रविवार, 14 अक्तूबर 2012

तोल -मोल

 दूध पिते वक्त शैतानी करते हुए मुनमुन के हाथ से थोड़ा स दूध ढलक जाता है .मुनमुन तिरछी निगाह से अपने दादी को देखती है ,दादी उसे गुस्से से देख रही थी.दादी को इस तरह  ढोलना, फैला ना   अस्तव्यस्त करन बिलकुल पसंद नही है.
      ओह!! दादी थोडासा दूध ढुलने पर आप कितनी नाराज़ हो रही हो? लाओ मैं साफ़ किये देती हूँ .किंतु दादी का मन बैचेन हो जाता है वो मु्नमुन  से कहती है जानती हो दूध अपने घर तक किस तरह पहुँचता है नही ना तो सुनो-----
       बच्चे वाली गाय या भैंस का दूध दुहकर हमारे घर आता है. उस वक्त जब उस दूध पर जन्मसिद्ध हक होता है उस गाय या भैंस के बच्चे का.उस बच्चे को उसके( माँ) के स्तनपान से रोका जाता है.सोचों माँ के अमृत समान दूध को हम उसके मुँह से छिनते है अपने पोषण के लिये क्या ये उस बच्चे के साथ अन्याय नही है?.
         गाय या भैंस का यह दूध इतना मूल्यवान है कि इसे पैसे से नही गिना जा सकता .कप भर,ग्लासभर या लिटर  ये तो बस तोल-मोल के व्यवहार है.माँ के प्रेम कि लंबाई चौड़ाई (आयतन) नही नापा जा सकता.तुम भी इस बात पर विचार करो क्या तुम्हारे माँ कि दी हुई कोई भी वस्तु तुम किसी से जल्दी से साझा कर पाती हो नही ना तो फिर ये तो उसका भोजन है फिर भी हम उससे छिन लेते है.
          फिर सिर्फ़ दूध हि क्या धरती माता द्वारा दी हुई कोई भी वस्तु धनधान्य,वनाऔषधि,फूल,सुगंध आदी का उपयोग हमे कृतज्ञता एवं समझदारी से करना चाहिये.
         दूध के बहाने दिये दादी के सौम्य उपदेश कितने हित कर व उपयोगी थे.जो धीरे-धीरे  मुनमुन के समझ मे आ गये.
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कुछ चीज़ो को पैसों से नही गिना जा सकता उसका तोल-मोल भी नही किया जा सकता.मुनमुन का व्यक्तित्व परिपक्व होना भी उतना हई अनमोल है.जितना दूध का व्यर्थ नष्ट ना होना.