"सृजन यात्रा "
"जल्दी करो ! तुम्हारी ही माँ का वर्षश्राद्ध है, वृद्धाश्रम वाले राह देख रहे होंगे इकलौती बेटी हो तुम उनकी।"।" ---महेश उतावला होते हुए बोला
" बस करो महेश! जीते जी तो मेरी माँ को अपने साथ ना रख सके। जब देखो तब पैसे के लिए माँ का अपमान, उनके बांझ होने का उपहास ... अब यह श्राद्ध का ढोंग मुझे दिखावा लगता है।" वसुधा ने बुझे मन से कहा
" अब फ़ालतू बातें बंद करो मैं साल भर से राह देख रहा हूँ इस दिन की. कुछ तो समझा करो यार सब चीजों भावनाओं मे बहकर पूरी नहीं होती। "महेश बोला
" चलो.."
वृद्धाश्रम मे पहुँचते ही वसुधा माँ की फूलो का हार डली तस्वीर देखकर अपने आप को ना रोक पाई, आँसुओ की धारा बह निकली। चुपचाप माँ के फ़ोटो के पास बैठ गई।
महेश ने पूजा, भोजन आदी सभी कार्य तेजी से निपटा कर मैनेजर को आदेश देते हुए कहा-- वकिल साहब को बुलाओ और सासू माँ की इच्छा अनुसार अब उनकी वसियत भी सबके सामने पढ दो।
वकिल साहब ने सील बंद लिफ़ाफे मे रखा उनका इच्छापत्र पढते हुए कहा--
" मै सुशीला देवी अपनी व अपनी दत्तक बेटी की सहमति से यह इच्छापत्र निष्पादित करती हूँ कि --"मेरी मृत्यु के पश्चात मेरी बची हुई सारी संपत्ति का पचास प्रतिशत इस आश्रम को दान दिया जाय तथा बचे पचास प्रतिशत से अनाथ बच्चो के लिए एक रहवासी पाठशाला इसी परिसर के गैर उपयोगी पडे पिछले खुले परिसर में खोलकर उसकी बिल्डिंग के लिए उपयोग मे लाए जावे। वसुधा उसी मे निवास कर उसका प्रबंधन करेगी। "
विस्थापन से सृजन तक की यात्रा में वसुधा ने इमारत की नींव का पहला पत्थर रख माँ को प्रणाम किया।
नयना(आरती)कानिटकर
मौलिक एवं अप्रकाशित
"जल्दी करो ! तुम्हारी ही माँ का वर्षश्राद्ध है, वृद्धाश्रम वाले राह देख रहे होंगे इकलौती बेटी हो तुम उनकी।"।" ---महेश उतावला होते हुए बोला
" बस करो महेश! जीते जी तो मेरी माँ को अपने साथ ना रख सके। जब देखो तब पैसे के लिए माँ का अपमान, उनके बांझ होने का उपहास ... अब यह श्राद्ध का ढोंग मुझे दिखावा लगता है।" वसुधा ने बुझे मन से कहा
" अब फ़ालतू बातें बंद करो मैं साल भर से राह देख रहा हूँ इस दिन की. कुछ तो समझा करो यार सब चीजों भावनाओं मे बहकर पूरी नहीं होती। "महेश बोला
" चलो.."
वृद्धाश्रम मे पहुँचते ही वसुधा माँ की फूलो का हार डली तस्वीर देखकर अपने आप को ना रोक पाई, आँसुओ की धारा बह निकली। चुपचाप माँ के फ़ोटो के पास बैठ गई।
महेश ने पूजा, भोजन आदी सभी कार्य तेजी से निपटा कर मैनेजर को आदेश देते हुए कहा-- वकिल साहब को बुलाओ और सासू माँ की इच्छा अनुसार अब उनकी वसियत भी सबके सामने पढ दो।
वकिल साहब ने सील बंद लिफ़ाफे मे रखा उनका इच्छापत्र पढते हुए कहा--
" मै सुशीला देवी अपनी व अपनी दत्तक बेटी की सहमति से यह इच्छापत्र निष्पादित करती हूँ कि --"मेरी मृत्यु के पश्चात मेरी बची हुई सारी संपत्ति का पचास प्रतिशत इस आश्रम को दान दिया जाय तथा बचे पचास प्रतिशत से अनाथ बच्चो के लिए एक रहवासी पाठशाला इसी परिसर के गैर उपयोगी पडे पिछले खुले परिसर में खोलकर उसकी बिल्डिंग के लिए उपयोग मे लाए जावे। वसुधा उसी मे निवास कर उसका प्रबंधन करेगी। "
विस्थापन से सृजन तक की यात्रा में वसुधा ने इमारत की नींव का पहला पत्थर रख माँ को प्रणाम किया।
नयना(आरती)कानिटकर
मौलिक एवं अप्रकाशित