गुरुवार, 23 नवंबर 2017

"रि्श्ते की जगमगाहट" ओबीओ

 "हलो! हलो!  पापा ? सुप्रभात, ममा को फोन दीजिए जल्दी से "---- ट्रीन-ट्रीन-ट्रीन की आवाज़ सुनते ही सुदेश मोबाईल उठाया स्क्रीन पर बिटिया को देख चहक उठे थे.
" हा बेटा! कैसी हो मुझसे बात नहीं करोगी. हर बार ममा ही क्यो लगती है तुम्हें मुझसे भी बात करो. वैसे वो तुम्हें फोन करने ही वाली थी."
" अरे! नही पप्पा ऐसी कोई बात नहीं मगर मेरी बात  पहले मम्मा ही समझ..."
" वो बुनाई करती बैठी है आँगन में. "अरे! सरला, सुनो भी तुम्हारी बेटी का फोन है कहती  है माँ से ही बात करना है."  सुदेश आवाज लगाते हुए बोले.
" मुह्हा-- कैसी हो बेटा? हो गया दिवाली पर घर आने का आरक्षण." स्वेटर बुनते हुए सलाईयां हाथ मे पकडे सरला ने उत्साहित होते हुए पूछा.
" हा ममा! इस बार मैं "रोशनी" को लेकर घर आ रही हूँ. आप जल्द ही नानी बनने वाली है उसके लिए एक स्वेटर  बुनिए." उत्साहित सी आकांक्षा ने कहा
" क्या..."
"हा! प्यारी माँ  फोन रखती हूँ मुझे कोर्ट से आदेश की प्रति लेकर अनाथालय भी जाना है." आकांशा ने कहा
" सुनते हो! आप नाना बनने वाले है."
सोफ़े पर धम्म से बैठ गये सुदेश. सरला भी  फोन पर बातें  करते-करते नीचे गिर गये ऊन के बाल को समेटते उनके पास आ बैठी. दोनों ने एक दूसरे का हाथ थाम लिया. अचानक दोनो साथ ही बोल उठे कुछ गलत नही कर  रही आकांक्षा  बिटिया
"पिछली कई बार आये  रिश्तों में हमारी पढी-लिखी होनहार लड़की का लडके वालो  ने  किस तरह मूल्यांकन करना चाहा था और ऐसा एक बार हुआ होता तब भी  हम सह लेते . सुदेश सरला का  हाथ पकडे -पकडे उठते  हुए ही बोले

" वही तो बार-बार एस दौर से गुजरना का स्त्री अस्मिता का अवमूल्यन ही तो हैं." सरला भी  हाथ छुड़ाते हुए बुनाई के फंदो को  सलाई से निकाल कर उधेडने लगी.
"अब ये क्यो खोलने लगी?"   सुदेश उठकर जाते हुए बोले
"और तुम कहा चल दिए" सरला ने पूछा
"ढेर सारे दीये  लेकर आता हूँ , सुंदर सुदंर रंगों से रंग कर मोतियों से सजाकर  जगमगाऊँगा  उन्हें"
" और अब  मैं नये फंदे बुनूंगी , नये डिज़ाइन  के साथ " दोनो की खिलखिलाहट से घर रौशन हो उठा

मौलिक व अप्रकाशित


बुधवार, 8 नवंबर 2017

"नया त्यौहार"

तीन साल का चीनू बाहर आँगन मे खेल रहा था .रसोई से आती शुद्ध घी कि खुशबू से मचल कर दौड़ते हुए अंदर आया.
---दादीSSS दादीSSS आप क्या बना रही है --जलेबी!!!!! वाह!  दादी के गले मे खुशी से झुमते हुए लटक गया
"अरे! अरे! मेरा गला छोडो वरना तुम्हें जलेबी नहीं मिलेगी"--दादी ने उसके हाथों की कसावट को ढिला करते हुए कहा
"आज कौन सा त्यौहार है दादी?? क्या आज दिवाली है?"
"हा बेटा आज तो दिवाली से भी बडा त्यौहार है--स्वतंत्रता  दिवस का आज ही के दिन तो हमारा देश आज़ाद  हुआ था. आज हम  दिवाली कि तरह ढेरों दीपक जलाएगे.मिठाईयाँ खाएगे ," दादी उत्साहित होते हुए बोली
"हुर्रे! तो क्या आज हम फ़टाखे भी चलाएँगे." चीनू खुशी से झूम उठा

" नही बेटे! आज बहुत बडे आनंदोत्सव का दिन है .आज हम शांति के प्रतीक शुभ वस्त्र पहन कर तिरंगा फहराकर उसकी पूजा करेंगे और भगवान के श्लोक पठन के स्थान पर राष्ट्रीय गीत गायेगे.

मात्र ३ वर्ष का चीनू दादी कि बात समझ ही नही पाया .वो तो खुश था कि आज घर मे त्यौहार है. माँ-पिताजी भी घर पर है. आज कुछ नये ढंग से त्यौहार मनाना है.
दादी आज एक प्रण ले चुकी थी कि आज से चीनू को रात को सोते वक्त राजा-रानी कि कहानियों के साथ-साथ देशभक्तो की कहाँनिया भी सुनाएगी .जिससे वह  इस देश के लिये प्राण न्यौछावर करने वालो के प्रति श्रद्धावान बन सके.
नयना(आरती)कानिटकर

शनिवार, 28 अक्तूबर 2017

"कलम की दशा"


"कलम की दशा"

प्रारंभिक उद्घाटन एक नियत मंच पर था तथा चारों और के बडे मैदान में हर विधा के लिए अलग-अलग स्थान निर्धारित था. सामने की कुर्सियाँ अभी खाली थी.
देश की चारों दिशाओं  से साहित्य सम्मेलन के लिए सभी छोटी-बडी रचनाकार कलम समाज के प्रति अपनी वफ़ादारी दिखाने के लिए एकत्रित हो चुकी थी.  कुछ घिस गई थी कुछ कलम घिसने के कगार पर थी तो कुछ अभी भी अपनी चमक पर इठला रही थी.

जहाँ-तहाँ झुंड में इकट्ठा हर बडी कलम छोटी को खाने पर आमदा लग रही थी.

तभी उद्घाटन की घोषणा हुई .सभी कलम अपने-अपने आवरण से निकल कर कुर्सी पर विराजमान हो गई.

मंचासिन सभी ने अलग-अलग विधा पर उनकी स्तुती में लार टपकाते उद्बोधन दिए.

इन दिनों की  तथाकथित सबसे चमकदार विधा ने आमद करते ही समर्पण व आस्था का मसाला लगाकर  समय का तकाजा देते हुए कहा कि "वर्तमान का दौर व्यस्तता का है, हमे हर बडी बात को कम शब्दों मे तौलते हुए सामाजिक विसंगति पर काम करना होगा बडी सी बात को कम शब्दों में लिखना  ही साहित्य है, तभी हम साहित्य के सच्चे सिपाही  साबित होंगे.  वही सच्चा साहित्य प्रेमी भी.

सभी  नई कलमें  पेशोपेश में थी कि आखिर क्या करे.
तभी मैदान के एक हिस्से से गर्मागर्म  बोटी भोजन की  खुशबू आते ही  समाज और राष्ट्र की वफ़ादारी  के ढोंग के  साथ सभी दूम हिलाते उस ओर दौड पडे.
मौलिक व अप्रकाशित

नयना(आरती कानिटकर


शनिवार, 14 अक्तूबर 2017

हस्तरेखा

हस्तरेखा-----
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"इतना मान-सम्मान पाने वाली, फिर भी इनकी हथेली खुरदरी और मैली सी क्यों है?"-- हृदय रेखा ने धीरे-धीरे बुदबुदाते हुए दूसरी से पूछा तो हथेली के कान खड़े हो गए। "बडे साहसी, इनका जीवन उत्साह से भरपूर है,फिर भी देखो ना..." मस्तिष्क रेखा ने फुसफुसा कर ज़बाब दिया। " देखो ना! मैं भी कितनी ऊर्जा लिए यहाँ हूँ, किंतु हथेली की इस कठोरता और गदंगी से.....!" जीवन रेखा भी कसमसाई। "अरे! क्यों नाहक क्लेष करती हो तुम तीनों? भाग्य रेखा तो तुम अपने संग लेकर ही नहीं आई, तब मैं क्या करती" हथेली से अब चुप ना रहा गया, वह ऊँचे स्वर में बोल पड़ी। तीनों रेखाएँ अकबका कर एक दूसरे को देखने लगी। "हुँह!... इतनी ढेर सारी कटी-पिटी रेखाएँ भी साध ली तुमने अपनी हथेली पर तो हम भी क्या करते".----तीनों फिर से अपनी कमान संभाली। "तभी तो मैनें तुम सभी को मुट्ठी में कस, छेंनी-हथौडी उठा, कर्म रूपी पत्थर को तोडा , अब तक तोड़ रही हूँ। " हथेली का आत्मविश्वास छलक उठा। कठोर, मैली, खुरदरी-सी सशक्त हथेली पर उभरती हुई मजबूत भाग्य रेखा को देख, कसी हुई हथेली में वे अपना-अपना वजूद ढूँढने लगी। मौलिक व अप्रकाशित

गुरुवार, 21 सितंबर 2017

बेटा, मैं और पिता

बेटे की मांग पर
लेकर दी थी एक नयी छतरी उसे
रंग-बिरंगी कार्टून्स से सजी
तब मुझे दिखाई दिए थे
इंद्रधनुषी रंग
उसकी आँखो में
फिर...
अपना छाता खोल
उसके बारीक़-बारीक़ छिद्रों से
देख लिया
काले घुमडते बादलों को
घर आकर, कैलेंडर को देख
मन ही मन गिन लिए थे
बरखा के दिन

बाजार से लौटते वक्त
एकबार फिर जिद से
ले ही लिया उसने, वो
बंदर वाला खिलौना
नये खिलौने के खेलते, उछलकूद  करते
आनंद से नज़रे मिला  रहा था माँ से
तो कभी मुझसे
किंतु, मैं देख रहा था
अपने आप को उस खिलौने में

मुझे भी याद आ गये
मेरे बाबा
मेरी भी ऐसी ही  मांगो पर
क्या आता होगा उनके मन मे?
शायद आती होंगी मेरे जिद की
कुछ ऐसी ही सिलवटे
उनके मुरझाए चेहरे पर

मूळ कविता:-अरूण नाना गवळी, कल्याण
अनुवाद प्रयास:- नयना(आरती)कानिटकर, भोपाळ

बुधवार, 16 अगस्त 2017

शब्द --महा उत्सव ओबीओ१२/०८/२०१७

"शब्द"-------

आज अचानक
मिला था अपना एक पिटारा
जो सहेजा था वर्षो से
अलमारी के एक कोने में
जिसे  दिल और दिमाग ने
दफ़्ना दिया था  बहुत पहले
खोलते की हौले से
कलम  ने भी  भी झाका
एक हूक सी उठी
दिल के किसी कोने में
एक बदबूदार झोंका
प्रवेश कर गया नथुनो में
 सड गये थे वे सारें शब्द
जो लिखा करते थे प्यार की भाषा
लेकिन तभी
दिल के  दूसरे कोने में
एक उम्मीद जागी
कि फिर
शब्द प्रस्फ़ुटित होगें
हवा के स्पंदन से
बह उठेंगे  मन से
टपक पडेंगे  नयनों से
बनाने को एक दस्तावेज

मौलिक एवं अप्रकाशित

रविवार, 13 अगस्त 2017

ओ.बी.ओ-महाउत्सव

एक गीत प्रयास----

गूँज उठी  पावस  की धुन      
सर-सर-सर, सर-सर-सर

आसंमा से आंगन में उतरी
छिटक-छिटक बरखा बौछार
चहूँ फैला माटी की खूशबू
संग थिरक रही है डार-डार
गूँज उठी  पावस  की धुन    
सर-सर-सर, सर-सर-सर  

उमगते अंकुर धरा खोलकर
हवा में उठी पत्तो की करतल
बादल रच रहे गीत मल्हार
हर्षित मन से  झुमता ताल
 गूँज उठी  पावस  की धुन    
सर-सर-सर, सर-सर-सर    

गरजते बादल, बरखा की भोर
बूँदों  की  रिमझिम  रिमझिम
पपिहे की पीहू, कोयल का शोर
आस मिलन जुगनू सी टिमटिम
गूँज उठी  पावस  की धुन    
सर-सर-सर, सर-सर-सर

मौलिक व अप्रकाशित
     
   

बुधवार, 9 अगस्त 2017

बंधन ---विषय आधारित- नयलेखन नये दस्तखत

"पलट वार"-----

श्रुती जब से रक्षा बंधन के लिए घर पे आई थी देख रही थी भाई कुछ गुमसुम सा है. हरदम तंग करने वाला, चोटी पकड़ कर खींचने वाला, मोटी-मोटी कहकर चिढाने वाला भाई कही खो सा गया हैं.
" माँ! ये श्रेयु को क्या हो  गया  है. जब से आयी हूँ बस धौक (चरण स्पर्श) देकर अपने कमरे मे घुस गया हैं."--प्रवास के बाद तरोताजा होकर रसोई में प्रवेश करते हुए उसने पूछा
" बेटा पता नहीं क्या हुआ है. शायद नौकरी को लेकर परेशान हो ,काम पसंद ना हो.इससे..."
" तो छोड दे .दूसरी देख ले. अच्छा पढा लिखा है, काबिल है."
" तेरे बाबा भी बहुत बार कह चुके. अब तो चिकित्सक की सलाह पर भी अमल कर रहे." माँ ने उदास लहज़े में कहा
जैसे ही वह भाई के कमरे में गई देखा वो बिस्तर पर निढाल सा पडा था. आँखें बंद थी. दवाई का पैकेट हाथ में ही था. मोबाईल के  ब्लिंक होते ही उसकी नजर उस पर पडी. उठाकर देखा तो व्हाट्स एप पर ..."अरे! ये तो मेरी सहेली रीना हैं". उसी गली मे चार घर छोड़कर ही तो रहती है वह. एक ही झटके में सारे मेसेजेस पढ डाले. ओह तो ये बात है भाई के बीमारी की....जिसे उसने अपनी छोटी बहन  के समान प्यार दिया वो आज इस पवित्र रिश्ते को ठुकरा कर  ब्लैकमेल करने पर तुली है. उसकी नज़रों मे वो सारा वाक़या घूम गया जब उसने  रीना  से  उसके भाई शरद में अपने पसंदगी का  इज़हार किया था तब .... और फिर जबरन  उसने शरद के हाथ में राखी बंधवा दी थी.
" माँ में अभी आई कहकर तेजी से रीना के घर से जबरदस्ती  खिंचते कर लाते हुए श्रेयस के कमरे मे पहुँच गई.
"  श्रुती !छोड  ये क्या कर रही है कितना कस के पकडी  है मेरी कलाई, क्या चाहती है..." उसने  हाथ छुड़ाने का भरसक प्रयत्न करते हुए कहा
शरद तो मुझे चाहता था प्यार का रिश्ता था हमारा मगर श्रेयस उसने तो सदा तुम्हें छोटी बहन सा प्यार दिया और  तुमने भी अपने मतलब के वक्त  भाई- भाई कहकर अपने काम निकाल लिए.
" ये लो! बांधों भाई की कलाई पर  अब से, तुम से उसकी  रक्षा की  मेरी बारी "
नयना(आरती)कानिटकर
०९/०८/२०१७


शुक्रवार, 30 जून 2017

प्लेटोनिक लव

"प्लेटोनिक लव  "

"अरे! कहाँ खोई हो जी" गैलरी में खड़ी नीना के  कंधे पर हाथ रखते हुए उसने  कहा

"कुछ नहीं ! वो देखो सामने के मकान में इतनी रात हो जाने पर भी अंधेरा छाया है ना   घबराहट हो रही कि कुछ अनहोनी..."

"उफ़ !  ये व्यग्रता उसके लिए.  तुम तो मेरी समझ से परे हो!" उसने  झल्लाते हुए कहा

" तुमसे कुछ भी तो छिपा नही है" नीना ने परेशान थी.

" जानता हूँ,   पर वहाँ    बात-बात पर   तुम्हारी  बेइज्जती और छिछलेदारी होती है फ़िर भी?"

"-------"
" मगर वो तो अब तुमसे संवाद भी नहीं रखते फ़िर उनके घर मे अंधेरा हो या उजाला" क्या फर्क पडता है

"क्या करूँ अपने मन से उनके प्रति इज़्ज़त और स्नेह खत्म ही नहीं होता." नीना ने धीरे से कहा

" लो वो देखो  उस खिड़की की तरफ़  उजाला हो गया है वहाँ.

"हूँ"   नीना ने संतुष्टि की  गहरी साँस छोड़ी

" इससे क्या मिल गया तुम्हें"-- उसने रुष्ट होते हुए पूछा

"उनके होने का सबूत" नीना ने धीरे से मुस्काते हुए कहा

नयना(आरती) कानिटकर
२७/०६/२०१७--भोपाल









गुरुवार, 29 जून 2017

शब्द

ओह! शब्द
मिल ही नही रहे
स्याही खत्म हो जाए
तो भर सकती हूँ कलम में
किंतु...

फिर भी वो
टिकी हुई है कागज़ पर
इस उम्मीद में...

की
शब्द प्रस्फ़ुटित होगें
हवा के स्पंदन से
बह उठेंगे  मन से
 टपक पडेंगे  नयनो से

मूळ कविता:- आसावरी काकडे
अनुवाद/ भावानुवाद  प्रयास:- नयना(आरती) कानिटकर

गुरुवार, 30 मार्च 2017

"मूल्यांकन"-----


"मूल्यांकन"-----
भोर होने को थी। रजाई से हाथ निकाल पास ही में सोई बेटी के सर पे हाथ फेरा तो तकिया कुछ गीला महसूस हुआ। ओह! तो सारी रात बिटिया ...। बहुत नाराज़ हुई थी उससे कि ये कैसे सामाजिक मूल्य है माँ! जिन्हे हरदम आप को या मुझे चुकाना हैं, क्या कमी है मुझमें , पढ़ी लिखी हूँ, बहुत अच्छा कमाती हूँ । शक्ल-सूरत भी ठीक फिर कौनसी बात को लेकर मेरा अवमूल्यन किया जाता हैं । हर बार बस ना और ना, बस अब बहुत हो गया।
उसका सर सहलाते सहलाते वो खुद कब सो गई पता ही ना चला था।
लिहाफ को परे सार उठने ही वाली थी कि बिटिया ने हाथ थाम लिया।
“माँ! मेरा सारा  अवसाद धूल चुका हैं और अब निर्णय भी पक्का।”
“कैसा निर्णय बेटा”
“ मम्मा मैने सोच लिया है, मैं अनाथ बच्ची को गोद लेकर एकल अभिभावक बन उसका लालन-पालन कर उसे उच्च शिक्षा दूँगी।”
“समाज में तुम्हारी बात को स्थान मिलने में वक्त लगेगा बेटा।”
“तो क्या हुआ मेरी प्यारी मम्मा!, वो देखो बंद दरवाज़े के उस छोटे सी जगह सुराख से सूरज रोशनी फैला सकता है तो..
मेरे पास तो पूरा का पूरा आंसमा है रोशन होने.के लिए।
मौलिक व अप्रकाशित
 नयना(आरती) कानिटकर
भोपाल 17/12/2016

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2017

परिवार

पिताजी ने थाम रखी है
डोर मजबूती से, कि
ना चल सके कोई टेढी चाल
माँ के पावन मन मे बसता है
हम बच्चों का धाम
दादा दादी से सीखा है
पंगत मे बैठकर साथ मे
निवालो का तोडना
उनकी संगत मे रिश्तो को जोडना
जिसे नापने का कोई
मिटर नही है
किसी ने ठुकराया भी तो
परिवार की छत्राछाया  ही है
जहाँ अस्तित्व महफ़ूज है

"नयना"

सोमवार, 9 जनवरी 2017

अपने अपने क्षितिज



आदरणिय मेरे सभी मित्र ,शुभचिंतक व मेरे परिवार के सदस्य,**अपने अपने क्षितिज**  का एक छोटा सा  हिस्सा मेरा भी.
कल ०८/०१/२०१७ मेरे जीवन का महत्पूर्ण दिवस था। नई दिल्ली के प्रगति मैदान में चल रहे विश्व पुस्तक मेले-2017 में 
मेरे प्रथम साझा लघुकथा संकलन **अपने अपने क्षितिज** का विमोचन वनिका पब्लिकेशन्स द्वारा अनेक जाने माने लघुकथा एवं सहित्य के पुरोधाओं के करकमलों से किया गया।
 हालांकि मैं पारिवारिक कारणों से उपस्थित न हो सकी.
मेरे जीवन का अनमोल क्षण है।
जल्द ही  मेरा अपना एकल  संग्रह  " मेराअपना क्षितिज"  चुने    इस हेतु आप सभी के आशिर्वाद की अभिलाषी. 

 आप सभी का ह्रदयतल से आभार  खासकर " नया लेखन नये दस्तखत" के मंच का जहाँ से मैने अपने लघुकथाओ की रचना प्रारंभ की साथ ही लघुकथा- गागर मे सागर , लघुकथा के परिंदे समुह का तहेदिल से शुक्रिया जो मेरी रचनाओ को  तराशने मे सदा  मदद  करते है.

ओ.बी.ओ (http://www.openbooksonline.com/) के एड्मिन समूह  +Yograj Prabhakar 







शनिवार, 7 जनवरी 2017

निंबू चटनी ---हरी मिर्च का अचार:-

 निंबू चटनी

साफ़ दाग  रहित निंबू २२-२५( सधारण्त:) एक किलो लेकर धोकर सुखे कपडे से पोंछ कर अलग कर लिजीए. मसाले मे  मिर्च,सौफ़,जीरा, हिंग  व कुछ बेसिक मसाले जैसे बडी इलायची, लौंग, धनिया जैसे मसाले लेकर उन्हे हल्का सा भुनकर पींस लिजीए उसमे स्वादानुसार नमक और काला नमक मिलाईए.( अगर इस सब झंझट से बचना चाहते है तो नींबू चटनी अचार मसाला बाजार मे तैयार मिलता है २५०ग्राम ले आईए)

नींबु के टुकडे कर बीज निकाल लिजीए. लगभग १.५ किलो शक्कर इन टुकडों मे मिलाकर मिक्सर मे पीस लिजिए अब सारे मसाले  या रेडीमेड मसाला मिलाकर सात-आठ दिन ऐसे ही रहने दिजिए.
खास सावधानी :- नींबू-शक्कर को  पिसने के बाद  काँच या    प्लास्टिल बर्तन मे निकालकर मसाले मिलाए.
८-१० दिनों मे उपयोग मे ला सकते है.

हरी मिर्च का अचार:-

२५० ग्राम तिखी वाली हरीमिर्च को पहले गीले और फ़िर सुखे कपडे से पोंछ लिजिए. एक बाउल मे नमक,राई की दाल,  अन्त मे हल्दी की लेयर बनाईये थोडा मेथीदाना और हिंग तेल मे तलकर उसे बारिक पीस लिजीए वो उसमे मीला दिजिए अब अलग से एल कटोरी मूँगफ़ली दाना तेल थोडा हिंग डालकर धुआ उठने तक गरम किजिए व हल्दी वाली लेयर पर गोल घुमाते हुए दाल दिजिए. मिर्च के टुकडे (१ इंच या छोटे जैसे पसंद हो)  उसमे मिलाकर हिलाईए. १०-१२ नींबु का रस निकालकर( बीज हटा दे) मिलाइए .ठंडा होने पर काँ की बरनी मे भर दिजिए.८-१० दिन बाद अतिरिक्त तेल गरम कर ठंडा कर उसमे मिलाकर नीचे तक अच्छे से हिलाकर रख दिजिए.

ये तैयार है.सब
नोट:- मै सब चीजे अंदाजन लेती हूँ नाप-तौल का फ़ंडा नही है मेरे पास.  बस अनुभव