सोमवार, 28 मई 2012

अब बडी हो गई हो बेटी
सपने लेने लगे है विस्तार
माँ तुम्हे अब दे रही है
शुभकामनाओ से भरा
प्यार का आधारकी
तुमचढो हिमालय सा पहाड
पाओ अनन्त आकश सा विस्तार
समुद्र मे डुबो गहरे से
लेने पानी कि थाह
सीर्फ सतरंगी झूलो मे ना झूलो बेटी
रखो चक्षु खुले सदैव
लिखो तर्जनी से इतिहास
अनन्त विश्वास के साथ
अब तुम्हे तोडना है यह
मिथक
कि
औरत की सफलता जिस्म से है
उसकी बुद्धी और परिश्रम से नही.