सोमवार, 28 सितंबर 2020

उडान

 उड़ो आकाश भर 

कुलांचे भरती पतंग की तरह 

थामे रहो  उड़ान को अनंत तक 

फिर भी कभी जब थक जाओ 

भागते भागते 

थामते अपनी जिंदगी को 

असंतुलित हो जाए ,तुम्हारी पतंग 

खाने लगे हवा में गोते 

अंगुलियों पर कसी उसकी मंझी डोर

कांच के महीन किरचों से 

जब भर दे जख़्म,रिसते खून का 

तब उतार लेना उसे 

हौले हौले नीचे को 

मैंने आज भी बचा रखा है 

आम के पेड़ से झरता 

सुबह की कोमल घूप का टुकड़ा


और उस घने नीम की छाँव

जो अभी भी हैं

 मेरे घर आँगन में 

© " नयना "

# मेरे घर आँगन में