बुधवार, 9 सितंबर 2015

अहसास

कभी नही चाहा
वे सारी रुढियाँ फिर से आगे बढे
जो मेरे पास आयी थी
 मेरी नानी,दादी,माँ,मौसी,बुआ से
जिस पर चलने के लिये मुझे ,
मिली थी टेढी-मेढी एक पगडंडी
जिसे मैने पक्के रास्ते मे बदल दिया था
खोल दी थी एक
छोटी सी खिड़की
जिससे दिखाई देता खुला आकाश
चहकते पंछीयो की उड़ान
खोल दिये थे द्वार के पट
राह खोजने के लिये
सुदृढ सामर्थ्य की छत के  साथ
फिर भी अधुरेपन का
अहसास क्यों??????
नयना (आरती) कानिटकर
०९/०९/२०१५

आपसी विश्वास--एक पहलू यह भी

 अरे!!!! नीता दीदी आप इतने साधारण पहनावे मे और गहने कहाँ है??
अपने गले से हार उतारते हुए नीता के गले मे डालते हुए नेहा कहती  है,  आपकी भतिजी के विवाह का अवसर है आज और आप है कि--
  नीता गदगद हो उठती है अपनी भाभी के व्यवहार से. बोल उठती है---
       नेहा उनके मुँह पर अंगुली रख चुप कर देती है,मैं सब जानती हूँ दीदी!!! आपके भाई ने मुझे पहले ही आपकी परिस्थिति से अवगत करा दिया था.मुझे  आप पर और उन पर पूरा विश्वास है.बे वजह आप यू किसी से पैसे उधार-------
    दोनो एक दूसरे के गले लिपट जाती है