सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

पश्चाताप की ज्वाला

 माँ ने मेरा विवाह अपनी सहेली सुधा की बेटी "शारदा" से करा दिया था। वो  उसे बहुत चाहती थी।
साधारण नैन-नक्श ,यथोचित शिक्षण प्राप्त  शारदा अत्यंत सरल स्वभाव की थी.गाँव के ही आंगनबाडी में सहायिका के पद पर कार्य करती थी।
मैं हमेशा से सुंदर पत्नी की चाहर रखता था, लेकिन हर बार माँ मेरी बात गलत ठहरा मुझे समझाइश देती रहती थी। "बेटा व्यक्ति को उसके रुप से नही गुण से पहचानना चाहिए।"  लेकिन मैं कभी उनकी बात को महत्व ना देता।
मैं हरदम शारदा के रुप-गुण पर कटाक्ष करता रहता था। वो आखिर कब तक मेरे बाणो को सहती। उसने चुप्पी ओढ ली थी।  केवल आवश्यक संवाद था हमारे बीच,किंतु माँ से पुरी तरह जुड़ीं रही.
लेकिन इस बीच मेरी हवस के चलते प्रकृति और नियती अपनी लीला रचा चुकी थी। शारदा माँ बनने वाली थी।
       एक दिन मैने अचानक घोषणा कर दी  की माँ "मैं अपनी सहपाठी रुप सुंदरी प्रियंका के साथ विवाह रचाना चाहता हूँ।
"शारदा!! यह रहा तलाकनामा उसकी ओर  फेक कहा!! इस पर हस्ताक्षर कर दो."
      माँ ने बहुत आपत्ति उठाई कि शारदा माँ बनने ----- हार कर अंत मे घर छोड़ने का आदेश सुना दिया.
शारदा ने बीना कोई सवाल उठाए चुपचाप हस्ताक्षर कर दिए.सहमति से तलाक की कार्यवाही भी जल्द हो गई.
मैं स्वछंद हो गया,
जल्द प्रियंका से विवाह रचा उसके साथ दूसरे घर रहने लगा।
मन से टूटी शारदा शरीर से भी टूट गई। मुन्ने को जन्म दे वो हमेशा के लिये माँ का साथ छोड़ गई।
माँ भी बूढ़ी हो चुकी थी,मुन्ने को सम्हालना बस का ना था। हार कर  उन्होने हमे पुन:घर मे जगह दे दी।
   घर मे जगह मिलते ही प्रियंका ने एक-एक कर सारी डोर अपने हाथ थाम ली। घर,संपत्ति,खेत के कागज़ों पर हस्ताक्षर करवा अपने नाम कर लिया। उसके सिर्फ़ उसके रुप मे उलझा  कुछ ना समझ पाया।
    अंत मे एक दिन मुझे माँ और मुन्ने सहित घर के बाहर कर दिया।
 मैं माँ के चरणों मे गिर क्षमा मांगने लगा ।
"माँ!!!! काश मैने रुप की जगह शारदा के अंतर मन को समझा होता।"
आज मैं अपने किये कर्मो पर पश्चाताप की" ज्वाला " मे जल रहा हूँ.