गुरुवार, 17 नवंबर 2022

 कितना मौन 

कितना संवाद ,

कितना निर्मित

कितना क्षरित, 

कितना अधिक 

कितना अल्प,

कितना कलुष 

कितना उत्सव,

कितना दान

कितना प्रतिदान,

कितना आकर्षित

कितना परिवर्तित,

कितना जाना 

कितना छोड़ा,

सब  संचित इस तहखाने में। 


कितनी  स्थिरता 

कितनी चंचलता, 

कितनी उद्विग्नता 

कितनी उदारता, 

कितनी तपस्या

कितनी व्यग्रता, 

कितनी देयता 

कितनी उपादेयता, 

कितनी साधना 

कितनी प्रेरणा,

कितनी  तिक्त

कितनी उदात्त,


क्या कुछ शेष अब 

इस जीवन में  

©आरती कानिटकर "नयना"