सोमवार, 19 अक्तूबर 2015


तुमने कहा !!माँ नई माला चाहिए
मैने दे दी मुट्ठी भर मोतियो से गुथी
तुमने कहा !! माँ ओढनी दे दो
मैने दे दी रंग-बिरंगी.
तुमने कहा!! मुझे छाँव चाहिये
मैने अपने आँचल मे ढक लिया
तुमने कहा!! मैं उड़ना चाहती हूँ
मैने सारा आकाश फैला दिया
तुम बडी खुश थी,तुम चाहती रही
मैं हमेशा देती रही.
अब तुम उन्मुक्त को उन्माद ना होने देना
तुम स्वतंत्र हो,पर स्वच्छंद ना होना
तुम श्रेष्ठ हो , सुंदर हो पर क्षणभंगुरता जानती हो
अब तुम बडी हो गयी हो

नयना (आरती) कानिटकर
२०/०१०/२०१४


सच्चा व्रत

साप्ताहिक शीर्षक आधारित लघु कथा
---सच्चा व्रत---

कमला आज काम आयी भी तो बडी अनमनी सी थी। साथ मे बेटी को भी लाई थ।
हमेशा चकर-चकर करने वाली वो और उसकी बेटी आज चुपचाप काम निपटा रही थी.
"क्या हुआ कमला।"
"कुछ ना।"
"अरे!!! तो आज तू इतनी चुप कैसे।."
अचानक सिसकियाँ उभरी वातावरण में।
"हुआ क्या ये तो बता"
"फूली ने मुझसे स्कूल फ़िस के पैसे माँगे,मैने उसे इंकार किया कि अगले हफ़्ते दे दूँगी।"
"अभी नवरात्रि के व्रत चल रहे है,तो मैने कुछ पैसे जोड रखे थे ,कन्याभोज के लिये।"
  "लेकिन वो मुआ मुझसे पैसे छिन शराब पी आया और फिर वही तमाशा.......।"
"अब मैने सोच लिया बाई जी बहुत हो गया ये व्रत और कन्याभोज।"
"अपनी फूली को पढा  मैं उसे अपने पैरो पर खड़ा करूँगीं।"
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