शुक्रवार, 21 अगस्त 2015

"प्रतियोगिता के लिए "
"अटूट बंधन"
आज सुबह से मन बडा बैचेन था अविनाश का
आज ही तो एक साल पहले आरती चिर निंद्रा मे लीन हो गई थी.उन्हे अकेला छोड
सब कुछ अव्यवस्थित हो गया था तब रोज की दिनचर्या, खान-पान, रहन-सहन
किंतु जल्दी  ही सम्हल कर उन्होने अपने आप को व्यवस्थित कर लिया था. बच्चे तो बाहर बस गये थे अपने रोजी-रोटी से.
सारे काम वे खुद निपटाते यहाँ तक की रसोई भी.बचा समय पठन-पाठन और लेखन मे लगा दिया था.
मगर आज ये बैचेनी!!!!!!
बडी मायूसी से यादों का एलबम खोलकर बैठ गये और तभी अचानक इस तस्वीर पर नजर गई. अचानक सर्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र से ठंडी हवा का झोंका आया--- --वे यादों से सुनहरे भँवर मे खो गये.
५५ वर्ष पूर्व की सौम्य आरती उन्हे याद आ गई,जिसके साथ उन्होंने सुंदर-सुंदर सपने देखे और आरती ने भी उन्हें पग-पग पर साथ दिया.
अरती की सौम्यता,शालिनता और सादा रहन-सहन ही उन्हें मजबूत बना गया था आर्थिक दृष्टि से भी और वैचारिक धरातल पर भी तभी तो वे आज किसी पर आश्रित नही.
   देखो ना कितनी बे फ़िक्र और निश्चल हँसी है तस्वीर में आरती की.इसे मेरी बेटी ने कैमरे में  कैद कर लिया था एक दिन अचानक.
 तस्वीर देखते ही सुबह की सारी बैचेनी एकदम रफ़ुचक्कर हो गई और वे चल दिये अपने किताब और मेज की तरफ़ जहाँ उनकी दैनंदिनी(डायरी) और कलम इंतजार कर रहे थे.