बुधवार, 14 दिसंबर 2016

"माँ"

माँ का आचल पकड हुई बडी
ना जाने कब पैरो पर हुई खडी
याद वह धुंधलासा बचपन
संस्कार सीखाता उसका जीवन
मेरे अस्तित्व सृजन का आधार
मैं  बस सिर्फ़ तुम्हारा विस्तार
तेरी छाया में पलते देखे ऊँचे सपने
इंद्र्धनुषी रंग में जीवन को रंगते अपने
दुसरे के मन की हर लूँ पीर पराई
तुमसे जीवन की अमुल्य निधी पाई
मुझमें इतनी शक्ति भर दो माँ
हर चोट फूलों सी सह जाउँ
चलते उसूलो पर तुम्हारे
गौरव से जीवन सार्थक कर जाउँ

नयना(आरती)कानिटकर