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बहूत कुछ कहना हे ......... बिते सालो का, बचपन का ....... जो मन को भाया.... जो सीख दे गया
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गुरुवार, 10 दिसंबर 2015
संघर्ष
जलती रही मैं तिल-तिल
संघर्ष मे, व्यंग बाणो से
कभी अपनो के तो
कभी परायो के।
"नयना"
सोंधी खुशबू
सीखती रही मैं उम्र भर
रोटी का
गोल बेला जाना
फिर भी पडती रही
सीलवटे उसमें
जो माकूल आग में
सिंकने पर भी
नहीं हो पाई सोंधी खुशबू वाली
नर्म और फूली -फूली
"नयना"
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