गुरुवार, 8 अक्तूबर 2015

मातृत्व-संतुष्टि


"ले उठ गेंदा काहे खाली-पिली चिपटाए बैठी है ,छाती मे दूध होवेगो तो रिसेगो  नी .चल दो-दो घूँट चाय बना ,हलक से उतरेगी तो थोड़ा चैन आवेगो"
मज़दूरी से लौटते ही गेंदा सत्तु को अपनी छाती से चिपटाए हरिया के पास ही बैठी है
गेंदा सत्तु को उतार चाय बनाने उठ जाती हैसत्तु भी रोते-रोते घुटने के बल उसके पिछे चल पडता है,तभी सत्तु के धक्के से देगची उलट उसमे रखा दूध उलट जाता है
"हरिया चिल्ला पडता है अरे!! चुप कर नासमिटा घर आने पर भी चैन ना लेने देवे"
"काहे चिखे हरिया वो भी तो भूखों है"
अरे!! सतुआ कहते कहते अचानक थम जाती है--सत्तु कुतुहल से निचे झुक मेमने को दूध पिते देख रहा है
"नासमिटी कितनी बार कहा है मेमना बाँध के रख--"
"अरे देख तो हरिया !! बकरी जिनावर है तो के हुओ,उको चेहरो देख अपना बच्चा ने दूध पिलावती वा कितनी संतुष्ट लागे,वा भी तो एक माँ है"
दोनो काली चाय ही सुडक-सुडक कर पीने लगते है
नयना(आरती)कानिटकर
०८/१०/२०१५