सोमवार, 25 जनवरी 2016

शहादत का बिम्ब- लघुकथा के परिंदे-६

 अपने बेटे की शहादत के बाद सुखबीर जी की  सारी जिंदगी सिर्फ़ अपने पोते आयुष्यमान  के इर्दगिर्द सिमट गई थी.प्यार से उसे सिर्फ़ "आयु" कहकर पुकारा करते और आयुष्यमान की पत्नी आयूषि को "आशी".  अब उन दोनो तक ही उनका जीवन केन्द्रित हो गया था. उनका पोता भी  भारत माता की रक्षा के ख़ातिर सीमा पर तैनात था."आशी" बहुत जल्द ही एक नव जीवन उनकी गोद मे डालने वाली थी, उसके माता-पिता भी आ गये थे सहारे के लिए.उसे अस्पताल ले जाया गया था.सभी बडी उत्सुकता से इंतजार कर रहे थे कि...
अचानक मोबाईल घनघना उठा. उधर से आवाज़ आई...
"आयुष्यमान एक अभियान में  शहीद हो गया है..."सुखबीर जी ये सुन सम्हल भी ना पाए थे, 
अपनी जगह जडवत से हो गये कि जचकी वार्ड से अचानक...
 नवजात शिशु के रोने की आवाज़ गुंजायमान हो गई.
 नयना (आरती) कानिटकर
२५/०१/२०१६

पत्नी संध्या ने लगभग दौड़ते हुए आकर बेटा होने की खबर दी.कहने लगी- "नर्स लेकर आ रही है हमारे बच्चे को और आनंदातिरेक मे पुन: कक्ष की ओर चली गई."
इधर वे  अपने आप को सम्हाले 
आयुष्यमान के प्रतिबिम्ब का इंतजार करने लगे.