गुरुवार, 29 अक्तूबर 2015

औकात

बुखार में तप रही सुधा ने खाट पर बैठे-बैठे ही "बुढ़िया के बालों" (कैंडी) के पैकेट तैयार किये और भोलु को आवाज़ लगाई।
भोलू !!!! ले  आज तू इसे बेच आ बेटा!!,वरना रात का चुल्हा नही जलेगा।"
"माँ लेकिन मेरा स्कूल???? ---चल आज मैं जाता हूँ पर तू आराम करियो (करना) घर पर।."
काश आज बापू जिंदा होते तो।
सारा दिन घूप मे घुमकर "बुढ़िया के बाल" (कैंडी) बेचते-बेचते भूखा-प्यासा हो वह एक चौराहे पर थोड़ा सुस्ताने बैठ जाता है। थकान से कब आँख लग जाती  है पता ही नही चल पाता।
तभी एक सुंदर सी परी------
 "भोलू बेटा!!! उठो ये देखो  मैं तुम्हारे लिये क्या लाई हूँ । ये लो पहले कुछ खा लो और  देखो ये रही तुम्हारी क़िताबें,चलो शाम होने वाली है मैं तुम्हें माँ के पास छोड आऊँ। चलो उठो जल्दी!!
 "अरे!!! मैं कहाँ आ गया ? "
"माँ!!! कहाँ हो ? हमारा घर और माँ तुम्हारा बुखार!! तुम ठिक तो होना????

तभी एक दरोगा आकर उसके पुठ्ठे पर धौल जमाकर कहता है--
"चल उठ !!बे क्या अपने बाप की जगह समझ रखी है । इसकी  औकात तो  देखो जो यहाँ सोकर सपने देख रहा है ।