गुरुवार, 17 नवंबर 2022

 कितना मौन 

कितना संवाद ,

कितना निर्मित

कितना क्षरित, 

कितना अधिक 

कितना अल्प,

कितना कलुष 

कितना उत्सव,

कितना दान

कितना प्रतिदान,

कितना आकर्षित

कितना परिवर्तित,

कितना जाना 

कितना छोड़ा,

सब  संचित इस तहखाने में। 


कितनी  स्थिरता 

कितनी चंचलता, 

कितनी उद्विग्नता 

कितनी उदारता, 

कितनी तपस्या

कितनी व्यग्रता, 

कितनी देयता 

कितनी उपादेयता, 

कितनी साधना 

कितनी प्रेरणा,

कितनी  तिक्त

कितनी उदात्त,


क्या कुछ शेष अब 

इस जीवन में  

©आरती कानिटकर "नयना"



शनिवार, 15 जनवरी 2022

#स्वस्थ रहो मस्त रहो

 हमारे जीवन में सदा ही कुछ ना कुछ अच्छा -बुरा घटित होता रहता है। सबकुछ अच्छे के बीच अचानक कुछ ऐसा घट जाय जो आपकी गति को थाम ले तो लगता है कुछ समय के लिए घड़ी ने भी ठहर जाना चाहिए ताकि कैलेंडर की तारीखें भी थम जाए और हम अपने जीवन की लय को पुनः गतिमान होने तक थामते हुए धीरे -धीरे आगे बढ़े।

दिसम्बर माह समाप्ति की ओर था ,प्रकृति भी अपना रंग जोरो से दिखा रही थी । हवा ,बारिश , रोंगटे कड़े करने वाली ठण्ड जोर पर थी तो दूसरी तरफ नए साल की आमद भी मन में खुशियों के रंग भरने तैयार खड़ी थी ।

 इतनी सारी एहतियातन चाक-चौबंद के बाद तो किसी गड़बड़ी की आशंका थी ही नहीं । नियमित घूमना ,योग ध्यान , प्राणायाम , खानपान की व्यवस्थित देखभाल के बाद तो ओर भी नहीं ,पर गड़बड़ हुई। शरीर की इतनी पहरेदारी के बाद भी कोई दरवाजे की इस जरासी झिरी से अंदर प्रवेश कर गया जो अबूझ था । सुरक्षा के सारे प्रबंध हाथ में होते हुए उसने गति को रोक ही  लिया कुछ समय के लिए ।

लम्बे समय की सतर्कता पूर्ण जीवनशैली  के बावजूद जरासी भूल ने सारे किए धरे पर पानी फेर दिया और गाजे-बाजे के साथ गृह प्रवेश कर ही लिया . अतिथि देवो भव अब आ ही गए हो तो अपना सामायिक आतिथ्य लो और चुपचाप लौट जाओ ।😀

इस हर पल रंग और शरीर बदलते घुमन्तु रोगाणु ने हमसे क्या लिया ये तो वक्त बताएगा लेकिन पुरे दो साल बाद मिले माँ-बाबा , भाई-भाभी के संग मस्ती भरे दिन गुजरने की अभिलाषा लिए अपने घर (भारत) में आयी बिटिया के अनमोल  पल वो जरूर छीनकर ले गया ।

अपने घर आकर ठण्ड के विशेष व्यंजन --गाजर हलवा, सरसों का साग , मक्का की रोटी , तिल-गुड़ लड्डू /बर्फी , मराठियों की ख़ास गुलपोली , दिवाली  में ना खा सकी ऐसे  खास व्यंजन चकली, अनारसा के लिए की गयी सारी तैयारियां बांट जोहा रही की ये मुआ कब बाहर निकले और माँ की रसोई खुशबुओं से सारोबार हो जाए ।

खैर बेमौसम जो मेघ आते है और बीत जाते है , इसने भी  कल चले जाना है। शरीर को वापस अपने कर्म की ओर लौटना ही है । रात ही ना हो तो दिन कैसा ? नकारात्मक या सकारात्मक होने की बजाय यदि हम आने वाली हर परिस्थिति के लिए स्वीकारात्मक हो जाए तो रुकावटों का ये प्रतिरोध अपने आप छट जाता है । है ना सौ टेक की बात 😍साथियों

#स्वस्थ रहो मस्त रहो 

नयना (आरती )कानिटकर 


१५/०१/२०२२