शुक्रवार, 22 अप्रैल 2016

धरा पर
जब तक स्त्रियों, बच्चों पर
अत्याचार बिना, शत्रुत्व पूरा नहीं होता
जहाँ गर्भ पर भी
मारी जा सकती है लाथ
जहाँ एक नारी के हाथ
थमा दी जाती है हिंडोले की डोर
जहाँ वह स्वयं तय नहीं कर पाती
अपनी नग्नावस्था,
कब और किसके साथ
और जहाँ उसके बच्चे पर,
लगना होता है किसी
धर्म विशेष का ठप्पा
और ऐसी जगह पर्वत पर,
रक्त जमाने वाली ठंड ,
गर्म तपती रेत पर
मुसलाधार बारिश में, गिले कपड़ों मे
बाढ प्रदेश,सुखाग्रस्त ,कंपित क्षेत्र मे
अस्पताल,मंदिर,गंदगी के ढेर पर
और ऐसी जगह जहाँ
अन्न,पानी वस्त्र,शिक्षा,भविष्य
की कोई आश्वस्तता  नहीं होती
कोई उम्मीद नहीं होती शिशु के
जिवंतता की
बम विस्फोट में
सीमा के इस पार या उस पार
धरा पर सब जगह
जननी  अभी भी
उपज रही है सन्तानें

मूळ कविता--अपर्णा कडसकर
अनुवाद---नयना(आरती) कानिटकर