शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2015

प्रत्युत्तर

 रात के ११ बज रहे थे बेटा अभी भी घर नहीं लौटा था.
पति देव थे की न्यूज़ चैनल लगा आराम से सोेफे पर पसरे हुए थे.
घर के दालान मे चहल कदमी करते मेरे मन मे असंख्य अच्छे-बुरे विचारों का कोलाहल मचा हुआ था.
"तुम अंदर चलो रात के ११ बज रहे है,बेटा अब इतना छोटा भी नही रहा कि---"
"तभी तो ज्यादा डरती हूँ छोटा होता तो दो थप्पड जड पूछती देर से आने कि वजह--"
तभी मुख्य द्वार पर कार रुकने की आवाज़ आती है
"तुम हटो मैं देखता हूँ आज उसे"
"दीपक !! ये कोई वक्त हुआ तुम्हारे आने का? और ये तुम्हारे मुँह से बदबू--"
हटिये पापा!! हफ़्ते भर के काम का तनाव कम करने के लिये एक दिन मैने पी ली तो?
आप की तरह हर -------तेजी से अपने कमरे की और चला गया

मौलिक और अप्रकाशित

----विडम्‍बना---

रोजी के सिलसिले मे वह दिनापुर से बाहर दिल्ली जा बसा है.आज अचानक माँ के गंभीर बीमारी की खबर से कलकत्ता पहुँचता है . जल्द से जल्द माँ के पास पहुँचना चाहता है जो अस्पताल मे भर्ती है .
सारा शहर सुबह की मुसलाधार बारिश से अस्त-व्यस्त हुआ पडा है,चहू और पानी ही पानी और बदबू.
एक आटो रिक्शा को आवाज़ लगाता है मगर वह इतने पानी मे रिक्शा चलाने से मना कर देता है.
तभी उसकी नजर हाथ गाड़ी वाले पर जाती है.
"अरे दद्दु क्या मुझे अस्पताल ले चलोगे जरा जल्दी मे हुं" ,कहते हुए रिक्शा पर सवार हो गया.
" दद्दु जरा जल्दी-जल्दी चलो -"
" दद्दु!!!! मगर ये शहर के इतने बुरे हाल पहली ही बारिश मे कैसे????", वह उनसे पूछता है
"अब क्या बताए बाबू , नये जमाने के नये लोग घर से ख़रीददारी करने निकलेगे मगर झोला नही लाएगे.सारा सामान प्लास्टिक की थैलियो मे भर लेगे और फिर उन्हे यू ही कचरे के साथ फेक देगे.वे सारी उड-उड कर नलियों मे जमा हो जाती है.अब सफाई कामगार भी नही मिलते. पानी की निकासी कैसे हो?"
"सच बात है दद्दा!! अंधानुकरण की दौड़ मे हमने प्लास्टिक अपनाया वरना हमारी जूट और कपड़े की थैलियो का क्या मुकाबला?"
यह कहते हुए वह प्लास्टिक कि पन्नी से खाने का सामान निकाल कर खाने लगा और पन्नी को यू ही रास्ते पर फेक दिया .
व्यंग्य मिश्रित मुस्कान के साथ दद्दू ने सोचा," विडम्‍बना . ." और वे रिक्शा खिचते रहे.

नयना(आरती) कानिटकर