मंगलवार, 6 अक्तूबर 2015

भविष्य

.मुख्य अध्यापक शाला के काम से गाँव से बाहर है.अचानक स्कूल के निरीक्षण की खबर आती है
रामसिंह  जो संस्कृत के अध्यापक है.वे जल्दी -जल्दी  बच्चों को इकठ्ठा कर सारी कक्षाए साफ़ करने को कहते है.
अधिकारी के लिये चाय- मिठाई का इंतजाम भी हो जाता है.
"मन ही मन सोचते  है अच्छा मौका हाथ लगा है मेरे लिये अपनी धाक जमाने का."
"बच्चों ये अधिकारी आज हमारे स्कूल की जाँच करने आए  है.आप लोगो से जो भी पूछे उनके सही-सही जवाब देना."
"हा!!!!!! गुरु जी बच्चे चिल्ला पडते है."
अधिकारी स्कूल का अलग-अलग कक्षाओं मे घूमकरनिरीक्षण करते है-और अंत मे कक्षा ६ मे प्रवेश करते है.
"नमस्ते बच्चों!!!"
अच्छा ये बताओ पृथ्वी का आकार कैसा होता है" --बच्चे चुप
 "बच्चे--- सर पृथ्वी का आकार चौकोर है."
अधिकारी भौचक्के से पिछे देखते है तो रामसिंह चौकोर  पेपर वेट को गोल घुमाकर बच्चों को इशारा कर रहे है."
."अच्छा अब संस्कृत के इस श्लोक का अर्थ बताओ " आप ही बताइए राम सिहं
विद्या ददाति विनयं विनयाद्याति पात्रताम्"
"सर विद्या ने विनय को पत्र देते हुए कहा---"
रामसिंह पसीने से  तरबतर---"किसने बनया आप को संस्कृत का शिक्षक"
"सर वो अखिलेश जी की सिफारिश---"कहते हुए  हाथ जोड रामसिंग थर-थर काँप रहे है
इस अधजल गगरी से क्या होगा हमारे बच्चों का भविष्य.?
चिंता मे अधिकारी गाड़ी स्टार्ट कर निकल जाते है.