शनिवार, 28 अक्तूबर 2017

"कलम की दशा"


"कलम की दशा"

प्रारंभिक उद्घाटन एक नियत मंच पर था तथा चारों और के बडे मैदान में हर विधा के लिए अलग-अलग स्थान निर्धारित था. सामने की कुर्सियाँ अभी खाली थी.
देश की चारों दिशाओं  से साहित्य सम्मेलन के लिए सभी छोटी-बडी रचनाकार कलम समाज के प्रति अपनी वफ़ादारी दिखाने के लिए एकत्रित हो चुकी थी.  कुछ घिस गई थी कुछ कलम घिसने के कगार पर थी तो कुछ अभी भी अपनी चमक पर इठला रही थी.

जहाँ-तहाँ झुंड में इकट्ठा हर बडी कलम छोटी को खाने पर आमदा लग रही थी.

तभी उद्घाटन की घोषणा हुई .सभी कलम अपने-अपने आवरण से निकल कर कुर्सी पर विराजमान हो गई.

मंचासिन सभी ने अलग-अलग विधा पर उनकी स्तुती में लार टपकाते उद्बोधन दिए.

इन दिनों की  तथाकथित सबसे चमकदार विधा ने आमद करते ही समर्पण व आस्था का मसाला लगाकर  समय का तकाजा देते हुए कहा कि "वर्तमान का दौर व्यस्तता का है, हमे हर बडी बात को कम शब्दों मे तौलते हुए सामाजिक विसंगति पर काम करना होगा बडी सी बात को कम शब्दों में लिखना  ही साहित्य है, तभी हम साहित्य के सच्चे सिपाही  साबित होंगे.  वही सच्चा साहित्य प्रेमी भी.

सभी  नई कलमें  पेशोपेश में थी कि आखिर क्या करे.
तभी मैदान के एक हिस्से से गर्मागर्म  बोटी भोजन की  खुशबू आते ही  समाज और राष्ट्र की वफ़ादारी  के ढोंग के  साथ सभी दूम हिलाते उस ओर दौड पडे.
मौलिक व अप्रकाशित

नयना(आरती कानिटकर