शुक्रवार, 4 सितंबर 2015

हकीकत

   
क्या पढ़ते रहते हो बाबा अखबार मे रोज यहाँ  आकर,इतनी कमजोर आँखो से.
      अपनी छोटी सी दुकान पर बैठे-बैठे ही हरिया ने पूछा.
   रोज देखता हूँ!! कही मेरे बेटे अमन का नाम तो नहीं हे!!!! ना अखबार में,जब ना हो तभी चैन  मैं से सो पाता हूँ
        आपके बेटे का नाम  वो क्यूँ??? क्या आपका भी कोई बेटा है.फिर ये डर कैसा???
       हाँ है ना !! मैने अपना पेट काटकर उसे पढाया -लिखाया,फिर वह आगे पढने शहर चला गया.बहुत बडा अफ़सर बन गया है अब वह.बहुत बडी कोठी,कार,नौकर-चाकर सब है उसके पास
      तब तो आपको ख़ुश होना चाहिए.उसकी उन्नति देखकर,फिर इस तरह अखबार मे उसका नाम ढूँढना ,मैं कुछ समझा नहीं.
        दो मिनट को सन्नाटा छा गया,बाबा आँखो मे आँसू भरकर बोले डर इसी बात का तो है,इतने एशो-आराम के लिये आजकल लोग अपना ईमान तक बेच देते है. कही मेरा अमन???? :( :(.गलत रास्ते पर ना चल दिया हो
 अखबार मे कही ये  खबर ना आ जाए कि आज "-------"  के घर इन्कम टैक्स की रेड पडी है और भ्रष्टाचार से कमाया लाखों रुपया नक़दी,जेवरात आदि मिले है.

नयना(आरती) कानिटकर
०४/०९/२०१५