शनिवार, 16 जनवरी 2016

" हम सात"

"कलावती" बेटे के इंतजार में कम अंतराल से ७ बेटियों को जन्म देकर सासू माँ के ताने सुनते हुए मन के साथ-साथ तन से भी हार गई थी . किशनलाल जी स्कूल मे प्रधानाचार्य थे ,थोड़ी बहुत ज़मीन भी थी पुश्तैनी उसका काम भी देखते सदा व्यस्त रहते.अपनी  माँ के आगे ज्यादा ना बोलते लेकिन  सब बच्चियों को कभी कोई दिल  दुखाने वाली बात ना कहते.
बेटियों  के नाम भी बडे सोच समझकर रखे थे.स्नेहा, ममता, आस्था, सत्या, नीति, आकांक्षा और  मुक्ता.यथा नाम तथा स्वभाव की बहने जान छिड़कती थी एक दूसरे पर. गुणों के आगे धीरे-धीरे दादी का ताने मारना बंद हो गया
 पास के गाँव से स्नेहा  के लिये रिश्ता आया था.घर-भर ने  तैयारी की थी.आखिर बात तय होकर लेन-देन पर आकर चल रही थी .
"बांकेजी" के पिता ज़मीन मे बहनों के हिस्से की बात पर आकर अड गये .  सभी बहने विरोध जताने के लिये एक साथ बाहर निकली  ही थी  कि...
 बाँके जी  पसिना-पसिना...शायद  गाँव के  मेले  में खेले  गए नाटक "दुर्गा" का दृश्य याद आ गया.

नयना(आरती) कानिटकर