मंगलवार, 22 दिसंबर 2015

आदमी जिंदा है-लघुकथा के परिंदे --जिंदादिली

डायलिसीस सेंटर के वेटिंग एरिया मे बैठे स्मिता का सारा ध्यान चिकित्सा कक्ष की तरफ़ था सचिन को अभी-अभी अंदर ले गये थे.भगवान की मुर्ति सामने थी लेकिन  उसका मन अशांत था .
इतने मे सामने से एक खूबसुरत ,करिने से पहना हुआ सौम्य पहरावा,कोई भी आकर्षित  हो जावे ऐसा आभायमान व्यक्तित्व की धनी महिला आती है.
वो अपने डब्बे से सभी को मतलब हर आने-जाने वाले को तिल-बर्फ़ी ’चिक्की देते हुए कह रही थी "तिल-बर्फ़ी लो मीठा-मीठा बोलो".सभी डाक्टर्स,सिस्टर्स,वहाँ के सारे मरीज,मरीजो के रिश्तेदार सभी संग अपनी  खूबसुरत हँसी और अपनापन  बाँट रही थी
 स्मिता अशांत थी,अधिर हो रही थी लेकिन डाक्टर साहब ने उसकी मनस्थिती ताड ली .बोले--
"स्मिता ये जोशी आंटी है अपने पति संग लम्बे समय से यहाँ आ रही है.इनके सारे त्योहार दशहरा,दिवाली,राखी सब यही मनते है वो यहा की सबसे सिनियर पेशेंट रिलेटिव्ह है .बडी जिन्दादिल महिला है,सब पेशेंट रोज उनका इंतजार करते है और हा सचिन भी ठिक है अब जल्दी छुट्टी मिल जायेगी उसे.
 स्मिता ने अपने दु:ख का अपने चारो और मानो कोश सा निर्माण कर लिया था,लेकिन जोशी आंटी ने तो अपने प्रयत्नो से परिस्थीति को उलट दिया था,हार नहीं मानी थी.
उनको देख स्मिता ने सोच लिया जिंदगी हमेशा जीते रहने मे है,हौसले और जज्बे मे है.
जब तक जिंदादिली कायम है,आदमी जिन्दा है.

नयना(आरती) कानिटकर.
२२/१२/२०१५

मुँह दिखाई-नयी रीत लघु कथा के परिदे

 धूम-धड़ाके के साथ विवाह पश्चात जब बारात घर लौटी तो चारों ओर ख़ुशियों का माहौल था. सुरेखा ने आरती उतार घर मे प्रवेश कराया.भिन्न-भिन्न रस्मो मे समय कब गुजरा पता ही ना चला.तभी दादी माँ का आदेशात्मक स्वर सुनाई दिया.
"सुरेखा बहूरिया!! लगे हाथ मुँह दिखाई की रस्म भी कर लो,आसपास के घरो मे बुलावा भेज दो,लल्ली(नई बहू) जो दहेज़ लाई है उसे करिने से  सजा  लो ताकि जब वे आए तो उन्हे मुझसे  पूछना ना पडे --"तेरी पोते री बहू क्या लाई है संग"
"ना अम्मा!!! अब ये मुँह दिखाई की रस्म ना होगी इस घर मे और ना ही बहू घूँघट काढेगी.वैसे से भी शर्म आँखो मे और अदब दिल से होता है .मैं उसे अपनी  बेटी बनाकर लाई हूँ उसे अपने सुमन  बेटी की तरह स्वीकारो.दहेज़ मे मैने उसके माँ-बाबू से कुछ ना लिया.वो अपने पैरो पर खड़ी है,नौकरी करती है.जरुरत पडने पर होनी-अनहोनी ,हारी-बीमारी मे हमारे साथ है.बस यही दहेज़ है हमारा." कहकर बहू शकून के माथे हाथ फ़ेरने लगी .थक गई है सारा दिन रस्मो के चलते.
"जा बेटा शकुन थोडा आराम कर ले."
शकुन को घर मे अपने मिलने वाले स्थान का आश्वासन मिल गया.
"मगर बहूरिया!!! इस घर की रीत--"
"अम्मा आज से इस घर की यही नयी-रीत है."
नयना(आरती)कानिटकर