मंगलवार, 19 अप्रैल 2016

प्रतिष्ठा

"अरे विचार! इतनी जल्दी लौट आए. क्या भावना नही मिली तुम्हें."
"मिली थी! मीनी, मै गया भी था मिलने सरिता-मुक्ता से लेकिन मिलते वक्त उनमे वो उछाह (उत्साह) नहीं था जैसे कि हम पहले मिला करते थे.
"और फ़िर कादम्बिनी,कविता क्या ये भी नही मिली तुम्हें"
"नही मीनी! मै उनके पास गया ही नही, आखिर मेरी भी तो कुछ प्रतिष्ठा है,अस्तित्व है मैत्री का उनके जीवन मे. अगर वो उन्हें मंजुर नही तो...
"ओह!! मैं सदा तुम्हारे साथ हूँ विचार."
"जानता हूँ तभी तो लौट आया. तुम मुझे हर बात पर टोकती भी नहीं हो, चाहे मे कुछ अनकहा रह जाऊँ या कम शब्दों मे अपनी बात रखूँ."
नयना(आरती) कानिटकर