सोमवार, 23 नवंबर 2015

इबादत-३

  पुलिस के कडे सुरक्षा घेरे  के बीच जब  उन्हे न्यायालय  परिसर मे लाया गया तो बिरादरी और आम लोगो की  नज़रों से बचने  के लिये वह अपना मुँह ढाक पिता के पिछे-पिछे चली आई।

        उसे अपने किये का  जरा भी रंज नही था
 सेना और आतंकी मुठभेड़ मे एक आतंकी उनके घर मे घुस आया था।तब डर के मारे उन्होने उसे पनाह दी थी मगर----
   सुबह के धुंदलके   मे  उसे अचानक अपने शरीर पर किसी का स्पर्श महसूस होता है.।"
वह हिम्मत से काम ले अपने सिरहाने रखी दराती (हँसिया) उठा अचानक उसके दोनो हाथों पर ज़बरदस्त वार कर देती है।
  वह चिखते हुए भागने की कोशिश मे उसके पिता के हाथ पड जाता है और अंत में------
अब्बा  को  भी अपने किये का ना कोई दुख ,ना कोई   शिकन ---
.ईद के मौके पर आज उनकी बेटी ने बिरादरी पर लगे कलंक की बलि देकर  अल्लाह की सच्ची इबादत की है।