मंगलवार, 22 जनवरी 2013

मेरे बाबा

थामी थी उँगली बाबा की
जब मैने चलना सिखा था
गिरते वक्त सम्हालते हुए
बाबा को हँसते देखा था
धीरे-धीरे हाथ पकड़ फ़िर
बाबा ने ही थी सीढ़ी चढाई
चढ़ते और उतरते मे उन्हें
अपलक निहारते देखा था
धिरे-धिरे बिन थामे जब
सीढ़ी-दर सीढ़ी चढने लगी
हँसते हुए मस्तक पर उनके
चिंतित आडी रेखा को देखा था
चढ़ते-चढ़तेऊँचाई जब मैं
बिच सीढ़ी मे  ही अटक गई
उपर आसमान, नीचे धरती देख
अपने आप मे भटक गई
बाबा ने फिर कदम बढाए
देकर अपना हाथों मे हाथ
पहले धरती पर लाए, फिर
फेरा मेरे माथे पर हाथ
कहने लगे बेटा पहले धरती पर
नींव बनाओ बडी मजबूत
फिर रखो हर पायदान पर
पाँव तुम्हारे बडे सुदृढ
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बाबा कि बातें सुनकर मैं
लटकी सीढ़ी से नीचे आ गई
लिपटकर गले मे बाबा के
मैं सौ-सौ आँसू बहा गई
फिर थामा था हाथ मेरा
आज बाबा ने मज़बूती से
देकर कहा हिम्मत बाबा ने
अब ऐसे ना तुम घबराओ
दो मेरे हाथ मे हाथ तुम्हारा
सीधे एवरेस्ट को चढ़ जाओ
दिये हाथ मे हाथ बाबा के
मैं तो गिरते-गिरते सम्हल गई
लड़ने कि ताकत ले जुटा अब
दुनिया जितने निकल गई

नयना(आरती) कानिटकर
२२/०१/२०१३



सोमवार, 21 जनवरी 2013

पिता कि व्यथा

आओ हम-तुम यू गले मिले
माँ से तो तुम हर रोज मिले,

आओ ख़ुशियाँ  मेरे संग बाँटो
जज्बातों कि लहरों को काटो,

मन के छुपे भावो को यू ना रोको
आँसुओ को  आँखो मे ना  रोको,

ना लगे  बात न्याय युक्त तो
मुझ को भी रोको और टोको

फिर

तुमने मुझसे ये दूरी क्यों चुन ली
माँ कि सदा पकड़ ली उँगली,

आओ हम-तुम साथ चले
डाले हाथों मे हाथ चले,

माँ को तो हर दिन याद करो
पर मुश्किलों मे मेरा हाथ धरो,

लो अब हम तुम गले मिले
चले रिश्तों के सुनहरे सिलसिले