शनिवार, 28 नवंबर 2015

कैद से मुक्त

जब से ब्याकर इस घर मे आयी पति और सासू माँ के इशारे पर ही नाचती रही | सासू माँ दबंग महिला थी अपनी हर बात सही साबित करती और उसे मनवा कर ही दम लेती |
पति देव भी जब-तब छोटी-छोटी बात पर उसे तलाक के लिये धमकाते रहते | फिर भी इन सब परिस्थितियों से लढ़कर चुपचाप रात के अंधेरे मे उसने सिविल सेवा  की तैयारी की थी |
    आज उसका परिणाम निकला था उसे डिप्टी कलेक्टर के पद के लिये चुन लिया गया था .समाचार पत्र मे उसकी तस्वीर सहित परिणाम घोषित हुआ था.
   आज दोनो के मुँह पर ताला जड गया  और वो सांसों की  कैद से मुक्त |
नयना(आरती) कानिटकर
२८/११/२०१५

जरा सी गिरह

हरे रंग की लाल किनारी वाली साड़ी मे सुनयना का रुप जैसे और खिल आया था.
"राज ने छेडा भी उसे "ओहोSS !!! क्या बात है,आज तो ग़जब ढा रही हो."
"हा!! राज आज रक्षा बंधन है ना मुझे "कान्हा"  को राखी बांधनी है .वो मेरे मित्र ,मेरे भाई सभी  तो है .मेरा  अपना भाई तो  नाराज़------"आँखें भर आई सुनयना की.
तभी द्वार की घंटी बजी--- सामने सुजीत को देख ,सब कुछ भूल गई और उसे गले से लगा लिया .
"जरा सी गिरह से तू कितना नाराज गो गया मेरे छुटकू"
भाग कर  अंदर गयी और जल्दी से आरती की थाली ला रक्षा सूत्र उसके हाथ मे बांध दिया.
  आज सुजीत मे उसने कान्हा का रुप देख लिया था.

नयना (आरती) कानिटकर
२८/११/२०१५

शुक्रवार, 27 नवंबर 2015

"खरीददार"

अवध सिंग ने जब कोठे मे प्रवेश किया तो सारा कमरा शराब की गंध से भर उठा.
वह  अवध को लगभग खिंचते उसे दूसरे कमरे मे ले जाने लगी. तभी उसकी नजर
"अरे!!! ये ये कौन चम्पाकली है तेरे संग. आज तू इसे मुझे सौंप दे. वैसे भी तू अब सूखा फूल---"
"नागिन की तरह फ़ूफ़कार उठी कमला.मजबूरी मे बिकी थी मैं."
"तू!!! मेरी बेटी का खरीददार नहीं हो सकता."
उसे बाहर ठैल भडाक से दरवाज़ा बंद कर लिया.
नयना(आरती) कानिटकर
२७/११/२०१५

"नीला आकाश"

सुन्दर वस्तुओ के प्रदर्शनी के एक स्टॉल पर एक हिरे-मोती का व्यापारी और एक सोने का व्यापारी आ पहुँचते है। दोनो भिन्न-भिन्न चीज़े देखते तभी उनकी नजर एक कोने मे पिंजरे मे रखी सफ़ेद मैना पर जाती है,दोनो का मन मोह उठता है उसपर।
" भाई तुम बाकी चीज़े तो रहने दो मुझे ये सफ़ेद मैना बेच दो मैं इसे रोज मोती के दाने चूगाऊँगा।"
"तुम इन्हे छोड़ मुझे बेच दो मैं इसके लिये सोने का पिंजरा बनवा दूँगा ये इस लोहे के पिंजरे मे शोभा नही देती।"
दोनो व्यापारी ही आपस मे उलझ पड़ते है उसे ख़रीदने को.
"नहीं-नहीं मैं इसे नहीं बेच सकता ये तो मेरी जान है।" इसे बेचकर मे------
दोनो बहुत दबाव डालते है उस पर मैना को बेच देने के लिये।
हार कर वो कहता है --"ये मैना इंसानी भाषा जानती व बोलती है।एक काम करता हूँ इसका पिंजरा खोल देता हूँ,ये जिसके भी कांधे पर बैठेगी ,उसी की हो जायेगी।
पिंजरा खुलते ही मैना फ़ुर्र्र्र्र्र्र्र से उड जाती है--"मुझे ना तो मोती चाहिए ना सोने का पिंजरा।"
" वो देखो नीला आकाश बाहे फ़ैलाए मेरा इंतजार कर रहा है।"
नयना(आरती) कानिटकर
२७/११/२०१५



मुझे जीने दो-विषयआधारित

अस्पताल पहूँचते ही  हृदय जोर-जोर से धड़कने लगा,कही इस बार भी डाक्टर ने लड़की---
" तभी नर्स ने आवाज़ लगाई सुगंधा!!!--आइए"
जाँच के लिये डाक्टर ने जैसे ही स्टैथौस्कोप लगाया. अंदर से आवाज़ आई-"मुझे जीने दो" "मुझे जीने दो"
 डाक्टर ने इस बार स्टैथौस्कोप का डायफ़्राम पेट पर रख ईयरटिप मेरे कानों मे लगा दी थी.फिर आवाज़ गुंजी"मुझे बचा लो माँSSSS "प्लीज़ "मुझे जीने दो".मेरा शरीर बुरी तरह थरथर कांपने लगा.
 पसीने से तरबतर  डाक्टर के हाथों से स्टैथौस्कोप नीचे गिर गया और वे धम्म से कुर्सी मे समा गई.
नयना(आरती) कानिटकर
२७/११/२०१५


गुरुवार, 26 नवंबर 2015

व्यक्तित्व निर्माण


 चारों ओर चमकती रौशनी,डीजे पर थिरकति जोड़ियाँ,भिन्न-भिन्न व्यंजनो की खुशबू  ने पूरे वातावरण मे मादकता घोल दी  थी। पार्टी पूरे शवाब पर थी कि अचानक एक समूह से तल्ख बातचीत की आवाज़ सुनाई दी.अमित अंजू   से बडी तल्खि से पेश आ रहा था। आदिश ने जब एतराज़ जताया तो वह उससे उलझ पडा और फिर बात तू-तू,मैं-मैं तक पहुँच गयी।
     जरा चलो अमित!!अंजू ने बाँह पकड़ लगभग खिंचते हुए उसे कुर्सी  पर बैठाया। प्यार से उसका हाथ पकड़ माथे पर बच्चों सा सहलाने लगी। सभी का ध्यान उसकी और खींच गया। थोड़ी ही देर मे सामान्य होने पर वह उसका हाथ थामे डांस फ़्लोर पर थिरकने लगी,अमित भी अब सामान्य हो अन्य गतिविधियों मे संलग्न हो गया।
"अंजू तुम कैसे सह लेती हो अमित का यह व्यवहार,मैं तो जरा भी बर्दाश्त नहीं कर पाऊँगी.फिर तुम मे भी क्या कमी है। "
"बात कमी कि नहीं है नेहा!! तू तो जानती हो अमित एक भयंकर कार दुर्घटना से उबरकर हमारे साथ है। पुनर्जीवन मिला है उन्हे । दवाओं ने उन पर बुरा असर डाला है।
अभी मेरे बच्चे भी बडे हो रहे है ,सबसे बडी बात उनके व्यक्तित्व निर्माण का दौर चल  है ये। ऐसे मे अमित रूपी नींव के डगमगाते खंभे को मैं ही तो मज़बूती से थाम सकती हूँ। तभी माइक पर आवाज़ गुंजी---
" आज के ईवेंट के बेस्ट कपल है----"
अमित ने कस कर अंजू का हाथ थाम लिया।
नयना(आरती) कानिटकर

पहला सेल्फ़ी

हमारे दोनो बच्चे छोटे-छोटे थे.  दोनो को अचानक घूमने जाने का बहुत शौक चढ़ आया।  जिद  कर बैठे शिमला-मनाली जाने क। परिवार के साथ .... पूरे १० तीन का टूर प्लान किया था हमने। रेल्वे के स्लिपर क्लास और पब्लिक ट्रांसपोर्ट से घूमना ...आहा !! कितना आनंद दायक था।
      गंतव्य तक  पहुँच कर वहाँ रूकने के लिए होटल में सस्ता कमरा तलाशने के लिए तुम बाहर होकर आते मैं बच्चों और  सामान के साथ प्रतीक्षालय मे बैठकर इंतजार करती।
.... हम कई जगह  घूमें .....लेकिन तरीका ये होता कि एक जगह से दूसरे जगह   बस से रात के सफ़र का टिकट लेते कोई एक ही जाकर ...फिर रूकते भी एक ही कमरा लेकर .. सामान उसमें रख देते बारी-बारी नहाकर तैयार होते ,नाश्ता साथ करते ...और अपनी पसंद के अनुसार घूमते दिन भर ।  तब हमारे पास एक कैमरा था पुराना.आखिरी दिन  बिटिया ने  कैमरा सेट कर भागकर मेरे पिछे गले मे बाहें डालकर और बेटा तुम्हारे गले मे बाहें डाले "पहला सेल्फ़ि "लिया था हमने । बाद मे दो कापी बनाई  थी ,  ताकी दोनो बच्चे फोटो के लिये आपस मे झगड़ा ना करे । दोनो ने अपने-अपने बक्से मे रख दिया उसे सहेज कर।
   बेटी को विदा करने के बाद आज जब सब मेहमान भी रवाना हो गये ,तो मैने बेटी की यादों का बक्सा खोल लिया और ये तस्वीर हाथ आ गयी. तभी तुम भी पहुँच गये.
    बेटी के साथ गुजारे  क्षणों का " थोडा सा चंद्रमा "सिमट आया मेरे आँचल मे और तुम भी भावुक हो गये.
नयना(आरती) कानिटकर

मंगलवार, 24 नवंबर 2015

उत्तराधिकारी

        अत्यंत रुपवती स्नेहल के लिये सिर्फ़ एक रुपया और सुपारी मे सेठ करोडीमल की ओर से रिश्ता चल कर आया तो माँ-बाबा पहले तो डर गये मगर अपनी गरीबी परिस्थिति देख रिश्ता स्वीकार कर लिया था.
      विवाह पश्चात एक अत्यंत साधारण परिवार से निकल जब गोकुलधाम मे  कदम रखा तो    सिर्फ़ बाबा की बातें गांठ बांध कर लाई थी.
" बेटा देने को मेरे पास कुछ नहीं है,बस संस्कारो की गठरी तुम्हें सौंप रहा हूँ.मेरा मान रख पति और ससुराल वालो से  सामंजस्य बैठा लेना . यहाँ तो तुम्हें मे ठिक से दो जून रोटी भी नही खिला सका,वहाँ तुम्हें दोनो वक्त की रोटी तो भर पेट मिलेगी.
    अपने प्यार से ,बर्ताव से मैने उनके बेटे के साथ-साथ सेठ का दिल भी जीत लिया था जब  उनका निकम्मा बेटा भी उनके काम मे हाथ बटाने लगा था."
       गहन चिकित्सा कक्ष मे भर्ती सेठ करोडीमल के सिरहाने बैठी वो इसी सोच मे मग्न थी.
   तभी सेठ करोडीमल भी आँखो  के इशारे से उसे पास बुलाते हुए एक लिफ़ाफा थमा खोलने को कहते  है .
आज वैकुंठ चतुर्दशी है ना ?  आज तुम्हारा जन्मदिन है,ईश्वर तुम्हें वो हर खुशी प्रदान करे जिसकी तुम हक़दार हो.जन्मदिन के अनेक आशीष के साथ वसियत  देख--."
                 " आज से तुम्हें  इस  गोकुलधाम एम्पायर की उत्तराधिकारी घोषित करता हूँ "-- आज मेरे घर भी तुम्हारे रुप मे एक बेटी का जन्म हुआ है ."
नयना(आरती)कानिटकर

इबादत -२

---- इबादत ---(प्रतियोगिता के लिये) -गागर मे सागर "सच्ची उपासना"
आँख खुलते ही गुलाब का फूल हाथों मे थमाते दादी ने कहा!!!--"जन्मदिन की शुभकामनाएँ और ढेरों आशीष,आज का दिन तुम्हारे जीवन मे अनेक सौगाते लाए एकदम अलग सा दिन हो तुम्हारा
।"
वाह पापा!!! आप मेरे लिये क्या उपहार लाये है और हमारा बर्थ डे केक कहाँ  है?
रेखा ने नयी  गुलाबी फ़्राक थमाते हुए कहा--रुकिये सलोनी!!!  पहले दैनिक कार्यो से निवृत हो स्नान कीजिए फिर हम सबसे पहले उस ईश्वर को धन्यवाद करने मंदिर जाएंगे जिसने इतना सुंदर तोहफ़ा तुम्हारे रुप मे हमे दिया है.
"वाह कितनी सुंदर फ़्राक."
"चलिये पापा,माँ,दादी मैं तैयार होकर आ गई हूँ
। जल्दी केक लाईये।"
"रुको बेटा !! आज पहले  केक  नही कटेगा। पहले गाड़ी मे बैठो हमे कही जाना है  फिर--"
ओह!! दादी अब मैं बड़ी हो गई हूँ पूरे ६ साल की फिर भी आप ठिक से कुछ नही बता रहे मुझे।"
गाड़ी एक अनाथ-विकलांग बच्चों के स्कूल के आगे रुकते ही--बच्चे द्वार तक आकर अपनी-अपनी क्षमता से गाने लगते है---"हैप्पी बर्थ डे टू यू--हैप्पी बर्थ डे टू यू".
सलोनी आनंद विभोर हो उठती है. मगर" पापा,दादी आप तो किसी मंदिर जाने की बात कर रहे थे."
बेटा!! इन बच्चों मे ही सच्चा ईश्वर वास है.इन बच्चों के चेहरे की खुशी को देखो। नियती ने इनसे कुछ ना कुछ छिन लिया,लेकिन हमारे जैसे परिपूर्ण लोग इन्हे ख़ुशियाँ बाटकर उस सर्वशक्तिमान की सच्ची उपासना (इबादत) कर सकते है
सलोनी -तोहफ़े से भरे बक्से से सुंदर-सुंदर उपहार निकाल उन्हे बाँटने लगती है


नयना(आरती) कानिटकर

2)गाड़ी एक अनाथ-विकलांग बच्चों के स्कूल के आगे रुकते ही--बच्चे हाथों मे फूल थामे द्वार तक आकर अपनी-अपनी क्षमता से गाने लगते है---"हैप्पी बर्थ डे टू यू--हैप्पी बर्थ डे टू यू".
सलोनी आनंद विभोर हो उठती है. " पापा,दादी !! मगर आप मेरे जन्मदिन के उपलक्ष्य मे  किसी मंदिर जाने की बात कर रहे थे."
ओह!! अब समझी  दादी !!!आपने सुबह आँख खुलते ही गुलाब का फूल हाथों मे थमाते हुए इसीलिए कहा!!!--"जन्मदिन की शुभकामनाएँ और ढेरों आशीष,आज का दिन तुम्हारे जीवन मे अनेक सौगाते लाए और एकदम अलग सा दिन हो तुम्हारा।"जी  हाँ बेटा!! इन बच्चों मे ही सच्चा ईश्वर वास है.इन बच्चों के चेहरे की खुशी को देखो। नियती ने इनसे कुछ ना कुछ छिन लिया,लेकिन हमारे जैसे परिपूर्ण लोग इन्हे ख़ुशियाँ बाटकर उस सर्वशक्तिमान की सच्ची उपासना (इबादत) कर सकते है सलोनी -पापा के लाए तोहफ़े से भरे बक्से से सुंदर-सुंदर उपहार निकाल उन्हे बाँटने लगती है
नयना(आरती) कानिटकर

सोमवार, 23 नवंबर 2015

इबादत-३

  पुलिस के कडे सुरक्षा घेरे  के बीच जब  उन्हे न्यायालय  परिसर मे लाया गया तो बिरादरी और आम लोगो की  नज़रों से बचने  के लिये वह अपना मुँह ढाक पिता के पिछे-पिछे चली आई।

        उसे अपने किये का  जरा भी रंज नही था
 सेना और आतंकी मुठभेड़ मे एक आतंकी उनके घर मे घुस आया था।तब डर के मारे उन्होने उसे पनाह दी थी मगर----
   सुबह के धुंदलके   मे  उसे अचानक अपने शरीर पर किसी का स्पर्श महसूस होता है.।"
वह हिम्मत से काम ले अपने सिरहाने रखी दराती (हँसिया) उठा अचानक उसके दोनो हाथों पर ज़बरदस्त वार कर देती है।
  वह चिखते हुए भागने की कोशिश मे उसके पिता के हाथ पड जाता है और अंत में------
अब्बा  को  भी अपने किये का ना कोई दुख ,ना कोई   शिकन ---
.ईद के मौके पर आज उनकी बेटी ने बिरादरी पर लगे कलंक की बलि देकर  अल्लाह की सच्ची इबादत की है।


शनिवार, 21 नवंबर 2015

"आभा

---"जीवन रेल"--- रुपा माँ बनने वाली थी.मै भी बहूत खुश था मैं मारे खुशी के उसे उठाकर झुमने वाला था कि माँ जोर से बोल पडी-
"सुन मास्टरनी मैं तो बेटा चाहू हूँ। जिला अस्पताल जाकर जाँच करा लियो जल्दी से बेटी हुई तो गाँव की दाई के बुलवा----.
"मास्टरनी होगी तु अपने स्कुल की मेरे घर मे रौब ना झाडना,घर मे तो मैं ही मास्टरनी हूँ याद रखियो। "
बिफ़र पडी थी रुपा माँ पर और मुझ पर भी।
मैं भी समझती हूँ महेश!!! क्या तुम भी मेरा साथ नहीं दोगे मेरी चुप्पी ने उसे अंदर तक तोड दिया था। फिर बीना बताए चुपचाप वह घर छोड़ गई थी
मेरी हर शाम रुपा के इंतजार मे पटरियो पर गुजरने लगी.सोचता ये लोहे की पटरियां भी तो कही ना कही एकबार मिलती फिर मुडती भी है, रास्ता बदलने के लिए। एक बार तुम मिल जाओ तो मै इस बार सब-कुछ छोड़ तुम्हारे साथ चल दूँगा।
पता नही मैं बाप बना हूँ -- इसी उधेडबुन मे था कि मोबाईल की घंटी बज उठी--
हैलो महेश!!!! में रुपा बोल रही हूँ ट्रेन मे हूँ बस पहुचने ही वाली हूँ गाँव।
हैलो रुपा!!!! क्या ----.तभी बातचीत कट जाती है।
पटरियों से उठ दौडकर स्टेशन पहुँचता हूँ. रुपा सामने ही खडी है।
ये लो महेश!! हमारे जीवन रेल को चलायमान करने वाली हमारी बेटी।
हमारे जीवन मे "आभा" बिखेरने को आतुर।
नयना(आरती)कानिटकर
२१/११/२०१५

जीवन रेल

"मास्टरनी होगी तु अपने स्कुल की मेरे घर मे रौब ना झाडना,घर मे तो मैं ही मास्टरनी हूँ याद रखियो। "
  गाँव के प्रायमरी स्कूल की शिक्षिका "रुपा" माँ की बुजुर्गियत का ख्याल रख   चुपचाप ताने सुनती रहती।
मै भी उसे समझाता रहता --हर दिन एक से नहीं होते धिरज रखो हमारी जिंदगी की रेल भी पटरी पर दौडेगी. तभी --
"सुनो!!! महेश मैं माँ बनने वाली हूँ। "
मैं मारे खुशी के उसे उठाकर झुमने वाला था कि माँ जोर से बोल पडी--
"सुन मास्टरनी मैं तो बेटा चाहू हूँ। जिला अस्पताल जाकर जाँच करा लियो जल्दी से बेटी हुई तो गाँव की दाई के बुलवा----.
बिफ़र पडी रुपा माँ पर और मुझ पर भी।
  मैं भी समझती हूँ महेश!!! बुज़ुर्ग का सम्मान करना किंतु क्या तुम भी मेरा साथ नहीं दोगे मेरी चुप्पी ने उसे अंदर तक तोड दिया और फिर बीना बताए चुपचाप उसने घर छोड़ दिया।
 पूरा एक अरसा गुज़र गया  बहुत खोजा था उसे। आखिर हार कर रोज शाम को पटरी पर आ बैठता रुपा के आने के इंतजार मे हर गाड़ी को तकता सोचता रहता था कि  हमारी पटरियों के बीच की दूरी आखिर इतनी लंबी क्यो है? ये  लोहे की पटरियां भी तो कही ना कही एकबार मिलती फिर मुडती भी है, रास्ता बदलने के लिए। एक बार तुम मिल जाओ तो मै इस बार सब-कुछ छोड़ तुम्हारे साथ चल दूँगा। पता नही मैं बेटे का बाप बना हूँ या कि बेटी का इसी उधेडबुन मे था कि मोबाईल की घंटी बज उठी---
हैलो महेश!!!! में रुपा बोल रही हूँ  ट्रेन मे हूँ बस पहुचने ही वाली हूँ गाँव।
हैलो रुपा!!!! क्या तुम्हारे साथ हमारा बच्चा----.तभी बातचीत कट जाती है।
पटरियों से उठ दौडकर स्टेशन पहुँचता हूँ. रुपा सामने ही खडी है।
ये लो महेश!! हमारे जीवन रेल को चलायमान करने वाली हमारी बेटी-जो अब हमारे जीवन मे  "आभा" बिखेरने को आतुर है।
नयना(आरती)कानिटकर
२१/११/२०१५

शुक्रवार, 20 नवंबर 2015

मातृत्व

लाखों जतन किये  डाक्टर,पूजा-पाठ ,उपवास जप-तप-मंत्र  ,हर वक्त कलेजे से एक हूक सी उठती रहती जो उसके स्त्रीत्व पर वार करती मगर ईश्वर को उसकी झोली भरना मंज़ूर ना हुआ
  हार कर  रिश्तेदारों के बच्चों मे ही उसने अपना मातृत्व ढूंढने की कोशिश कीउन्हे अपने पास रखा ,अपने आंचल तले ममता की छांव दी,अपनापन दिया,पढ़ाया-लिखाया लेकिन ममता की डोर उन्हे भी बांधने मे कामयाब ना हो सकी वे भी उड गये पंछी  की तरह  आकाश मे उँची उड़ान भरने जो फिर लौटकर घोसले मे कभी ना आये
  सोचते-सोचते अखबार पढते हुए  अचानक उसकी नजर आज के वर्गिकृत विज्ञापन के पेज पर अटक गई
            "एक कामकाजी दंपत्ति को अपना बच्चा सम्हालने के लिये आवश्यकता है एक ऐसी महिला की जो    बच्चे को नानी-दादी सा प्यार दे सके."
  अपनो को तो बहुत देख चूकि थी. अब निश्चय किया पराये के काम आने का.शायद अब उसके कलेजे को ठंडक मिल जाये
 उठकर तुरंत दिये  गए मोबाईल नंबर पर उँगलिया घुमा दी.
नयना(आरती) कानिटकर


मंगलवार, 17 नवंबर 2015

मेरा वक्त

वेनू मेरी अंतरग सहेली,हम दोनो एक साथ पली-बढी और हमारा सौभाग्य देखिये ब्याहकर आई भी तो एक ही शहर मे .
अचानक सुबह सुबह मोबाईल घंटी  सुन नींद मे  हडबडाहट  मे  उठाते उधर से आवाज़ आयी
"नेहा!! जितनी जल्दी हो सके नेशनल अस्पताल पहूँचो मैं विराज को लेकर जा रही हूँ शायद---"
"वेनू!! धैर्य रखो बस मैं पहुँच रही हूँ."
"नीरज उठो!!! आज तुम" ख़ुशी "को स्कुल पहुँचा देना .मैं अस्पताल जा रही हूँ , विराज को शायद हार्ट अटैक आया है मैं वहाँ पहुँच कर फोन करती हूँ.
  वेनू गहन चिकित्सा कक्ष के बाहर ही मिल गई,उसे धैर्य बंधाया,सब ठिक होगा तभी--
"सब कुछ खत्म हो गया हमे उपचार का अवसर ही नहीं मिला."
अस्पताल की सारी औपचारिकताओ के साथ-साथ उनकी अंतिम यात्रा तक नीरज ने मेरा पूरा साथ निभाया.
मैं विचरो में खोयी वेनू के पास थी.जानती थी पेशेवर वित्तीय सलाहकार ,
अपने हिसाब से चलने वाले उसकी किसी सलाह या निर्णय पर हमेशा कटाक्ष करने वाले विराज ने जिस्मानी संबंधों के अलावा कभी उसे वह स्थान नहीं दिया जिसकी वह हक़दार थी.सौम्य स्वभाव की पढने मे रुचि रखने वाली वेनू ने कभी शिकायत नहीं की और अपने आप को लेखन-पाठन से जोड लिया.
"वेनू!!! कैसे दिन काटोगी अब ,जब इच्छा हो चली आना.
"चिंता ना करो नेहा!! जब हसरतो के दिन गुज़र गये ये वक्त भी कट जाएगा जीवन का सच्चा अर्थ तो अब समझ आया मुझे."

"अब मेरी क़िताबें, लेखन-पाठन और सबसे बडा मेरा वक्त मेरी मुट्ठी मे है."

नयना (आरती) कानिटकर

गुरुवार, 12 नवंबर 2015

"हौसला"


"हौसला"
किसना के संग ब्याह कर जब भानपुर आई तो मैने कोई ज्यादा सपने नही देखे थे। वैसे भी खेतीहर मज़दूर की बेटी दो जून रोटी और दो जोड़ी कपड़े से ज्यादा क्या सोचती। मैं भी किसना के साथ खेतो मे जी - तोड़ मेहनत करती, लेकिन इन्द्र देवता की नाराज़गी के चलते हम ज्यादा काश्त ना निकाल पाते | और साहुकार का कर्ज चढ़ गया सो अलग।
थक हार कर किसना ने माई - बाबू को मना लिया मुंबई जा कर मजदूरी के लिए। मैं भी आ गई थी उसके संग। सारा-सारा दिन ईट-सिमेंट ढोते-ढोते थके हुए दो कौर हलक में उतार बस फ़ुटपाथ पर ही सो जाते हर रात !
अधिक मेहनत से जब किसना की तबियत गडबडाने लगी तो हम वापस गाँव लौट आए। दवा-दारु मे बैल भी चुक गए।
गाँव आते ही साहुकार भी रोज चक्कर काटने लगा वसूली के लिये। पैसा ना देने पर मुझे उठाने की बात ...
अब तो सुबह रोटी खाओ तो शाम के निवाले की मुश्किल हम पर साया बन कर पीछा कर रही थी - भला कहाँ से कर्ज चूकते ?
इस वर्ष एक काश्त निकलने तक तो इंतजार .... पर साहुकार के कानों जू ना रेंगती !!
तभी एक दिन भोर होते ही अचानक हरिया चिल्लाते हुए आया "... भौजी .. भौजी ... किसना ने खेत में आम के पेड पर ...." .. मेरा किसना लड़ाई हार गया था .. अब मैं किसे बताऊँ कि ..?
तीन दिन का सोग (शोक) मनाने के बाद मैने हिम्मत बटोरी और माई से कहा - " .. माई बैल के लिए हमे किसी के आगे हाथ नही फैलाना है, चलो .. हम खुद खेत जोत लेगे, अब तो बुआई के दिन भी नज़दीक है "
मेरे कोख मे भी एक बीज ... आँगन में एक पौधा जन्म ले रहा था ... उस दिन मैने फ़ैसला किया मैं हार नही मानूँगी .. मै लडूंगी नियती से .. आख़िरी दम तक ।

नयना(आरती)कानिटकर

मंगलवार, 10 नवंबर 2015

प्यादी चाल



चलो सरिता जल्दी तैयार हो जाओ और हा सुनो!!! वो हरे-गुलाबी काम्बिनेशन की साड़ी है ना वो पहनना. आज  बास का जन्मदिन है.
" अरे सुधीर !! वो साडी तो  तुम्हें पसंद नही है ना ? याद है जब पिछली बार मैने पहनी तब तुम नाराज़ हुए फिर आज--।"
" हा हा तो क्या हुआ पर अखिलेश जी को तो तुम इस साड़ी में---और हा सुनो चलते-चलते एक सुन्दर सा तोहफ़ा भी ले चलेंगे। ऑफ़िस मे जल्द ही  पदोन्नती की सूची जारी होना है।
जन्मदिन की पार्टी पूरे शवाब पर थी जाम-से जाम टकराए जा रहे --
अरे!! आइए-आइए सुधीर और हमारी खु्बसुरत  सखी सी सरिता कहाँ  रह गई।"
"अरे !! तुम पिछे क्यो खड़ी हो !!!आओ मुबारकबाद दो हमे---अपने दोनो हाथ आगे बढा आलिंगन--
"बहुत शुभकामनाएँ सर!! वही से हाथ जोड़ते हुए सरिता ने कहाँ"---अखिलेश कसमसा कर रह गए.
"सुधीर ने सरिता के कान मे फुसफुसा कर कहा ! क्या होता जो अखिलेश जी का मान रख लेती समझ रही हो ना ,मैने बताया तो था कि पदोन्नति---
"अखिलेश जी एक तोहफ़ा हमारी तरफ से--" सरिता आगे बढते हुए बोली
"अरे!! इसकी क्या जरुरत थी"  --सरिता से हाथ मिलाते हुए उन्होने हाथ  कस कर दबा लिया."
सरिता हाथ छुडाते हुए  चिख पडी!!! अखिलेश जी!!! , सुधीर!!!
’सुधिर !!!!क्या तुम अपनी तरक्की के लिये प्यादे की तरह मेरा इस्तेमाल करना चाहते हो जो चुपचाप एक-एक घर आगे बढ़ता है."
शायद तुम नही जानते अगर मे प्यादी चाल चल दू तो राजा  को भी मार सकती हूँ.

..

अंतिम यात्रा

घर के बाहर भीड़ जमा है । पूरी तैयारी हो चुकी है।
"लड़का आ रहा है चेन्नई से . हवाई जहाज़ से आ रहा है बस पहुँचने ही वाला है।"
"एक दिन तो हम सभी को जाना है किन्तू---"
"किन्तू क्या"-- उर्मिला ने पूछा
"अरी!!  बहुत सीधी-सादी है भाभी जी और सुना है ये उनका पेट जाया भी नही है। किसी अनाथ आश्रम से उठा लाये थे। पढा-लिखा बडा किया और वो
चेन्नई जा बसा। "
’अरे हा!!! कहते है वर्मा जी ने भी तो खूब उठा-पटक  और लोगो को लूट अपना व्यवसाय चलाया।"
"तभी तो  इन्कम टैक्स की चोरी  के चलते रेड हुई . कोर्ट मे मामला चल रहा है उसी के चलते उन्हे हार्ट अटैक--"
 "हा ना बेटे को भी पता चल गया था कि वो अनाथ है- तभी घर छोड गया।"
"ओह!अब अब मिसेज वर्मा का क्या होगा बेचारी कोर्ट-कचहरी मे उलझ जाएगी। पता नही बेटा भी---??"
"अरे!! कुछ नही होगा जीवन की फ़ाइल बंद होते ही --सभी फ़ाईले बंद हो जानी है।"
"फिर भी मामला तो नाज़ुक है ना--"

तभी राम-नाम सत्य है के साथ अर्थी उठा ली गई।

नयना(आरती)कानिटकर


सोमवार, 2 नवंबर 2015

" बात बिगड गई"


"सुनील !!!यह बताइय़े हमारा जो नया टेंडर आज जमा होना है उसका क्या हुआ?"
" सर!!! पूरी तैयारी है बस एक दो मुद्दों पर आपसे चर्चा करनी है ।"
"बोलिये!! यू खिसे मत निपोरिये,जल्दी बताइये क्या कहना चाहते है।"
"सर!! वो कुछ नक़दी का इंतज़ाम हो जाता तो---- आप तो जानते ही है।"
" जब हमारी सारी कगजी कार्यवाही वैधानिक और साफ़ सुथरी है,यथासंभव किमत भी कम से कम तय कि है  फिर यह नक़दी?."
"आप तो जानते है सर !!!,इसके बिना हमारा टेंडर पास होना कितना मुश्किल है."
" बैग तैयार है, और हाँ !!! मगर काम हो ही जाना चाहिये, त्यौहार भी पास ही है ।
"जी सर!!!"
"केबीन से बाहर निकल वाह-वाह  करते हुए बैग से ५०० की दो गड्डिया निकाल अपनी जेब के हवाले कर-----"आज तो मेरी बात बन गई ।

 तभी अमित जी अपने केबिन से निकल के बर्ख़ास्तगी  का आदेश थमा देते है।

वजूद

शोध की विद्यार्थी स्नेहा की  अचानक एक दिन मुलाकात बहुत बडे व्यवसायी चंदानी परिवार के आए.आए.एम. पास आउट समीर से होती है और बात आगे बढते हुए  विवाह मे बदल जाती है
 माँ उसे बहुत समझाती है----
"बेटा!!! तुम्हारी शिक्षा और उसके व्यवसाय का आपस मे कोई मेल नही हो पाएगा तुम्हारी सारी शिक्षा व्यर्थ चली जाएगी ,लेकिन प्रेम मे कायल स्नेहा तब कुछ सुनने को राजी नही होती और अंतत: विवाह कर समीर के घर आ जाती है"

   हनिमून से लौटने पर जब कॉलेज जाने की तैयारी करते देख ,अचानक परिवार मे यह घोषणा कर दी जाती है कि उसे अब पी.एच.डी.करने की कोई आवश्यकता नही परिवार की बहुए बाहर किसी काम के लिये नही जा सकतीउसे यहाँ किसी चीज की कोई कमी नही होगी
 
उसका सारा वजूद हिल जाता है

"समीर !!! मैं अपना शोध पूरा करना चाहती हूँ । घर की महिलाओ के साथ सिर्फ़ गहने,कपड़ों और रसोई  की बातों मे पूरा दिन काटना मेरे लिए असंभव है।शोध करते हुए भी मैं अपने कर्तव्य में कोई कमी नहीं आने दूँगी
   ये तो तुम्हें पहले सोचना चाहिए था स्नेहा!!!अब घरवालों की इच्छा के विरुद्ध मैं नही जा सकता। अब तुम्हें इनके साथ सामंजस्य बिठाना ही होगा
मगर समीर!!!! तुम इतने पढ़-लिखे  हो फिर मेरी बातों-----"

अंतत: निराश स्नेहा अपने माता- पिता से बात कर और अपने  पी.एच.डी. के गाइड की मदद से   होस्टल मे रहने की व्यवस्था कर लेती है

"अरे स्नेहा!!! अचानक कहाँ जाने की तैयारी कर रही हो वो भी मुझे और  किसी  को बताए बीना."
" हा समीर !!! मैने  जल्दी कर दी तुम्हें समझने में लेकिन अब गलती  सुधार रही हूँ
काश!!   मैने माँ की बात सुन ली होती

" उनके जीवन अनुभव और वजूद का सच्चा अर्थ आज मैने जाना ।"