ओह! शब्द
मिल ही नही रहे
स्याही खत्म हो जाए
तो भर सकती हूँ कलम में
किंतु...
फिर भी वो
टिकी हुई है कागज़ पर
इस उम्मीद में...
की
शब्द प्रस्फ़ुटित होगें
हवा के स्पंदन से
बह उठेंगे मन से
टपक पडेंगे नयनो से
मूळ कविता:- आसावरी काकडे
अनुवाद/ भावानुवाद प्रयास:- नयना(आरती) कानिटकर
मिल ही नही रहे
स्याही खत्म हो जाए
तो भर सकती हूँ कलम में
किंतु...
फिर भी वो
टिकी हुई है कागज़ पर
इस उम्मीद में...
की
शब्द प्रस्फ़ुटित होगें
हवा के स्पंदन से
बह उठेंगे मन से
टपक पडेंगे नयनो से
मूळ कविता:- आसावरी काकडे
अनुवाद/ भावानुवाद प्रयास:- नयना(आरती) कानिटकर