सोमवार, 17 जून 2013

वह



रुकी हुई वो पथ पर
पदचाप के नाद से
प्रित मे बंधी सी वो
अनुराग था कही वो---

 बयार की वो ठंढक
म्लान सी वो साँसे
कुहाँसे की सुबह में
कही दूर जा रही ----

वीरान मेरे घर मे
प्रश्नों का अंबार सा था
अंत रंग भेद गयी हो
जैसे स्याह रात मेरी--

अलभोर उस सुबह को
मौन,स्तब्ध सी मैं
आँगन मे एकाकी जैसे
तुलसी भी निस्तब्ध सी हो