गुरुवार, 30 अगस्त 2012

चाँद

चाँद,
ना तेरा है ना मेरा,
वो तो हम सबका,
अनंत समुद्र के उस
रेतीले किनारे पर बैठे
उन लाखों लोगों का
वो हम सबका
चाँद तो आखिर
चाँद ही है
फिर वो चाहे ईद का हो
या कि किसी तीज का
वो तो अखंड ब्रम्हांड का
वो हम सब का
इसीलिये तो जब
हम सब गहन तिमिर मे
नींद के आगोश मे भी
हर एक के स्वप्न मे भी
होते है उस चाँद के साथ
तो वो हम सबका
आओ उस अमावस के
अंधकार को भगाकर
पुर्णिमा कि रौशनी को
बाँट ले सब मिलकर
क्योकिं वह
चाँद तो
हम सबका



मंगलवार, 28 अगस्त 2012

बैलेंस शीट

वैवाहिक जीवन के २६ सालो की,
जब लिखने बैठी बैलेंस शीट
याद आ रही कैसे रचाई ईंट पे ईंट
कभी सिमेंट का जोड मजबूततो
कभी पानी कि कमी सताई
पर सब चिजों को अनदेखा कर
रिश्तों की मजबूत नींव बनाई

.जीवन की इस बैलेंस शीट मे
देयता और संपत्ति बाँए दाँए----(liability-asset)
साथ-साथ मे चलते रहे हैआय-व्यय के भी साँए---(income-expenditure)
स्थायी संपत्ति के कालम में
जब खुद के घर ने जगह बनाई
आवासिय ऋण के कालम ने
देयता के कालम मे सेंध लगाई

बच्चो की उत्तम शिक्षा का खर्च
जनरल एक्सपेंसेस को हुआ डेबिट
बुद्धि का सारा श्रेय पतिदेव के खाते क्रेडिट
घर कि मेरी मेहनत सेलरी को हुई डेबिट
interest income का मुझे मिला क्रेडिट
बच्चे मेरी बैलेंस शीट के बडे गुड-विल
अब इस घर कि नींव नही सकती हिल

रिश्तें मे अपनत्व और प्यार का
बैंक बेलेन्स रहा  बडा मजबुत
दोनो परिवारो के संबंधो ने साथ मे
प्यार का कैश इन हैंड किया सुदृढ
रिश्तें मे मरम्म्त रख-रखाव का चलता रहा खेल
इसी तरह इस जीवन कि चल रही हे रेल

बुधवार, 15 अगस्त 2012

मेरा देश


ये कैसा आघात हुआ है
देश के साथ घात हुआ है
युवा देश का सो चुका है
नियत,हिम्मत खो चुका है

सालो से देश कहने को स्वतंत्र
आज नेताओ के हाथ परतंत्र है
ॠषि मुनी की तपोभूमी में
मिलावट के फूल है
भ्रष्टाचार की चहू और दलदल
महंगाई की फैली धूल है

बुनीयादी ढाँचा ध्वस्त हुआ है
आदमी आदमी से त्रस्त हुआ है
शिक्षा का स्तर गिरा हुआ है
पापी पेट के लिये समझलो
गुरु देश का बिका हुआ है
नेताओ ने हाथ साफ किया है
देश को यु बरबाद किया है

६५ वर्ष की उम्र में माँ को
गहरा ह्रदयाघात हुआ है
न्यायिक सेवा की धमनी मे
रक्त बहाव कम हुआ है
प्रशासन की धमनी मे
भ्रष्टाचार है भरा हुआ
रक्त संचार का मार्ग ह्रदय तक
पूर्ण रुप से है रुका हुआ
लेकिन अब
हमें भी कुछ करना होगा
अपने खातिर उठना होगा
भंगूर होते देश के खातिर
फिर एक जुट हो लडना होगा
धून सी लगती भ्रष्टाचरी
कब तक सहें ये मक्कारी
फिर अब खून उबलना होगा
देश कि खातिर लडना होगा

सर्वाधिकार सुरक्षित-----मौलिक रचना

मंगलवार, 7 अगस्त 2012


संरक्षित खाद्द्य पदार्थ भाग-2
              
संरक्षित खाद्द्य पदार्थ भाग-1 मे मैने अचार मुरब्बे के बारे मे लिखा था.आज दो  अहम संरक्षित खाद्द्य पदार्थ इस सूची मे जुड रहे  है वे दो अन्य खाद्द्य पदार्थ है-बडी-पापड.
          आज बहूत तेज वर्षा का क्रम जारी है ऐसे मे घर से बाहर सब्जी खरीदने निकलना तो दूर बडा कठीन भी है.साथ ही साथ पानी कि वजह से सडी-गली सब्जी खरीदने के स्थान पर कोई अन्य उपाय निकालना बेहतर समझा . अपनी माँ के साथ ग्रिष्म ऋतु मे बनाई बडी कि याद हो आई.बचपन से मेरे घर मे बडी बनाने कि एक प्रथा सी है और मै भी उसकी उपयोगिता समझकर व्यसतता के बीच भी बडी तन्मयता से अपनी बेटी के साथ उस प्रथा को निभाने का भरसक प्रयत्न करती हूँ.
           मूंग दाल,चना दाल,उडद दाल के साथ बनाई जाने वाली बडी अनेको प्रकार से बनाई जाती है.कोई सभी दालो को मिलाकर ,तो कोई अलग-अलग दालो मे कुछ सब्जियाँ आदी मिलाकर बनाते है तो कुछ केवल दालो के साथ.
         घर मे बचपन से मूंग एवं चना दाल कि बडी बनाई जाती है दाल को रातभर भिगो कर रखा जाता है. सुबह उसका पानी निथार कर पत्थर पे थोडा दरदरा पिसा जाता है बिल्कुल नाम मात्र के पानी के साथ पिसते वक्त उसमे अदरक ,जीरा ,मिर्च आदी मसाले मिलाये जाते है.पिसी दाल का घनापन इतना हो कि वह फैले नही. मेरी माँ बडी रचनात्मक एंव कलात्मक प्रवृती कि है जब हम बचपन मे बडी बनाते तो वे हम दोनो  बहनो के बीच एक प्रतियोगीता रख देती कि कौन आकार मे एक जैसी और उसके डालते वक्त सुंदर डिज़ाइन कि रचना करता है और हम दोनो बहने खेल-खेल मे बहूत सारी बडी चुटकी मे बना देते थे.
        आज मैने इन्ही बडी का उपयोग सब्जी बनाने किया .आलू तो सभी सब्जियों का सखा है.टमाटर कि ग्रेवी के साथ हरिमिर्च और धनिया पत्ती इसके स्वाद को दोगुना कर देती है.इस शुद्ध शाकाहारी सब्जी के आगे अनेको नामांकित सब्जीयाँ फिकी पड जाती है.साथ मे भूना पापड और गर्म-गर्म रोटियाँ वाह!!!! बारिश का आनंद दोगुना हो जाता है.
    उडद और चने की दाल के आटे से बने पापड के भी क्या कहने.वो तो किसी भी ॠतु मे कभी भी ,समारोह मे भी अपनी आमद दर्ज करता है.बचपन मे आस-पडौस कि चाची-मौसी के साथ इन्हे बनाने का अपना अलग मजा था.ये आस-पडौसी का मिलन समारोह भी हुआ करता था.उम्र मे छोटी हम बहने कडक गूंथे आटे से छोटे-छोटे पापड बनाती ,फिर माँ ,चाची मौसी उन्हे बडा आकार देती .हम बच्चे उन्हे सुखाने मे मदद करते.
     ऐसे अनेको संरक्षित खाद्द्य पदार्थ है जो गाहे- बगाहे ,परेशानियो मे हमारी मदद करते है हमारी रसोईमे.