सोमवार, 11 अप्रैल 2016

वफ़ादर-३

अपनी सहेली संग कॉलेज से आते हुए दिप्ती  के पैर अचानक ठिठक  गये
"
स्नेहा! देख ईश्वर भी क्या- क्या रंग दिखाता है और हरेक का भाग्य भीएक तरफ़ ये दो मंजिला मकान और उसके कोने से सटे ज़मीन के टुकड़े पर टूटा-फूटा ये मकान,कचरा और ये गंदा सा आदमी उफ़!  इसे कैसे बर्दाश्त..."
"अरे! नहीं दिप्ती ये डा.आशुतोष है.नियती की मार झेल रहे है
"डा आशुतोष..?"
"हा! हा! सच कह रही हूँ.
अर्थ शास्त्र के ज्ञाता थे ये। "अरे! बडी लंबी कहानी है फ़िर भी बताती हूँ
आशुतोष जी  और अराध्या बहूत अच्छे पडौसी थे। अचानक आशुतोष के माता-पिता एक दूर्घटना मे चल बसे, तब अराध्या का बडा मानसिक संबल मिला...बहूत कुछ गुजरा बीच में

"फ़िर..अचानक ये सब?"
"बस नियती ने करवट बदली अराध्या के पिता का व्यपार डूब गया आशुतोष जी ने सहारा दिया बेटा बनकर रहे लेकिन तुम तो जानती हो पैसा अच्छे-अच्छे की नियत बदल देता है। 
एकबार  जब डा.किसी सेमिनार के सिलसिले में लंबे समय के लिये बाहर गये थे अराध्या के पिता ने बेटी के साथ मिलकर सब हडप लिया और अराध्या का...

आशुतोष तो लूट चुके थे, संपत्ति से भी और अराध्या से भी। अवसाद मे घिर गये। नौकरी जाती रही, बस अब इसी तरह...
अराध्या के घर वाले भी कहाँ चले गये किसी को नहीं पता.बस ये "डागी" तब भी उन साथ था, आज भी है अपने पिल्लो संग
 ये सबसे कहते है कुत्ते समान  वफ़ादार कोई नही इनका झुटन  खाने से मेरे रगो मे भी वफ़ादारी दौड़ रही है
नयना(आरती) कानिटकर