शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2012

परम्पराए और वैज्ञानिक आधार--2(ii)

आज अमृता अपनी दादी के साथ शाम के पूजा और आरती मे सहयोग कर रही थी.माँ यह सब देखकर मन ही मन प्रसन्न होती है.
  सुनो बेटा अमृता आज मैं तुम्हें शाम की पूजा के बाद जप-तप उपवास का महत्व बताती हुँ.----
  
पूजा के बाद अमृता बडी उत्सुकता से माँ के पास बैठती है. पहले मैं तुम्हें जप के बारे मे बताती हूँ.किसी भी मंत्र की बार-बार कि गयी आवृत्ती या दोहराना जप कहलाता है.यह आप अपने सामर्थ्य के अनुसार ११-२१-५१-१०१ आदी बार कर सकते है.
लेकिन माँ इससे क्या होता है अमृता सवाल करती है एक ही बार  किसी चीज़ को बार बार दोहराना समय कि बर्बादी नही है क्याँ?

 नही बेटा ये संस्कृत मे लिखे मंत्र बार बार दोहराने से इनसे जो स्पंदन होता है वह हमारे दिमाग कि मालिश करता है .इससे हमारी बुद्धि तेज होती है और बार बार दोहराने से ग्रहण करने कि क्षमता बढती है.साथ -साथ हमारी जिव्हा की भी कसरत होती है .इससे हमारे उच्चारण स्पष्ट होते है.मैं तो चाहती हूँ स्कुलो मे संस्कृत विषय कक्षा एक  से ही रखा जाये तो बच्चों को पढने मे आसानी होगी.
अब उपवास के बारे में सुनो 
शरीर शोधन की दृष्टि से  व्रत एक विज्ञानपरक आध्यात्मिक पद्धति है, क्योंकि जप, मंत्र प्रयोग, सद्चिंतन, ध्यान, स्वाध्याय के साथ-साथ प्राकृतिक- चिकित्सा-विज्ञान के प्रमुख सिद्धान्तों का उसमें भली प्रकार समावेश रहता है। 
उपवास में पाचन यंत्रें को विश्राम व नवजीवन प्राप्त करने का अवसर मिलता है। पेट में भरी हुई अम्लता, दूषित वायु एवं विषाक्तता शरीर के विभिन्न अगणित रोगों का बड़ा कारण है। 
      अब रही उपवास की बात तो किसी धर्म ग्रंथ मे यह नही कहा गया कि आपको भूखा रहना है. उपवास करना मतलब अपने आप को किसी विशिष्ट चीज़ों के लिये कुछ घंटे, कुछ दिन तक दूर रखना.हमारे उदर को भी आराम करने का समय प्रदान करना.इससे हमारा पाचन संस्थान सुचारु रुप से चल सके.
    "लेकिन माँ!  लोग तो उपवास के नाम पर अनेकों ऐसी चीज़े ग्रहण करते है" 

 ये तो  उनका भोजन मे स्वाद का परिवर्तन है बेटा!! इसमे कई बार हम जरुरत से ज्यादा भी खा लेते है.
जैसे मैने तुम्हें बताया "विशिष्ट चीज़ों के लिये कुछ घंटे, दिन तक दूर रखना" इसमे हमारे संयम की परीक्षा है बेटी इससे  कई आवश्यकता पडने पर  कठिन परिस्थिति में  भी हम  अपने आप को संतुलित रख पाते है.मनुष्य जीवन मे अनेक उतार चढ़ाव आने पर भी हम परिस्थिति से लड़  सकते है.
साथ ही ये ध्यान रखना है कि किसी बीमार व्यक्ति ने धर्म के नाम पर तो उपवास बिल्कुल नही रखना चाहिये.

   अब रही तप कि बात तो यह उपवास और जप के उपर कि पायदान है इसमे अनेकों पहलू है जो साधारण मनुष्य के वश की बात नही है.

अमृता माँ कि बताई बातो से संतुष्ट होती है --कहती है माँ अगले वर्ष नवरात्रि  मे मैं मेरी सबसे प्रिय चीज़ होगी उसे ९ दिनो तक दूर रहकर उपवास करूगीं ---जैसे आइसक्रीम-हा हा हा
 माँ भी हँसते हुए उसकी बात का समर्थन करती है.