने का कोई हक नहीं है. जो भी कहना सुनना है... और अब भाभी के रहते तुझे कोई काम को छूने की जरुरत नही है।  वैसे भी वो तेरी परकटी आधुनिक सास कुछ काम ना करती होगी। सारे दिन पिसती होगी तुम कोल्हू सी। "
"बस करो माँ! कई दिनो से सौम्या का दबा  आवेश बाहर निकल आया था।  जिसे तुम  परकटी  कह रही हो ना वो लाख गुना बेहतर है तुमसे।  समझती है मेरे मन को भी।  पुरी आज़ादी है मुझे वहाँ काम के साथ-साथ अपने शौक पूरे करने की और... ना ही भाई की तरह तुम्हारे दामाद को उन्होने मुट्ठी मे कर रखा है। "
"माँ!आखिर एक औरत ही औरत को कब समझेगी। "
पड़ोस के आँगन के केक्टस मे आज फूल खिल आये थे और तन्मय के दिल मे ठंडक।

 मौलिक एंव अप्रकाशित
नयना(आरती) कानिटकर
भोपाल




बुधवार, 16 मार्च 2016

बदलाव का मतलब--लघुकथा के परिंदे--"सर चढा"

 "देखो जी! दिन चढ़ आया मगर अभी तक इनके कमरे का दरवाज़ा अटा (बंद) पडा है.तुम्हारी माँ तो सुबह चार बजे से बर्तन जोर-जोर से पटक कर मुझे उठने को मजबूर कर देती थी और मैं जुटी रहती ढोरो की तरह सारा दिन बस काम ही काम. दम मारने को फ़ुरसत ना मिलती.ये आजकल की बहूए तो पढ-लिख गई तो ...."
"चुप करो भगवान!   क्यो चिल्ला-चिल्ला के बोल रही हो बहू   भी तो खटती है सारा-सारा दिन ऑफ़िस में. किसके लिये हमारे लिए ही ना वरना क्या मेरी बीमारी...हमारा बेटा क्या अकेला इतना..."
"तो बोलो अब क्या करूँ? क्या सर चढाऊ  या कांधे पे बैठा के  नाँचू ..."
तभी बेटे के कमरे से निकलते हुए  बोला...
"माँ! काश  आपने  मुझे पहले  सर ना चढ़ाया होता तो ये नौबत..."

नयना(आरती)कानिटकर
भोपाल
मौलिक एंव अप्रकाशित

शनिवार, 12 मार्च 2016

सफ़ेद चादर

कितनी हुलस थी केशवा को पढने की मगर सुखी पडी धरती ने उसकी माँ का खून भी सुखा दिया था और दिमाग की सोच भी. .क्या करती कब तक आटे मे सूखे घास को पीसकर मिला-मिला उसे खिलाती। इन्द्र देवता की इतनी लंबी नाराज़गी कि स्कूल का हेंडपम्प भी २०-२५ हाथ मारने पर दो लौटा पानी दे पाता. दिल पर पत्थर रखकर आखिर शहर जाने वाली गाड़ी मे बैठा लौट आई थी कैलासो। कुछ तो दो वक्त खा ही लेगा. मेरे पेट मे पडे बल तो मैं सह लूँगी पर... जवान होता बेटा...
वक्त गुज़र रहा था एकाध बार खबर आई भी केशवा की, कि वो ठिक है, मगर मुंबई की भागदौड़ उसे रास नही आ रही.सब एक दूसरे को कुचलते आगे बढने की होड मे है मगर...।
सूरज पूरे ताप पर चल रहा था कि अचानक एक बादल का टुकड़ा उसे कुछ पल को उसे ढक आगे निकल गया.बडी आंस से वो बाहर आई तो क्या...।
"इसे पहचानो अम्मा..कही ये केशवा...जैसे ही सफ़ेद चादर हटाई..।"
धरती मे पडी सुखी दरार आँसुओ से सिंच गई।
नयना(आरती)कानिटकर

मंगलवार, 1 मार्च 2016

"मातृछाया"-तीर्थयात्रा विषय पर-लघुकथा गागार मे सागर

"मातृछाया"
अटैची मे सामान जमाते-जमाते  एक  तस्वीर हाथ लग गई और खो गई पुरानी यादों मे....
कोख हरी ना होने पर घर-परिवार के तानो से तंग आकर आखिर उसने सुधीर को दूसरे विवाह की इजाज़त दे दी थी और स्वयं चली आई थी  "मातृछाया" में.
शुरुआती दिनों मे जो काम हाथ आता झाड़ू-पोंछा,बच्चों के कपड़े धोना, नहलाना, कभी-कभी खाना बनाना ...सब करती 
आखिर उसका सेवा भाव देखकर संस्था के संचालको ने उन्हे रहने का कमरा देकर बच्चों की देखभाल के लिये नियुक्त कर लिया.बस तब से दिन-रात अनाथ नवजात बच्चों की माँ हो गई थी
"सुनंदा अम्मा! जल्दी करो आपके स्टेशन जाने का वक्त हो गया है"
बच्चों का सब सामान करीने से रखते हुए सुनंदा अपनी मैनेजर से कहती जा रही थी...
देखो खुशी! सब बातों का ध्यान रखना बच्चों को कोई तकलीफ़ ना हो और...
"हा! हा! अम्मा आनंद से तीर्थयात्री कर आओ. मैं सब सम्हाल लूँगी। कोई बहुत दिनो की बात तो है नहीं जब लौट आओ तो फ़िर सारे डोर ले लेना अपने हाथ चलो  अब आपका आटो आ गया"
अपना सामान ले बाहर निकलने को थी कि अचानक आँगन मे रखे झूले से नवजात के रोने की आवाज़ गूँजी
दौडकर बच्चे को सीने से लगाया
"खुशी! मेरी अटैची अंदर ले जाओ."

नयना(आरती)कानिटकर
भोपाल

शनिवार, 27 फ़रवरी 2016

नया लेखन नए दस्तखत--चित्र प्रतियोगिता- "सुरक्षा"


मंत्री जी के आवास को पूरे चाक-चौबंद के साथ सुरक्षा अधिकारियों ने घेर रखा था सारे श्रेष्ठ अधिकारी पूरी मुस्तैदी से तैनात कर दिये गये थे
मंत्री पद की शपथ के बाद अपने लवाजमे ( जी हुजूरी करता चमचो का घेरा) के साथ पधार रहे थे ....
"यार! एक बात समझ नहीं आती चुनाव जीतते  ही इन्हें इतनी सुरक्षा की जरुरत क्यो आन पडती है
"हा यार! पता नहीं कब कौन बदला निकाल ले"
चुनाव जितने के लिये इतने गुंडे जो पाल रखे होते है

नयना(आरती)कानिटकर
भोपाल

"नाहर" लघुकथा के परिंदे- कल का छोकरा विषय आधारित ८ वी प्रस्तुती

झाबुआ के लोक निर्माण विभाग मे जब पाठक जी नियुक्ति लेकर आए तो थोड़ा विचलित थे  अशिक्षित आदिवासी लोगो का इलाक़ा  पता नहीं कैसे सामंजस्य बैठा पाएँगे| वो तो सारा दिन ऑफ़िस मे गुजार देंगे लेकिन श्रुति क्या करेगी |
 श्रुति आस-पास के मज़दूर बच्चों को इकट्ठा कर उन्हे कहाँनिया सुनाती कभी साफ़-सुथरा रहने का सलिका सिखाती तो कभी नाच-गाना सिखाती | बडे हिल-मिल गये थे बच्चे |
नाहरसिंह तो आँखो का तारा था उसका बडा शोख और चंचल बच्चा भोपाल स्थानान्तरण पर उसे भी साथ ले आए | वह घर-बाहर के काम के उसकी मदद करता साथ-साथ सरकारी स्कूल मे पढ़ाई भी |
 सभागार के माइक से  गुंजी आवाज़ और उनका विचार चक्र थम गया |
 प्रदेश का करोड़पति जीवनबिमा एजेंट ....
दोनो के बीच खड़ा नाहरसिंग ..तालियों की गड़गड़ाहट और कैमरा की फ़्लैश लाईट |

नयना(आरती)कानिटकर
भोपाल
२७-०२-२०१६


शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2016

छोटे-छोटे सपने-जिंदगी नामा. ऽ लघुकथा के परिंदे-सनसनाते बाण 6 टी प्रस्तुति

एक छोटा सा रेप सीन मारे आनंद के उसने सिर्फ़ इसलिये स्वीकार कर लिया था कि रोज के मिलने वाले मेहनताने से  दो से ढाई गुना ज्यादा रकम जो मिलनी थी.
अनेको जरुरतो के सपने तैर गये उसकी आँखो में. रेप सीन के अभिनय मे जान डालने के चक्कर मे  रीटेक पे रीटेक और आखिर....
थके तन और टूटे दिल से जब उसने इसपर ऎतराज जताया तो...
" तन के लिये इतना शोर मचा रहीं हो अपनी पेट की आग का क्या करोगी. ये लो तुम्हारी रकम .अब निकलो यहाँ से. तुम नहीं कर सकती तो बहूत है तुम्हारे पिछे इंतजार में."
टूटे काँच की तरह भरभरा गई वह.

नयना(आरती)कानिटकर
भोपाल
२५-०२-२०१६

मंगलवार, 23 फ़रवरी 2016

अविश्वसी -मन-लघुकथा के परिंदे-"आश्वासन" ५वी

ऑफ़िस मे पहुँचते ही उसकी  नजर   अधिकारी के उस नाम की तख़्ती पर पडी जिनसे  उसे काम करवाना था
"सर! ये लिजीए सारे कागज़ात जिनसे मेरा काम हो सकता है."
"ठिक हैं रख दिजीए।" नज़रें झुकाए हुए ही बाबू ने जवाब दिया.काम होते ही आपको सूचित कर दिया जाएगा व कागज़ात पोस्ट से भेज दिये जाएँगे."
"तो अब मैं निकलू." उसने कहा
"हू अ अ--"
"काम हो जाएगा ना?" प्रश्नवाचक नज़रों से देखते हुए उसने पूछा
"आप बार-बार क्यो पूछ रहे है, यकीन नहीं है क्या?"  अधिकारी ने जरा रोष से बोला
"तो अब मैं चलू,विश्वास तो  है. मगर??... उसने पैंट की जेब मे हाथ डालते हुए कहा
अधिकारी  ने चश्मा सिधा करते ही आँखों ही आँखो में कुछ इशारा किया.
वो अपनी पेंट की जेब में हाथ डालकर टटोलते हुए बाहर निकल गया.


नयना(आरती)कानिटकर
भोपाल
२३-०२-२०१६
अविश्वसी -मन

मंगलवार, 16 फ़रवरी 2016

"लालबत्ती"

चौराहे पर लाल बत्ती का निशान देखते ही अपनी स्कुटी को ब्रेक लगया तभी पास ही एक एक्टिवा खचाक से आकर रुकी तो सहसा ध्यान उसकी तरफ़ मुड़ गया.उस पर सवार दोनो लड़कियों ने अपने आप को आपस मे कस के पकड़ रखा था .पिछे वाली के हाथ में जलती सिगरेट देख दंग रह गई मैं तो.
एक कश खुद लगा छल्ले आसमान मे उडा दिये और आगे हाथ बढा ड्रायविंग सीट पर बैठी लड़की के होंठो से लगा दिया .उसने भी जम के सुट्टा खींचा, तभी सिग्नल के हरे होते ही वे हवा से बातें करते फ़ुर्र्र्र्र हो गई.उन्हें देख मे जडवत हो गई थी, पिछे से आते हॉर्न की आवाज़ों से मेरी तंद्रा टूटी. पास से गुजरने वाला हर शख्स व्यंग्य से मुझे घुरते निकलता और कहते आगे बढ़ता कि गाड़ी चला नही सकती तो...
घर आते ही बेटी ने स्वागत किया एक कंधे से उतरती-झुलती टी-शर्ट और झब्बे सी पेंट के साथ.फ़िर तो...
"क्या बात है माँ आपका चेहरा इतना लाल क्यो हैं."
"चुप करो सुशी! पहले तुम अपने ये ओछे कपड़े बदल कर आओ"--मैने लगभग चिल्लाते हुए कहा और फ़िर पुरी राम कहानी उसके सामने उड़ेल दी."
"तो क्या हुआ माँ! ये सब तो अब आम बात है.अब लड़कियाँ भी कहा लड़कों से कम है."
"ओह! तुम्हें कैसे समझाऊ यही चिंता का विषय  हैं वह खुद अगर मार्यादित...?

नयना(आरती)कानिटकर
भोपाल
१६/०२/२०१६

शनिवार, 13 फ़रवरी 2016

“द्रोपदी” --लघुकथा के परिंदे-२री ह्रदय का रक्त

"उलझने"--- विषय आधारित
“द्रोपदी”
मन की कसक बढ़ती ही जा रही थी। अपनी पुत्रवधु को इस परिस्थिती में डालकर उन्हें क्या मिला होगा। संतानवति होने के लिए अपने पति इच्छा से खुद उन्होने भिन्न-भिन्न पुरूषो से...।
तो क्या अपने आप को लज्जित होने से बचाने के लिए और उनपर कोई कटाक्ष ना हो तो जानबूझकर पंचपति वरण की बात की होगी। वो भी तो एक स्त्री हैं फिर ऐसा निर्णय क्यों कर लिया होगा।
द्रोपदी का मन भी कितना टूक-टूक हो गया होगा। मन में उमड़ते भावों और झरते ह्रदय के रक्त से द्रोपदी ने कितना कुछ सहा होगा। अनंतकाल से संचित स्त्री की मनोवेदना का अंत...।
एक झटके में विचारों के तंतुओ कि डोर काट डाली।  क्यों उलझी हूं मैं...।

नयना(आरती)कानिटकर

सम्मान की- दृष्टि---लघुकथा के परिंदे--"रोशनी"

आभा अपने नियमित काम निपटा कर समाचार पत्र हाथ मे लेकर बैठी ही थी कि आयुष भुनभुनाते पैर पटकते घर मे घुसा.
"पता नहीं क्या समझते हे ये लोग अपने आप को विद्या के मंदिर को इन लोगो ने राजनीति का अखाडा बना लिया है. ना खुद पढेगे ना दुसरो को पढने देंगे. पता नही क्यो अपने माता-पिता का पैसा..."
"अरे! बस भी करो बताओ आखिर हुआ क्या है."
"माँ! समाचार पत्र तो है ना आपके हाथ मे..." देखो जरा आशीष पुरी तरह से तमतमाया हुआ था.
सुनो आशीष! सबसे पहले तो ये विदेशी झंडे की प्रिंट वाला टी-शर्ट उतारो . ब्रान्डेड के नाम पर तुम इन्हे अपने  छाती  से लगाए फ़िरते हो और..."
"मेरा जूता है... इंग्लिस्तानी ,सर पर लाल..., फिर भी दिल है हिंदुस्तानी"---  माँ.नाचते हुए आशीष ने कहा." वो तो ठिक है पर जब तक तुम अपने घर,देश को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखोगे तुम्हारी स्वतंत्रता के ..."
" बस करो माँ मेरे दिल और दिमाग से कोहरा पुरी तरह छट चुका है." विदेशी झंडे की  टी-शर्ट को बाहर का रास्ता दिखा दिया.
आभा ने घर का दरवाज़ा खोल दिया. सूरज की रोशनी छन-छन कर प्रवेश कर रही थी.
नयना(आरती)कनिटकर
भोपाल

एफ़ आइ.आर--लघुकथा के परिन्दे पहली प्रस्तुति

"विक्षिप्तता की झलक" विषय आधारित
१ली प्रस्तुति

“एफ.आई.आर”

स्वाति मेडम के प्रवेश करते ही इंस्पेक्टर आदित्य आश्चर्य से देखते हुए झटके से अपनी सीट से खड़े होकर कुर्सी आगे खिसकाते हुए बैठने का आग्रह करते हैं।
“अरे! सुनो मेडम के लिए एक ग्लास पानी लाना।” थाने में अचानक तेजी से हलचल हो उठती हैं।
“आप क्या लेंगी चाय या काफी…”
“सुनो! मेडम के लिए गर्मागर्म काफी लाना।”
“जी मेडम कैसे याद किया, आपने क्यो तकलीफ की। बंगले पर बुलवा लिया होता और साहब जी कैसे हैं? सचमुच साहब जी जैसा सुशील,सहयोगी इंसान हमने नहीं देखा। ना तो कभी किसी पर नाराज होते देखा ना अपशब्द बोलते। बडे आला दर्जे के शरीफ़ हैं हमारे साहब। क्या वे दौरे पर हैं?
“फालतू बाते छोडिए मुझे एक एफ.आई. आर. दर्ज करानी हैं “-- प्लीज जल्दी कीजिए।
“जी!बताईए” रजिस्टर और पेन उठाते इंसपेक्टर आदित्य ने कहा।
“मुझे  “....” के खिलाफ मानसिक प्रताड़ना और बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज कराना हैं।
थाने की हलचल कानाफूसी में बदल गई।

नयना(आरती)कानिटकर
०६/०२/२०१६
भोपाल

मंगलवार, 2 फ़रवरी 2016

कोकिल कंठी

एक  बहुत साधारण  परिवार में उसका जन्म हुआ था पिता के कमाई मे बस सरकारी स्कूल मे साधारण शिक्षा और अन्य बहुत ही आवश्यकताओ को जुटाया जा सकता था. माँ अपनी क्षमता से अच्छा से अच्छा करती मगर...
उसका मन पढने में लगता मगर ... बहुत सुरीला कंठ पाया था रेडियो पर सुन-सुनकर ही गीत दोहराती रहती थी।  घर से कुछ दूरी पर ही संगीत विद्यालय था मगर वहाँ प्रवेश की हसरते लिये ही वक्त गुजर गया। समय के साथ ब्याह हो गया अच्छे सुखी परिवार में जब पहली आहट हुई माँ बनने की तो पुन: नई हसरते... ईश्वर से बस एक प्रार्थना करती कि मुझे एक बेटी देना बडी-बडी आँखो वाली और उसका कंठ सुरीला बिलकुल कोकिल कंठी हो फिर चाहे उसका रंग सावंला ही क्यो ना हो
अनेको रुकावटो के बावजूद उसने कोकिल कंठी बेटी को संगीत की शिक्षा दिलाई
बेटी के पहले शास्त्रीय  संगीत कार्यक्रम  मे  जाते वक्त पति ने रास्ता रोकना चाहा मगर..
प्रस्तुति देती  बेटी को देखते उसकी आँखो मे संतुष्टि के भाव उभर आयेकार्यक्रम समाप्ति पर आशिर्वाद देने पिता सबसे पहले मंच पर थे.
नयना(आरती)कानिटकर

शुक्रवार, 29 जनवरी 2016

रफ़्तार विषय आधारित-अमरुद के पेड--लघुकथा के परिंदे

खुबसुरत सी चार मंजिला स्कुल इमारत के चारो ओर घने पेड थे. कुछ फूलो के,कुछ छायादर और कुछ फ़लो के भी. चारो ओर स्वच्छ सुरम्य वातावरण, कक्षा मे बच्चो को पढाते शिक्षक-शिक्षिकाओ की आवाज,कही-कही इक्का-दुक्का दिखते कर्मचारी.
माली बाबा के हाथ बगीचे की देखरेख मे लगे हुए, काम करते हुए वे अमरुद के पेडों के पास आ गए. पेड लदे पडे थे फलो से मौसम जो था अमरुद का. लेकिन दिमाग मे कुछ उथलपुथल मची थी.बस स्कुल की छुट्टी होते ही बच्चे आएगे धमाचौकडी मचाएगे अमरुद तोडने के लिए और फिर वो गालियाँ बकेगे. कितना मजा आयेगा.
तभी छुट्टी की घंटी बजी .माँ-पिता की बच्चो के जल्दी घर ले जाने की होड. बस से जाने वालो का मेला, चारो ओर बस अफ़रातफ़री.माली बाबा टकटकी लगाए देखते रहे...
पेडों पर अमरुद ज्यो के त्यो लगे रहे, छुट्टी पर गुजरते बच्चों के झुंड में से किसी ने उनकी तरफ़ देखा भी नहीं. वे चिन्तित हो उठे.
क्या! चिन्तन के लिये ये काफ़ी नहीं है.
नयना(आरती)कानिटकर


सहारे की आदत-"आफ़िस" लघुकथा के परिंदे

आफ़िस चारो ओर अस्त-व्यस्त पडा था।  आफ़िस ब्वाय संतोष  आया नहीं था। सारे कर्मचारी  अंगूठे का निशान लगा अपनी-अपनी सीट पर जम चुके थे।  किसी को अपने टेबल पर धूल नजर आ रही थी तो कोई चाय की तलफ़ लिये यहाँ-वहाँ डौल रहा था।  अपने केबीन से बास भी बार-बार बेल बजाकर उसके बारे मे पूछ रहे थे लेकिन कोई भी अपनी सीट से उठकर अपना टेबल साफ़ करने या चाय का कप खुद लेकर आने की जहमत नहीं उठा रहा था।  तभी "आभा" मेडम ने प्रवेश किया वो आफ़िस काम के साथ-साथ व्यवस्थापक का निर्वाह भी बडी खूबी से करती थी।  आते ही हाथ मे कपडा उठाया और मेज...
मोबाईल लगाकर कान के निचे दबा गुमटी वाले को चाय का आदेश दे दुसरे हाथ से फ़ाईले व्यवस्थित कर दी। 
अंदर बास के चेहरे पर सुकुन के भाव थे।  इधर आभा मेडम के चेहरे पर कुटिल मुस्कान। 
आज कर्मचारियो की सालाना रिपोर्ट जो लिखी जानी थी। 

नयना(आरती)कानिटकर

बुधवार, 27 जनवरी 2016

यह स्वप्न कैसा--कघुकथा के परिंदे --"मोबाईल टावर"

 मोहल्ले की गुप्ताईन के छत पे जब से मोबाईल का टावर लगा था  उसके तो व्यारे-न्यारे हो गए थे। मतकमाऊ लड़का भी बडे ठाठ से मोटरसाइकिल पे ऐठ मारते घूमता रहता था  टावर का किराया ही जो ४०-५० हजार आ रहा था। 
इधर शर्माईन भी सोचती रहती काश! मेरे घर भी कोई दूसरी मोबाईल कम्पनी वाले टावर लगाने आ जावे तो मैं भी अपनी छत तुरंत उन्हें दे दू,  फ़िर मुझे भी शर्मा जी और बच्चों के सामने हाथ ना फैलना पडे पैसों के लिये।  वो शर्मा जी के पिछे पडी रहती...
"ऎ जी! कोई जुगाड आप भी लगाओ ना टावर के लिये सोचो रिटायरमेंट के बाद आराम से जी लेंगे"
"अरी भागवान! क्यों अपने सर मुसीबत लेना चाहती हो अभी तो आंगन मे जो दो-चार चिड़िया चहकती है वो भी आना बंद हो जावेगी, फिर इतना भार हमारी छत..."
" तुम! चुप करो जी" -- मैं ही देखती हूँ कुछ
घर की डोर बेल बजने पर दरवाज़ा खोलते ही...
"जी! मै एक मोबाईल कंपनी से... क्या आप अपने छत की जगह हमे..."
" हाँ हाँ! क्यो नहीं मारे खुशी के उछलते शर्माईन बोली, कितना किराया और पेशगी रकम देगें आप "
"ये लिजीए इन कागज़ात पर दस्तख़त किजीए और ये आपकी पेशगी रकम पूरे "....." हजार नकद.
वो खुशी के मारे उछल पडी।  तभी ...
बादल कडकडाने की आवाज़ और  तेज बारिश के साथ कुछ ढहने की आवाज़ से उनकी नींद टूटी  भागकर बाहर आयी...
भरी बारिश मे लोग गुप्ताईन के घर के आगे भीड़ जमाए खड़े है। 
नयना(आरती) कानिटकर



मंगलवार, 26 जनवरी 2016

मनोबल - नया लेखन नये दस्तखत

"सुहानी" नैन-नक्श और स्वभाव से पुरी ठकुराईन पर गई थी.उसे  कोई अगुआ कर ले गया था मेले मे से.
 अपनी किशोरवयीन बेटी के अचानक ग़ायब हो जाने के बाद ठकुराईन का किसी काम मे मन ना लगता था.
शुरु-शुरु मे बहुत कोशिश की उसे ढूंढने की मगर...
ठाकुर  अलमस्त  मौजी आदमी उन्होने इसे अपनी किस्मत मान धीरे-धीरे  भुला दिया और अपनी औकात पे आ गये.
.ठाकुर का वही सब फ़िर  शराब-कवाब और...
ठकुराईन की कोई ऐसी उम्र ना हो गयी थी कि हर काम उन्हे नीरस लगे  लेकिन ठकुराईन को  तो अब उनकी अंकशयनी  बनने से भी ऐतराज होने लगा था.आज उन्होने बेटी को ना खोज पाने का ताना कसते उन्हे झिटक दिया था.
आहत ठाकुर हवेली छोड़ निकल गये थे  बाड़ी कि ओर.
"आओ! ठाकुर आज आपके लिये एक नयी..." केशर बाई ने कहा
कमरे मे प्रवेश करते ही उनका  मनोबल एकदम गिर गया और  आँखो के आगे धुँध...
नयना(आरती)कानिटकर

सोमवार, 25 जनवरी 2016

शहादत का बिम्ब- लघुकथा के परिंदे-६

 अपने बेटे की शहादत के बाद सुखबीर जी की  सारी जिंदगी सिर्फ़ अपने पोते आयुष्यमान  के इर्दगिर्द सिमट गई थी.प्यार से उसे सिर्फ़ "आयु" कहकर पुकारा करते और आयुष्यमान की पत्नी आयूषि को "आशी".  अब उन दोनो तक ही उनका जीवन केन्द्रित हो गया था. उनका पोता भी  भारत माता की रक्षा के ख़ातिर सीमा पर तैनात था."आशी" बहुत जल्द ही एक नव जीवन उनकी गोद मे डालने वाली थी, उसके माता-पिता भी आ गये थे सहारे के लिए.उसे अस्पताल ले जाया गया था.सभी बडी उत्सुकता से इंतजार कर रहे थे कि...
अचानक मोबाईल घनघना उठा. उधर से आवाज़ आई...
"आयुष्यमान एक अभियान में  शहीद हो गया है..."सुखबीर जी ये सुन सम्हल भी ना पाए थे, 
अपनी जगह जडवत से हो गये कि जचकी वार्ड से अचानक...
 नवजात शिशु के रोने की आवाज़ गुंजायमान हो गई.
 नयना (आरती) कानिटकर
२५/०१/२०१६

पत्नी संध्या ने लगभग दौड़ते हुए आकर बेटा होने की खबर दी.कहने लगी- "नर्स लेकर आ रही है हमारे बच्चे को और आनंदातिरेक मे पुन: कक्ष की ओर चली गई."
इधर वे  अपने आप को सम्हाले 
आयुष्यमान के प्रतिबिम्ब का इंतजार करने लगे.

शुक्रवार, 22 जनवरी 2016

जमीर जाग उठा -- नया लेखन-नए दस्तखत/लघुकथा के परिंदे-५वी


मरते-मारते आख़िरअब वह थक गया था।  हद तो तब हो गई जब उसके अन्य साथियों को मकसद पूरा होने पर कि कही वे क़ौम से दगा न कर बैठे  इसलिये ज़िन्दा जला दिया गया
ये सारा मंजर देख उसका ज़मीर जाग उठा। उसे अपनी ज़मीन, अपना गाँव याद आ गया
उसने अपने दोस्तों से ही सुना था कि उसके पिता भी सेना के सिपाही थेवो जब भी माँ से अपने पिता के बारे मे पूछता वो अपने पल्लू से आँखो कि कोरो को पोछती  और कोई जवाब ना देती। माँ को कुछ कागज़ात लिये हमेशा दर-दर भटकते देखा मगर माँ ने कभी कोई तकलीफ़  साझा नहीं की
वो  धीरे-धीरे तंगहाली,अशिक्षा और बेरोज़गारी   के बीच  बडा होता रहा .फिर ऐसे ही अचानक सब कुछ छोड एक अन्जानी राह की गिरफ़्त मे आ गया था  एक ऐसे संगठन से जुड गया जहाँ सिर्फ़ बदला, खून-ख़राबा,षडयंत्र और  ना जाने क्या क्या...
आखिर स्वंय से ही तर्क-वितर्क के बीच  तिरंगे के आगे घुटनो पर बैठ नतमस्तक हो उसने समर्पण कर दिया. अब बंदूक उठाएगा तो सिर्फ़ माँ के लिये.
क्या माँ उसके इस अपराध को क्षमा...

नयना (आरती)कानिटकर