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गुरुवार, 7 मई 2020
मेरा परिचय-:-
नयना(आरती) कानिटकर
शिक्षा:- एम.एस.सी, एल.एल.बी
संप्रति:- पति के चार्टड अकाउँटंट फ़र्म मे पूर्ण कालावधी सहयोग
लघुकथा ,कविता , लेख आदि विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित। पड़ाव और पड़ताल के "नयी सदी की धमक में लघुकथा "लालबत्ती " प्रकाशित .अनेक लघुकथा सग्रहो में साझा प्रकाशन .
nayana.kanitkar@gmail.com
रविवार, 3 मई 2020
#लेखणी
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फक्त एक दिवस तुझी लेखणी होता आलं असंत तर ?
मिरवलं असंत तुझ्या शब्दांचं मुकूट माझ्या ललाटावर।
मिरवलं असंत तुझ्या शब्दांचं मुकूट माझ्या ललाटावर।
जगले असते तुझ्या शब्दांची सखी होऊन
आणि मग माझा क्षण अन् क्षण पुलकित झाला असता।
आणि मग माझा क्षण अन् क्षण पुलकित झाला असता।
मी ही एकरूप झाले असते तुझ्या को-या
मनाशी
कळले असते मलाही तुझ्या शब्दांच्या मनातील हळवे कोपरे
मनाशी
कळले असते मलाही तुझ्या शब्दांच्या मनातील हळवे कोपरे
कधीतरी या हळव्या कोप-यामुळे लेखणीतली शाई संपली तर..
तर, त्यात प्रेमाने शाई भर तुझ्या मनातल्या माझ्यासाठी उचंबळणा-या हजारो रंगाची.
मग त्या रंगातून एक अवखळ गीत उमलेल.
मग त्या रंगातून एक अवखळ गीत उमलेल.
हे गीत धुंद जीवांना आरोहातून गगणा भेटून
अवरोहात उंच झोका देईल.
अवरोहात उंच झोका देईल.
हो पण कधी लेखणी मात्र हरवू नकोस, नाहीतर शब्द कायमचे गोठतील ....आपल्या श्वासापरी
©वर्षा
#कलम
गर मात्र एक दिन हो पाती तुम्हारी कलम
धर लेती तुम्हारे शब्दों का मुकुट मस्तक पर
जी उठती मैं तुम्हारे शब्दों की सखी बन
और तब मेरा क्षण परम आनंद से भर जाता
मैं भी एक रुप हो जाती तुम्हारे कोरे(सपाट)
मन से
मैं भी जान पाती तुम्हारे शब्दों के मन की गहराई
कभी खत्म हो जाये तुम्हारे कलम की स्याही
तब, भरना उसमें प्रेम की स्याही मेरे मन में उठने वाले हजारो रंगो की
फिर उस रंग से एक गीत फुलेगा
ये गीत जीवन को आरोह में आकाश से मिल
अवरोह मे ऊँचे उठेंगे
पर हा! अपनी कलम कभी मत खोना, वरना शब्द हमेशा के लिए स्थिर हो जाएँगे----
हमारे सांसो की तरह
मूल कविता:--वर्षा थोटे
अनुवाद/भावानुवाद:- नयना(आरती)कानिटकर
#कलम
गर मात्र एक दिन हो पाती तुम्हारी कलम
धर लेती तुम्हारे शब्दों का मुकुट मस्तक पर
जी उठती मैं तुम्हारे शब्दों की सखी बन
और तब मेरा क्षण परम आनंद से भर जाता
मैं भी एक रुप हो जाती तुम्हारे कोरे(सपाट)
मन से
मैं भी जान पाती तुम्हारे शब्दों के मन की गहराई
कभी खत्म हो जाये तुम्हारे कलम की स्याही
तब, भरना उसमें प्रेम की स्याही मेरे मन में उठने वाले हजारो रंगो की
फिर उस रंग से एक गीत फुलेगा
ये गीत जीवन को आरोह में आकाश से मिल
अवरोह मे ऊँचे उठेंगे
पर हा! अपनी कलम कभी मत खोना, वरना शब्द हमेशा के लिए स्थिर हो जाएँगे----
हमारे सांसो की तरह
मूल कविता:--वर्षा थोटे
अनुवाद/भावानुवाद:- नयना(आरती)कानिटकर
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