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शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2010

अंधेरे में जो बैठे हैं, नज़र उन पर भी कुछ

डालोअरे ओ रोशनी

वालों बुरे हम हैं नहीं इतने,

ज़रा देखो हमें भालो अरे ओ रोशनी वालों ...
क़फ़न से ढाँप कर बैठे हैं हम सपनों की लाशों को

जो क़िस्मत ने दिखाए, देखते हैं उन तमाशों

को हमें नफ़रत से मत देखो, ज़रा हम पर रहम खा

लो अरे ओ रोशनी वालों ...
हमारे भी थे कुछ साथी, हमारे भी थे कुछ

सपने सभी वो राह में छूटे, वो सब रूठे जो थे अपने

जो रोते हैं कई दिन से, ज़रा उनको भी समझा लो

अरे ओ रोशनी वालों ...