उड़ो आकाश भर
कुलांचे भरती पतंग की तरह
थामे रहो उड़ान को अनंत तक
फिर भी कभी जब थक जाओ
भागते भागते
थामते अपनी जिंदगी को
असंतुलित हो जाए ,तुम्हारी पतंग
खाने लगे हवा में गोते
अंगुलियों पर कसी उसकी मंझी डोर
कांच के महीन किरचों से
जब भर दे जख़्म,रिसते खून का
तब उतार लेना उसे
हौले हौले नीचे को
मैंने आज भी बचा रखा है
आम के पेड़ से झरता
सुबह की कोमल घूप का टुकड़ा
और उस घने नीम की छाँव
जो अभी भी हैं
मेरे घर आँगन में
© " नयना "