बुधवार, 22 जून 2016

सिलसिला

 सालों बाद वे सब  गाँव आए थे. इस बार वादा जो किया था सबसे मिलने का.
गाड़ी से उतरते ही सुहानी दौड़ पडी थी. आनंद में मामी,नानी कहते हुए खूब सबके गले मिली.
"नानी! यशा दीदी कहाँ है?" पूछते ही उसका ध्यान कमरे के कोने पर गया जहाँ वो चुपचाप घुटनों को पेट के बल  मोडे एक टाट के बोरे पर लेटी थी.
"दीदी! कहते जैसे ही उससे मिलने दौडी कि," --अम्मा चिल्लाई.
"अरे ! उससे दूर रहना उसे कौवे ने छू लिया है." कोई उसके पास नही जाएगा."
"ये क्या होता है माँ.."
"अभी तू बडी होगी तो सब समझ जाएगी. सुधा दीदी रोको उसे ." भाभी ने बीच मे टोकते हुए कहा
"वो सब समझती है भाभी मगर ये सिलसिला यू कब तक चलेगा.अब तो दुनियाँजहान की लड़कियाँ इन दिनों मे भी सारे काम करती है,ऑफ़िस जाती है, समारोह मे हिस्सा लेती है, यहा तक की पहाड़ों पर चढने से भी नही कतराती और ये क्या इतने गंदे कपड़ों मे नहाई भी नहीं क्या?"
"उठो बेटा! चलो तुम्हें पानी गर्म कर दूँ.  पहले अच्छे से नहाओ फ़िर आगे बात करेंगे." सुधा ने उसे उठाते हुए कहा.
सुहानी ने  दौडकर  अपने बैग से एक पैकेट लाकर उसे थमा दिया.

नयना(आरती) कानिटकर
२२/०६/२०१६